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Chamoli Accident: चमोली हादसे के दस दिन आई मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट, संचालन में लापरवाही ने खड़े किए कई सवाल

Chamoli Accident उत्तराखंड के चमोली में हुए एक हादसे ने 16 लोगों की जीवन लीला समाप्त कर दी। चमोली एसटीपी हादसे के दस दिन बाद आई इसकी मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट आई और इसमें चौकाने वाले खुलासे हुए। जांच रिपोर्ट ने इन आशंकाओं को सही ठहराते हुए सरकारी सिस्टम की सच्चाई सामने लाकर सरकार की आंखें खोल दी हैं। इसके साथ ही अब कई सारे सवाल उठ रहे हैं।

By Swati SinghEdited By: Swati SinghUpdated: Sun, 30 Jul 2023 11:17 AM (IST)
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चमोली हादसे के दस दिन आई मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट, संचालन में लापरवाही ने खड़े किए कई सवाल
गोपेश्वर, देवेंद्र रावत। चमोली एसटीपी हादसे के दस दिन बाद आई इसकी मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट से प्लांट के संचालन में बरती जा रही लापरवाही की पोल खुलने के साथ कई सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। हालांकि, लापरवाही की परतें हादसे के बाद ही खुलने लगी थी। पहले दिन से ही इसकी आशंका व्यक्त की जा रही थी। अब मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट ने इन आशंकाओं को सही ठहराते हुए सरकारी सिस्टम की सच्चाई सामने लाकर सरकार की आंखें खोल दी हैं।

चमोली कस्बे में नमामि गंगे परियोजना के तहत बने 50 केएलडी क्षमता के इस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का संचालन जल संस्थान ने ज्वाइंट वेंचर कंपनी कांफिडेंट इंजीनियरिंग इंडिया प्रा. लि. (कोयंबटूर) और जयभूषण मलिक कांट्रेक्टर (पटियाला) को दिया है। जबकि, इस प्लांट में दिल्ली की कंपनी एक्सिस पावर कंट्रोल्स का निदेशक अवैध तरीके से कार्य कर रहा था। वह प्लांट संचालक दोनों कंपनियों में से किसी का भी कर्मचारी नहीं है। हैरानी की बात है कि इसका पता मजिस्ट्रेटी जांच में चला। हालांकि, इस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा चुका है। लेकिन, वह किस हैसियत से प्लांट का संचालन देख रहा था, इस प्रश्न का उत्तर किसी के भी पास नहीं है।

प्लांट की निगरानी में बरती जा रही उदासीनता

नियमानुसार अगर संचालक कंपनी अपने अधीन किसी कार्य को दूसरी फर्म से कराना चाहती है तो इसके लिए विभागीय अनुमति लेना जरूरी है। इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। बावजूद इसके अधिकारियों ने इस ओर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। इसी से पता चलता है कि प्लांट की निगरानी को लेकर किस कदर उदासीनता बरती जा रही थी। वर्ष 2018 में बने इस प्लांट के संचालन की जिम्मेदारी जल संस्थान के पास थी।

पेयजल निगम ने निर्माण करने के बाद वर्ष 2021 में इसे जल संस्थान को हस्तांतरित किया था। जल संस्थान ने 15 वर्ष के लिए इसका संचालन ज्वाइंट वेंचर कंपनी को सौंप दिया। इसके बाद विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों ने प्लांट की निगरानी छोड़िए, वहां झांकना भी जरूरी नहीं समझा।

जांच रिपोर्ट में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य

जांच रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है कि जल संस्थान ने प्लांट से आंखें फेरी हुई थीं। यही नहीं, ऊर्जा निगम की कार्यप्रणाली भी प्रश्नों के घेरे में है। प्लांट में मिनिएचर सर्किट ब्रेकर (एमसीबी) का कार्य चेंज ओवर से लिया जा रहा था। इसी चेंज ओवर में शार्ट सर्किट होने से करंट प्लांट में फैला और पल भर में 16 जिंदगियां खत्म हो गईं। यही नहीं, प्लांट में अर्थिंग भी मानकों के अनुरूप नहीं थी। ऊर्जा निगम कभी प्लांट की तरफ झांका होता तो शायद ये खामियां दूर हो जाती। जांच रिपोर्ट में भी इस बात का बकायदा उल्लेख किया गया है कि प्लांट में विद्युत सुरक्षा मानकों और उपकरणों की निगरानी नहीं की जा रही थी।

विभागों के बीच समन्वय का अभाव

जांच रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एसटीपी के संचालन को लेकर विभागों के बीच समन्वय का अभाव था। असल में घटना वाले दिन जब ऊर्जा निगम ने फाल्ट ठीक करने के लिए शटडाउन लिया तो प्लांट में किसी को भी इसकी जानकारी नहीं थी। प्लांट में करंट से एक कर्मचारी की मौत होने की जानकारी के बाद भी ऊर्जा निगम के लाइनमैन ने विद्युत आपूर्ति सुचारु कराने से पहले सावधानी नहीं बरती। घटनास्थल पर पहुंचे जल संस्थान के कर्मचारियों ने भी घटना को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई। प्लांट के संचालन और रखरखाव के खर्च को भी आंखें मूंदकर पास किया जा रहा था।

सिर्फ दिखावे के लिए किया जा रहा है एसटीपी का संचालन

बिजली बिलों से साफ हो चुका है कि एसटीपी का संचालन सिर्फ दिखावे के लिए किया जा रहा था। बावजूद इसके कंपनी के तमाम बिल बेरोकटोक पास हो रहे थे। मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट में भी प्लांट के इन बिलों को संदिग्ध मानते हुए भुगतान करने वाले अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। इन लापरवाहियों से पर्दा उठने के बाद यह बात भी साफ हो गई है कि सरकारी विभाग परियोजनाओं के संचालन का जिम्मा निजी कंपनियों को सौंपने के बाद भूल जा रहे हैं। न तो उनकी निगरानी की जा रही है और न ही संचालक कंपनी की कार्यप्रणाली की समीक्षा। साफ शब्दों में कहें तो सरकारी मशीनरी निजी कंपनियों को सौंपी गई परियोजनाओं की ओर झांकने की जहमत ही नहीं उठा रही।

जांच रिपोर्ट का निष्कर्ष

  • एसटीपी में विद्युत सुरक्षा के मानकों का किया जा रहा था उल्लंघन। एमसीबी के स्थान पर चेंज ओवर का हो रहा था इस्तेमाल। अर्थिंग के निर्धारित मानक का भी नहीं रखा गया ख्याल।
  • एसटीपी के संचालन और निगरानी की जिम्मेदारी जल संस्थान की है। लेकिन, जल संस्थान ने जिस कंपनी को संचालन का जिम्मा दिया उसकी निगरानी और समीक्षा की जहमत नहीं उठाई।
  • ऊर्जा निगम और जल संस्थान के बीच समन्वय का अभाव भी सामने आया। घटना वाले दिन जब ऊर्जा निगम ने फाल्ट ठीक करने के लिए शट डाउन लिया तो एसटीपी में किसी को भी इसकी जानकारी नहीं थी।
  • एसटीपी तक जाने वाले रास्ते की चौड़ाई काफी कम थी। यही वजह रही कि लोग रेलिंग से चिपककर खड़े थे और करंट फैलने पर वहां से निकल नहीं सके।

कार्रवाई की संस्तुति  

  • संचालक कंपनी का अनुबंध निरस्त करने के साथ उसे काली सूची में डाला जाए और बैंक गारंटी जब्त की जाए। अवैध तरीके से प्लांट में दखल देने वाले दिल्ली की कंपनी के निदेशक पर भी कार्रवाई की जाए।
  • एसटीपी की निगरानी में लापरवाही बरतने वाले विभागीय अधिकारियों/कर्मचारियों और संदिग्ध बिलों के भुगतान के लिए जिम्मेदार जल संस्थान गोपेश्वर के कर्मियों पर कार्रवाई की जाए।
  • मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट में ऊर्जा निगम और जल संस्थान के बीच समन्वय के अभाव के लिए जिम्मेदार कार्मिकों पर भी कार्रवाई के लिए कहा गया है।
  • प्रदेश के समस्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व ऐसे प्रतिष्ठानों जहां विद्युत सुरक्षा में चूक की संभावना हो का विद्युत सुरक्षा आडिट कराने को कहा गया है। जिससे भविष्य में इस हादसे की पुनरावृत्ति न होने पाए।

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