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मा पूर्णागिरि धाम के दर्शन मात्र से होती है मुराद पूरी

मां पूर्णागिरि धाम के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

By JagranEdited By: Updated: Sun, 28 Mar 2021 10:37 PM (IST)
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मा पूर्णागिरि धाम के दर्शन मात्र से होती है मुराद पूरी

टनकपुर, दीपक सिंह धामी : सिंदुराभा त्रिनेत्राम मृतशशिकला खेचरीं रक्तवस्त्रया, पीनेन्तुड्ग स्तनाढ्यामभिवन विलसद्यौवनारंभ रम्याम। नाना लंकरायुक्ता सरसिजनया मिंदु संक्रातमूृर्ति देवीं पाशाकुशाख्याम भयवर कराम अन्नपूर्णा नमामि।।

अर्थात जिनकी अंग क्राति सिंदूर के सामान है। जो तीन नेत्रों से युक्त अमृतपूर्ण, शशिकला सदृश, आकाश में गमन करने वाली लाल वस्त्र से सुभोभित व विधिक अलंकारों से युक्त है। जिनके नेत्र कमल सदृश है। जिनकी मूर्ति चंद्रमा को संक्रात (कलाहीन) करने वाली है। जिनके हाथ अकुंश, अभय और वरद मुद्रा में सुभोभित है। उन अन्नपूर्णा देवी को मैं नमन करता हूं। श्रीमद् देवी भागवत पुरान में मा पूर्णागिरि की अराधना इसी तरह की गई है। टनकुपुर शहर से 24 किमी दूर अन्नपूर्णा चोटी में मा का धाम है। मान्यता है कि एक बार राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नही किया था। जब सती नाराज होकर वहा पहुंची तो वह अपने पति शिव को न बुलाए जाने से क्षुब्ध होकर यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपनी जान दे दी। भगवान शिव पार्वती के पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे तो अन्नपूर्णा चोटी पर जहा उनकी नाभि गिरी उस स्थल को पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली। दूसरी मान्यता है कि संवत 1621 में गुजरात के श्री चंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद जब चम्पावत के चंद राजा ज्ञान चंद के शरण में आए तो उन्हें एक रात सपने मे मा पूर्णागिरि नाभि स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश दिया और 1632 में यहा धाम की स्थापना कर पूजा अर्चना शुरू हुई। तब से ही यह स्थान आस्था, भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी बना है। यहा पहुंचने वाले हर भक्त की मुरीद पूरी होती है। यहा वर्ष भर श्रद्धालु शीश नवाते है। ======= मा के द्वारपाल हैं बाबा भैरवनाथ

टनकपुर : मा पूर्णागिरि धाम के पहुंचने से पहले मार्ग में भैरव बाबा का मंदिर स्थापित है। जहा वर्षभर धूनी जली रहती है। कहा जाता है कि बाबा भैरवनाथ के दर्शन बाद ही वह देवी के दर्शन को जाने की अनुमति देते है। बाबा भैरव को हनुमान का सारथी व शिव के काल का रूप भी माना जाता है। ======== कालिका मंदिर में भी की जाती है अर्चना

मा पूर्णागिरि धाम के नीचे कालिका क्षेत्र में मा कालिका का मंदिर भी है। जहा मा के दरबार के दर्शन को लौटने के बाद श्रद्धालु यहा भी अपना शीश नवाते है। पहले इस स्थान पर बकरों की बलि दी जाती थी, लेकिन प्रशासन के कडे़ रूख के बाद अब यह प्रथा बंद हो चुकी है। अब बकरे के बाल या नारियल तोड़कर यह रस्म निभाई जाती है। ========== ऐसे पंहुचे मा के द्वार

पूर्णागिरि पहुंचने के लिए दिल्ली, लखनऊ, देहरादून सहित देश के कई बडे शहरों से टनकपुर तक सीधी बस सेवाए है। साथ ही रेलवे द्वारा बड़ी रेल लाइन जुड़ने से यात्रियों को बेहतर सुविधाए उपलब्ध होगी। वहीं श्रद्धालु बसों व अपने निजी वाहनों से भी यहा पहुचते है। ======== सिद्धबाबा के दर्शन जरूरी

पूर्णागिरि मंदिर से ऊंची चोटी पर सिद्धबाबा ने आश्रम बना लिया था। जिससे क्रोधित होकर मा ने सिद्ध को शारदा नदी के पार नेपाल में फेंक दिया। जब वह अपने कुत्य के लिए गिड़गिड़ाया और माफी मागी तो मा ने कहा कि श्रद्धालुओं की यात्रा तभी पूरी होगी जब श्रद्धालु सिद्ध बाबा के दर्शन करेंगे। मान्यता है कि मा पूर्णागिरि धाम के दर्शन के बाद सिद्धनाथ मंदिर के दर्शन के बाद ही श्रद्धालुओं की यात्रा पूर्ण मानी जाती है।