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Uttarakhand News: द्रोणागिरि के लोग हनुमान जी को क्यों मानते हैं शत्रु? यहां पर्वत देवता का आभार जताने आए थे श्रीराम

द्रोणागिरि भोटिया जनजाति का ऐसा गांव है जहां हनुमान की पूजा वर्जित है। आज भी यहां के लोग संकटमोचन हनुमान को अपना शत्रु मानते हैं। लोक मान्यता है कि लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने से पूर्व स्वयं श्रीराम द्रोणागिरि गांव आए थे। गांव के पास पहुंचकर उन्होंने लंका विजय में अहम योगदान के लिए पर्वत देवता के प्रति आभार जताया।

By Jagran News Edited By: Aysha SheikhUpdated: Tue, 09 Jan 2024 10:27 AM (IST)
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Uttarakhand News: द्रोणागिरि के लोग हनुमान जी से क्यों हैं नाराज? यहां पर्वत देवता का आभार जताने आए थे श्रीराम

देवेंद्र रावत, गोपेश्वर (चमोली)। अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इसे लेकर चमोली जिले में जोशीमठ से 50 किमी दूर चीन सीमा पर स्थित द्रोणागिरि गांव के लोग भी खासे उत्साहित हैं। मान्यता है कि लंका विजय के बाद श्रीराम पर्वत देवता को मनाने स्वयं इस गांव में आए थे।

गांव में जिस स्थान पर श्रीराम के चरण पड़े, उसे रामपातल नाम से जाना जाता है और वहां ग्रामीण भूमि को भी मंदिर की तरह ही पूजते हैं। इसलिए द्रोणागिरि के ग्रामीणों ने तय किया है कि 22 जनवरी को वह अपने-अपने घरों में श्रीराम की पूजा करेंगे।

द्रोणागिरि में हनुमान की पूजा वर्जित

द्रोणागिरि भोटिया जनजाति का ऐसा गांव है, जहां हनुमान की पूजा वर्जित है। आज भी यहां के लोग संकटमोचन हनुमान को अपना शत्रु मानते हैं। ग्रामीणों की यह नाराजगी तब से है, जब मेघनाद ने अमोघ शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया था। मान्यता है कि लक्ष्मण को चेतना में लाने के लिए सुषेण नामक वैद्य ने हनुमान को हिमालय से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।

तब हनुमान द्रोणागिरि पर्वत पर पहुंचे थे। यहां के लोग कहते हैं कि हनुमान को गांव की एक वृद्ध महिला ने पर्वत का वह हिस्सा और संजीवनी बूटी तक पहुंचने का मार्ग दिखाया था। इसके बाद हनुमान संजीवनी बूटी के बदले पहाड़ का वह हिस्सा ही उखाड़कर ले गए। इसलिए यहां के लोग हनुमान से नाराज हैं, लेकिन उनकी श्रीराम से कोई नाराजगी नहीं है। गांव में श्रीराम की पूजा बड़े भक्तिभाव से की जाती है।

पर्वत देवता को द्रोणागिरि में ईष्ट देव के रूप में पूजा जाता है। यहां पर्वत देवता का मंदिर भी है। लोक मान्यता है कि लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने से पूर्व स्वयं श्रीराम द्रोणागिरि गांव आए थे। गांव के पास पहुंचकर उन्होंने लंका विजय में अहम योगदान के लिए पर्वत देवता के प्रति आभार जताया और उन्हें असत्य पर सत्य की विजय के साथ धर्म का सार भी समझाया।

गांव के पास ही एक छोटे से पहाड़ को आज भी रामपातल नाम से राम तीर्थ के रूप में पूजा जाता है। इस जंगल में भोजपत्र समेत दुर्लभ जड़ी-बूटी पाई जाती हैं। पर्वत देवता के पश्वा 74-वर्षीय दीवान सिंह रावत कहते हैं कि श्रीराम ने धर्मयुद्ध में निभाई गई भूमिका के लिए पर्वत देवता का आभार व्यक्त किया था।

तब से ग्रामीण इस छोटी-सी पर्वत शृंखला को श्रीराम के रूप में पूजते हैं। गांव के 75-वर्षीय थान सिंह राणा कहते हैं, अयोध्या में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर सभी उत्साहित हैं। हम शीतकाल के बाद जब अपने ग्रीष्मकालीन गांव द्रोणागिरि जाएंगे तो रामपातल में पूजा-अर्चना कर 22 जनवरी को ऐतिहासिक दिन के रूप में याद करेंगे।

इसलिए है हनुमान से नाराजगी

गांव से एक किमी की दूरी पर रामपातल के ऊपर आज भी हनुमान का नाम लेना, उनकी पूजा करना या फिर हनुमानी सिंदूर व तस्वीर ले जाने को ग्रामीण पर्वत देवता का अपमान मानते हैं। कोई मेहमान भी अगर ऐसी वस्तुएं साथ में लेकर आता है तो उसे आगे जाने के लिए उन्हें रामपातल से नीचे ही छोड़ना पड़ता है। ग्रामीणों का मानना है कि हनुमान उनके देवता रूपी पर्वत को यहां से उठाकर ले गए, जिससे पर्वत देवता का अपमान हुआ। हनुमान से नाराजगी के चलते यहां रामलीला का आयोजन भी नहीं होता।

पर्यावरण रक्षा के लिए शव नहीं जलाते ग्रामीण

गांव के लोग पर्वत व प्रकृति को अपना आराध्य मानते हैं। किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर यहां शव को इसलिए जलाया नहीं जाता, क्योंकि इसमें लकड़ियों का इस्तेमाल होता है। शव को अग्नि अर्पित कर दफना दिया जाता है। शीतकाल के दौरान द्रोणागिरि के ग्रामीण माइग्रेट होकर चमोली, मैठाणा, छिनका समेत अन्य गांवों में आ जाते हैं। यहां किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर शव का बाकायदा दाह-संस्कार किया जाता है।

पर्वत देवता की पूजा में शामिल नहीं होती महिलाएं

गांव की किसी भी महिला को पर्वत देवता के पूजन व प्रसाद बनाने में शामिल नहीं किया जाता। लोक मान्यता है कि जब हनुमान संजीवनी लेने द्रोणागिरि पहुंचे तो उन्हें पूरे क्षेत्र में जड़ी-बूटी चमकते हुए दिखी थीं। हनुमान को परेशान देख गांव की एक बुजुर्ग महिला ने उन पर संजीवनी का भेद खोल दिया था। इसके बाद हनुमान वहां से पर्वत ही उठाकर ले गए थे। ग्रामीणों का मानना है कि बुजुर्ग महिला भेद नहीं खोलती तो पर्वत देवता का अपमान नहीं होता।

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