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Indian China Tension: चीन से मोर्चा लेने को 'द्वितीय रक्षा पंक्ति' भी पूरी तरह से है तैयार

द्वितीय रक्षा पंक्ति माने जाने वाले ग्रामीण भी चीन से दो दो हाथ को तैयार हैं। चमोली की नीती घाटी स्थित नीती गमशाली और मलारी जैसे गांवों के लोग फिलहाल गांव नहीं छोड़ना चाहते।

By Edited By: Updated: Fri, 26 Jun 2020 11:45 AM (IST)
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Indian China Tension: चीन से मोर्चा लेने को 'द्वितीय रक्षा पंक्ति' भी पूरी तरह से है तैयार
गोपेश्वर(चमोली), जेएनएन। भारत-चीन सीमा पर हिमवीर तो मोर्चा संभाले हुए हैं ही, द्वितीय रक्षा पंक्ति माने जाने वाले सीमावर्ती गांवों के लोग भी चीन से लोहा लेने को तैयार हैं। चमोली जिले की नीती घाटी स्थित नीती, गमशाली और मलारी जैसे गांवों के लोग फिलहाल गांव नहीं छोड़ना चाहते। वह कहते हैं सीमा पर हालात सामान्य होने तक वे गांव में ही रहेंगे। इसकी वजह है कि सेना को कभी भी उनकी जरूरत पड़ सकती है। 

चमोली जिले में जोशीमठ से करीब 85 किलोमीटर दूर नीती घाटी में करीब दर्जन भर गांव इन दिनों आबाद हैं। करीब 12 की आबादी में ज्यादातर भोटिया जनजाति के लोग हैं। दरअसल, यहां के लोग सर्दियों में जोशीमठ और चमोली के पास अपने दूसरे गांवों में रहते हैं और गर्मियां शुरू होते ही परिवार वापस नीती घाटी आ जाते हैं। लद्दाख की गलवन घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद नीती घाटी में भी आक्रोश है। ग्रामीण चीन के खिलाफ प्रदर्शन कर अपना आक्रोश तो जाहिर कर ही रहे हैं, सीमा पर जा रहे सैनिकों का तालियां बजाकर अभिनंदन भी कर रहे हैं। 

पेशे से किसान नीती घाटी के 76 वर्षीय किसान नारायण सिंह बताते हैं कि ज्यादातर लोग अप्रैल आखिर या मई की शुरुआत में यहां आ जाते हैं। इन दिनों राजमा, आलू, और चौलाई आदि की बुआई का कार्य पूरा हो चुका है। वह बताते हैं कि सामान्य तौर पर बुआई के बाद परिवार के ऐसे लोग जो अन्य व्यवसाय या नौकरी करते हैं, वे वापस चले जाते हैं और फसल कटाई के वक्त लौटते हैं, लेकिन इस बार सभी लोग गांव में ही हैं। गमशाली गांव के रहने वाले 40 वर्षीय चंद्रमोहन फोनिया जोशीमठ में होटल का संचालन करते हैं। 

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वह कहते हैं व्यवसाय और नौकरी देश से बढ़कर नहीं है। वह कहते हैं कि वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में हमारे बाप-दादा सेना की मदद के लिए घोड़े खच्चर लेकर सीमा पर गए थे और करीब चार से पांच माह वहीं रहे थे। एक बार फिर सीमा पर तनाव है। वह कहते हैं हम किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने को तैयार हैं। मलारी गांव 88 वर्षीय दीवान सिंह कहते हैं चीन के सैनिक कई बार बाड़ाहोती में घुसपैठ कर चुके हैं। ये अलग बात है कि हमारे हिमवीर (आइटीबीपी के जवान) हमेशा उन्हें खदेड़ देते हैं, लेकिन वे वहां मवेशी लेकर गए ग्रामीणों का खाद्यान्न आदि नष्ट कर देते हैं। बावजूद इसके ग्रामीण कभी डरे नहीं, वे हर साल वहां जाते हैं। दीवान कहते हैं 'बाड़ाहोती हमारा है और इस ओर कोई आंख उठाकर भी नहीं देख सकता।' 

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