Uttarakhand: ‘पेड़ वाले गुरुजी’ धन सिंह घरिया ने शुरू की मुहिम, वृक्षविहीन बदरिकाश्रम में लहलहाएगा भोज का जंगल
Tree Guru Dhan Singh Gharia उत्तराखंड के माणा गांव के शिक्षक धन सिंह घरिया ने बदरीनाथ धाम से माणा के बीच भोजपत्र का जंगल लगाने की अनूठी पहल की है। भोटिया जनजाति के लोग इस मुहिम में उनका साथ दे रहे हैं। अब तक 450 पौधे रोपे जा चुके हैं। इस पहल का उद्देश्य धार्मिक और पर्यटन गतिविधियों के लिए एक नए डेस्टिनेशन का निर्माण करना है।
देवेंद्र रावत, जागरण गोपेश्वर। भोटिया जनजाति के लोगों ने वृक्षविहीन बदरिकाश्रम क्षेत्र में भोजपत्र का जंगल खड़ा करने को मुहिम छेड़ी है और इसके अगुआ बने हैं चीन सीमा पर स्थित देश के प्रथम गांव माणा निवासी ‘पेड़ वाले गुरुजी’ शिक्षक धन सिंह घरिया। नमामि गंगे के सहयोग से शुरू की इस मुहिम के तहत अब तक चीन सीमा पर देश के प्रथम गांव माणा से बदरीनाथ धाम के बीच भोजपत्र के 450 पौधे लगाए जा चुके हैं।
चमोली जिले में समुद्रतल से 10,227 फीट की ऊंचाई पर स्थित माणा गांव को शास्त्रों में मणिभद्रपुरी कहा गया है। मान्यता है कि यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना की थी। पहले बदरीनाथ धाम से माणा गांव तक भोजपत्र के साथ बदरी (बेर) का घना जंगल था, लेकिन कालांतर में यह दोनों वृक्ष प्रजाति विलुप्त हो गई। हालांकि, माणा गांव से 10 किमी दूर स्वर्गारोहणी मार्ग पर आज भी भोजपत्र का घना जंगल मौजूद है, जिसे ‘लक्ष्मी वन’ नाम से जाना जाता है।
माणा के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने अपने बाल्यकाल में गांव के आसपास भोजपत्र के पेड़ देखे हैं, लेकिन वर्तमान में यह पूरा क्षेत्र वृक्षविहीन है। बीते 20 वर्षों के दौरान माणा से बदरीनाथ के बीच ईको टास्क फोर्स व बामणी गांव की महिलाओं ने ‘राजीव गांधी स्मृति वन’ और वन विभाग ने ‘बदरीश एकता वन’ स्थापित करने को पहल की थी। तब रोपे गए पौधे अब वृक्ष का रूप ले चुके हैं।
इस सफलता से उत्साहित होकर पेड़ वाले गुरुजी धन सिंह घरिया ने बदरीनाथ से माणा के बीच भोजपत्र का जंगल लगाने की पहल की। उन्होंने पौधे लगाने और उनके संरक्षण के लिए नमामि गंगा, एचसीएल फाउंडेशन व इंटेक फाउंडेशन से वार्ता की तो सभी ने सहयोग का भरोसा दिलाया।
इसके बाद शिक्षक धन सिंह ने ग्रामीणों की बैठक में स्पष्ट किया कि अगर वह भोजपत्र का जंगल विकसित करते हैं तो वह माणा गांव में एक नए डेस्टिनेशन के रूप में उभरकर सामने आएगा। क्योंकि, भोजपत्र को देखने के लिए आज भी देश-विदेश के लोग लालायित रहते हैं।
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