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Uttarakhand: ‘पेड़ वाले गुरुजी’ धन सिंह घरिया ने शुरू की मुहिम, वृक्षविहीन बदरिकाश्रम में लहलहाएगा भोज का जंगल

Tree Guru Dhan Singh Gharia उत्तराखंड के माणा गांव के शिक्षक धन सिंह घरिया ने बदरीनाथ धाम से माणा के बीच भोजपत्र का जंगल लगाने की अनूठी पहल की है। भोटिया जनजाति के लोग इस मुहिम में उनका साथ दे रहे हैं। अब तक 450 पौधे रोपे जा चुके हैं। इस पहल का उद्देश्य धार्मिक और पर्यटन गतिविधियों के लिए एक नए डेस्टिनेशन का निर्माण करना है।

By Jagran News Edited By: Nirmala Bohra Updated: Wed, 16 Oct 2024 06:40 PM (IST)
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Tree Guru Dhan Singh Gharia: शिक्षक धन सिंह घरिया। जागरण आर्काइव

देवेंद्र रावत, जागरण गोपेश्वर।  भोटिया जनजाति के लोगों ने वृक्षविहीन बदरिकाश्रम क्षेत्र में भोजपत्र का जंगल खड़ा करने को मुहिम छेड़ी है और इसके अगुआ बने हैं चीन सीमा पर स्थित देश के प्रथम गांव माणा निवासी ‘पेड़ वाले गुरुजी’ शिक्षक धन सिंह घरिया। नमामि गंगे के सहयोग से शुरू की इस मुहिम के तहत अब तक चीन सीमा पर देश के प्रथम गांव माणा से बदरीनाथ धाम के बीच भोजपत्र के 450 पौधे लगाए जा चुके हैं।

चमोली जिले में समुद्रतल से 10,227 फीट की ऊंचाई पर स्थित माणा गांव को शास्त्रों में मणिभद्रपुरी कहा गया है। मान्यता है कि यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना की थी। पहले बदरीनाथ धाम से माणा गांव तक भोजपत्र के साथ बदरी (बेर) का घना जंगल था, लेकिन कालांतर में यह दोनों वृक्ष प्रजाति विलुप्त हो गई। हालांकि, माणा गांव से 10 किमी दूर स्वर्गारोहणी मार्ग पर आज भी भोजपत्र का घना जंगल मौजूद है, जिसे ‘लक्ष्मी वन’ नाम से जाना जाता है।

माणा के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने अपने बाल्यकाल में गांव के आसपास भोजपत्र के पेड़ देखे हैं, लेकिन वर्तमान में यह पूरा क्षेत्र वृक्षविहीन है। बीते 20 वर्षों के दौरान माणा से बदरीनाथ के बीच ईको टास्क फोर्स व बामणी गांव की महिलाओं ने ‘राजीव गांधी स्मृति वन’ और वन विभाग ने ‘बदरीश एकता वन’ स्थापित करने को पहल की थी। तब रोपे गए पौधे अब वृक्ष का रूप ले चुके हैं।

इस सफलता से उत्साहित होकर पेड़ वाले गुरुजी धन सिंह घरिया ने बदरीनाथ से माणा के बीच भोजपत्र का जंगल लगाने की पहल की। उन्होंने पौधे लगाने और उनके संरक्षण के लिए नमामि गंगा, एचसीएल फाउंडेशन व इंटेक फाउंडेशन से वार्ता की तो सभी ने सहयोग का भरोसा दिलाया।

इसके बाद शिक्षक धन सिंह ने ग्रामीणों की बैठक में स्पष्ट किया कि अगर वह भोजपत्र का जंगल विकसित करते हैं तो वह माणा गांव में एक नए डेस्टिनेशन के रूप में उभरकर सामने आएगा। क्योंकि, भोजपत्र को देखने के लिए आज भी देश-विदेश के लोग लालायित रहते हैं।

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धार्मिक व पर्यटन गतिविधियों के लिए नया डेस्टिशन बनेगी माणा घाटी

धन सिंह बताते हैं कि अक्टूबर 2022 में माणा में जनसभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बदरिकाश्रम क्षेत्र में प्रकृति के संरक्षण और आजीविका बढ़ाने पर जोर दिया था। यह बात उनके दिलो-दिमाग में घर कर गईं और उन्होंने ग्रामीणों के साथ भोजपत्र के जंगल के जरिये धार्मिक व पर्यटन गतिविधियों के लिए नया डेस्टिनेशन बनाने को कवायद शुरू की।

इस वर्षाकाल के दौरान क्षेत्र में 1500 पौधे रोपने का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक 450 पौधे रोपे जा चुके हैं। बताया कि इन पौधों की देखरेख की जिम्मेदारी हर ग्रामीण की होगी। फिलहाल ग्रामीणों की चिंता यह है कि शीतकाल में बर्फ से इन पौधों को कैसे सुरक्षित रखा जाएगा। इसके लिए विशेषज्ञों से बातचीत कर समधान निकालने का प्रयास हो रहा है।

हर दृष्टि से उपयोगी है भोजपत्र

भोज वृक्ष की छाल का उपयोग कभी शास्त्र लेखन, राजा व अन्य लोगों के संदेश लेखन और देव कार्यों में किया जाता था। कई तरह दवाइयां बनाने में तो भोजपत्र का आज भी उपयोग होता है। नीती-माणा घाटी की महिलाएं तो कैलीग्राफी से भोजपत्र पर आरती, श्लोक, अभिनंदन आदि लिखकर अच्छी-खासी अर्जित कर रही हैं। उनकी भोजपत्र बनाई गई कलाकृतियों की भी काफी मांग है।

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माणा में तैयार की गई भोज की नर्सरी

शिक्षक धन सिंह ने बताया कि भोज वृक्ष का पेड़ 10 से 12 फीट ऊंचा होता है। यह पांच वर्ष में सुरक्षित आकार लेना शुरू कर देता है। माणा गांव में भोज की नर्सरी तैयार की गई है। भोज के पौधे पेड़ का आकार लेने के बाद तेजी से फैलते हैं।

बताया कि भोज की छाल समय-समय पर पेड़ से स्वयं अलग होती है। इसी को भोजपत्र के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। भोज वृक्ष के पत्ते मवेशियों समेत जंगली जानवरों का पसंदीदा भोजन हैं, इसलिए इन पौधों को जंगली जानवरों से बचाना सबसे ज्यादा चुनौती है। क्योंकि शीतकाल के दौरान माणा घाटी के सभी लोग निचले स्थानों पर आ जाते हैं।

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