Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

कहानी आस्था की… मां कड़ाई देवी मंदिर के पुजारी आज भी नंगे पांव करते हैं सुंई-विशुंग के 25 गांवों की परिक्रमा

चार द्योली श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। आज भी न केवल पांच गांव सुई और 20 गांव विशुंग बल्कि दूर दराज के लोग न्याय की गद्दी लगाने यहां पहुंचते हैं। चार द्योली में विशुंग स्थित आदि शक्ति मां भगवती (कड़ाई देवी) सुंई चौबेगांव स्थित मां भगवती आदित्य महादेव भूमिया देवता एवं पऊ गांव स्थित मस्टा मंडली और गलचौड़ा के डंगरियों और पुजारियों को प्रमुख स्थान मिला है।

By vinay sharmaEdited By: Shivam YadavUpdated: Wed, 16 Aug 2023 08:24 PM (IST)
Hero Image
दूध, अक्षत और घी अर्थात दूधाक्षत लाने के लिए घर-घर की परिक्रमा करते हैं चारद्योली के पुजारी: जागरण

चंपावत, संवाद सहयोगी: सुंई विशुंग की चार द्योली श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। आज भी न केवल पांच गांव सुई और 20 गांव विशुंग, बल्कि दूर दराज के लोग न्याय की गद्दी लगाने यहां पहुंचते हैं। चार द्योली में विशुंग स्थित आदि शक्ति मां भगवती (कड़ाई देवी) सुंई चौबेगांव स्थित मां भगवती, आदित्य महादेव, भूमिया देवता एवं पऊ गांव स्थित मस्टा मंडली और गलचौड़ा के डंगरियों और पुजारियों को प्रमुख स्थान मिला है। 

न्याय की गद्दी जिसे व्यास गद्दी भी कहा जाता है उसे बिना इन मंदिरों के डंगरियों एवं पुजारियों के नहीं लगाया जा सकता। इन मंदिरों के पुजारी आज भी पूरी तरह नियम धर्म में रहते हैं। पूरे वर्ष पर शुभ पर्व और त्योहार के दिन पैदल नंगे पांव 25 गांवों की परिक्रमा कर दूध, अक्षत और घी एकत्र कर मंदिरों में भोग लगाते हैं। 

कड़े नियमों में बंधे पुजारी

लोहाघाट से छह किमी दूर कर्णकरायण स्थित प्रसिद्ध मां कड़ाई देवी मंदिर, सुंई चौबेगांव स्थित मां भगवती मंदिर, आदित्य महादेव मंदिर एवं पऊ गांव के मस्टा मंडली के पुजारी साल भर तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं। 

कड़े नियमों में बंधे पुजारी एक साल तक जूते अथवा चप्पल भी नहीं पहनते। सर्दी हो या गर्मी, बर्फ गिरे या वर्षा, प्रत्येक पर्व में नंगे पांव 20 गांव विशुंग और पांच गांव सुंई की परिक्रमा कर घर-घर जाकर इन्हें देवी-देवताओं की पूजा के लिए चावल, दूध तथा घी लाना पड़ता है। 

मंदिर में बिताना पड़ता है पूरा साल

एक साल की अवधि में घर में चाहे कितने ही बड़े धार्मिक और पारिवारिक कार्यक्रम क्यों न हों, इन्हें मंदिर में ही रहना पड़ता है। 

कांटे के वृक्ष में मां कड़ाई का वास

चार द्योली में शुमार कर्णकरायत स्थित मां कड़ाई देवी मंदिर भक्तों की अगाध आस्था का प्रतीक है। यहां आने वाले भक्तों को मां दुर्गा की अलौकिक शक्ति से सीधा साक्षात्कार होता है। मंदिर में छोटे से कांटे के वृक्ष में मां कड़ाई का वास माना जाता है। हालांकि, यहां भव्य मंदिर भी बना है। 

इसी प्रकार सुंई चौबे गांव स्थित मां भगवती एवं आदित्य महादेव मंदिर में भी वर्षभर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। इन मंदिरों के दर्शन के बाद चार द्योली में शामिल पऊ के चनकांडे गांव स्थित मस्टा मंदिर के दर्शन करने जरूरी होते हैं, अन्यथा चार द्योली की परिक्रमा का फल नहीं मिलता। 

रामनवमी की रात लगाई जाती है न्याय की गद्दी 

चैत्र मास व शारदीय नवरात्र में रामनवमी की रात देव डांगरों की न्याय की गद्दी लगाई जाती है, जिसमें पांच गांव सुंई व 20 गांव विशुंग के देव डांगरों के शरीर में देवता अवतरित होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। दशहरे के दिन के दिन बुड़चौडा से गलचौड़ा चार द्योली होते हुए देव डांगर अस्त्र शस्त्रों को हाथ में लेकर गांवों की परिक्रमा कर मंदिर पहुंचते हैं। वहां मंदिर में विधि विधान पूर्वक देव डांगरों को जल से स्नान करा कर चावल व दूध की गाल खाई जाती है। 

विश्वास की डोर को आज भी मजबूत

रक्षाबंधन के दिन आदित्य महादेव मंदिर प्रांगण से उठने वाला मां भगवती का वायुरथ बिना रस्सों के सहारे सुई विशुंग के 25 गांवों की परिक्रमा करता है। पुजारियों द्वारा 25 गांवों से दूध अक्षत मांगने की परंपरा और मां भगवती के वायुरथ की परिक्रमा इन गांवों की जनता के बीच आपसी भाईचारे और धार्मिक विश्वास की डोर को आज भी मजबूत किए हुए है।

वर्तमान में ये पुजारी कर रहे पूजा

वर्तमान में विशुंग के मां कड़ाई मंदिर और सुंई के मां भगवती मंदिर के पुजारी का दायित्व गोविंद बल्लभ चौबे और आदित्य महादेव मंदिर के पुजारी का दायित्व गिरीश पुजारी निभा रहे हैं। मस्टा मंडली मंदिर के पुजारी का दायित्व केशव दत्त चनकन्याल के पास है।