Ram Nali Mandir उत्तराखंड में स्थित रामनाली मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस स्थान पर सीता माता को प्यास लगी लेकिन आसपास कोई जल स्रोत नहीं था। जब सीता माता प्यास से व्याकुल हो रही थी तब रामचंद्र जी ने यहां स्थित सूखे नाले की ओर बाण चलाया जिससे जलधारा फूट पड़ी और सीता माता ने अपनी प्यास बुझाई।
प्रेम संगेला, मेहलचौरी।
अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के धार्मिक व आध्यात्मिक माहौल से पूरा देश सराबोर है। वहीं उत्तराखंड से भी श्रीराम का गहरा नाता रहा है। इसे लेकर स्थानीय लोग बड़े उत्साह के साथ अपने आसपास उनकी यादों से जुड़े मंदिरों और पवित्र स्थलों की साफ सफाई कर प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान में जुटे हैं।
ऐसा ही एक मंदिर है रामनाली।
उत्तराखंड के मध्य हिमालयी क्षेत्र और ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण (भराड़ीसैंण) के समीप दूधातोली पर्वत श्रृंखलाओं के पूर्वी भाग में दिवालीखाल से चार और गैरसैंण बाजार से लगभग छह किमी की दूरी पर कालीमाटी गांव में स्थित है रामनाली मंदिर। यह स्थानीय लोगों के अलावा श्रीराम भक्तों के लिए आज भी आस्था का केंद्र है।
रामनाली मंदिर को लेकर क्या है मान्यता?
रामनाली मंदिर को लेकर मान्यता है कि, जब भगवान श्रीराम वनवास के दौरान दक्षिण प्रवास एवं सीताहरण से पूर्व सीता और लक्ष्मण के साथ पहाड़ों के भ्रमण पर (वर्तमान में उत्तराखंड) थे, तो इस स्थान पर सीता माता को प्यास लगी, लेकिन आसपास कोई जल स्रोत नहीं था। जब सीता माता प्यास से व्याकुल हो रही थी तब रामचंद्र जी ने यहां स्थित सूखे नाले की ओर बाण चलाया, जिससे जलधारा फूट पड़ी और सीता माता ने अपनी प्यास बुझाई।
तब से इस स्थान को रामनाली के नाम से जाना जाता है, वहीं पानी के छोटे से कुंड को सीता कुंड के नाम से जानते हैं। यहां से महज 500 मीटर दूर दिवाली गधेरे के मिलने के बाद रामनाली को रामगंगा नाम से जाना जाता है।
विकासखंड गैरसैंण के मेहलचोरी, माईथान क्षेत्र से 20 किलोमीटर का सफर तय कर रामगंगा अल्मोड़ा जनपद के चौखुटिया में प्रवेश करती है।
यहां से नैनीताल जनपद के रामनगर शहर के नजदीक से गुजरते हुए रामगंगा नदी पत्थर और मिट्टी से निर्मित सबसे बड़े कालागढ़ डैम में जल संचय का काम करती है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के गढ़गंगा नामक स्थान पर गंगा नदी में मिल जाती है। रामनाली मंदिर में स्थानीय लोगों ने श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान जी की प्राचीन मूर्तियां स्थापित की हैं।
यहां रामनवमी, हनुमान जयंती, नवरात्र सहित तमाम धार्मिक अवसरों पर पूजा अनुष्ठान व भंडारे किए जाते हैं।
मंदिर के स्थानीय पुजारी अवतार सिंह बिष्ट व बाबा सुदामा दास जी कहते हैं कि, सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के क्रम में मंदिर को जाने वाले रास्ते व अन्य सुविधाएं विकसित करे तो श्रदालुओं की आमद यहां बढ़ सकती है।
वहीं राममंदिर आंदोलन में कारसेवक रहे रामचंद्र गौड कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा पौड़ी के फलस्वाणी में सीता माता मंदिर व सीता सर्किट की प्रस्तावित योजना में रामनाली मंदिर को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे मंदिर क्षेत्र का बेहतर विकास और प्रबंधन होने से ग्रीष्मकालीन राजधानी क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन का बेहतर विकल्प बनाया जा सकता है।
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