Uttarakhand News: उत्तराखंड में जंगली जानवरों का आतंक, आधुनिक तकनीकी का उपयोग कर लगाया जा सकता है अंकुश
चंपावत में जंगली जानवरों के आतंक से निजात के लिए ठोस नीति व कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है। यहां के अधिकांश गांव जंगलों से लगे हुए हैं। जंगली सूअर हाथी और नीलगाय को गांवों की तरफ आने से रोकने के लिए सभी संबधित विभागों को सम्मलित प्रयास करने होंगे। जानवरों के गांवों में प्रवेश स्थल के आस-पास खाई खोदी जा सकती है।
By Jagran NewsEdited By: riya.pandeyUpdated: Sun, 24 Sep 2023 12:17 PM (IST)
संवाद सहयोगी, चंपावत : चंपावत में जंगली जानवरों के आतंक से निजात के लिए ठोस नीति व कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है। यहां के अधिकांश गांव जंगलों से लगे हुए हैं। जंगली सूअर, हाथी और नीलगाय को गांवों की तरफ आने से रोकने के लिए सभी संबधित विभागों को सम्मलित प्रयास करने होंगे।
सामूहिक प्रयास से नुकसान में लाई जा सकती है कमी
विभागीय अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सामूहिक प्रयास किए जाएं तो काफी हद तक जंगली जानवरों से फसलों को व्यापक नुकसान से बचाया जा सकता है। जानवरों के गांवों में प्रवेश स्थल के आस-पास खाई खोदी जा सकती है। झटका मशीन, सोलर फेंसिंग, रामबांस की बाड़ या कंटीली झाड़ियों की बाड़ की व्यवस्था कर आतंक को कम किया जा सकता है।
कारगर साबित हो रही है सोलर फेंसिंग
जिले के मैदानी इलाकों में कुछ जगहों पर सोलर फेंसिंग लगाई गई है, जो कारगर साबित हो रही है। इससे सीख लेते हुए शासन स्तर से वन विभाग को बजट जारी कर संवेदनशील गांवों में फेंसिंग लगाई जा सकती है। बंदर और लंगूरों को पकड़ने का अभियान समय-समय पर चलाया जाना भी नितांत आवश्यक है। बंदर और लंगूरों की संख्या कम करने के लिए बधियाकरण जरूरी कदम है। यह कार्य समय-समय पर किया जाए तो इन जानवरों की संख्या कम की जा सकती है।जंगलों के दोहन से गांवों का रुख कर रहे जानवर
वन विभाग की एसडीओ नेहा चौधरी का कहना है कि जंगलों का अत्यधिक दोहन होने से जंगलों में जानवरों का भोजन कम होना उनके गांवों की तरफ रुख करने का मुख्य कारण है। इसके लिए वन विभाग जंगलों में विभिन्न प्रजातियों के फलों के बीज का छिड़काव कर रहा है। आम लोग भी आसपास के जंगलों में फल पौधों का रोपण करें तो आने वाले समय में बंदर और लंगूरों को खेतों की ओर आने से रोका जा सकता है। लोगों को पेड़ पौधों की सुरक्षा के प्रति भी जागरूक करना जरूरी है। उनका मानना है कि इसके लिए वन विभाग, नगर पालिका, कृषि एवं उद्यान विभाग के साथ आम जन का भी सम्मलित प्रयास होना जरूरी है।
जंगली सूअरों के सिवा अन्य जानवरों को मारने की अनुमति नहीं
आतंकी सूअरों के सिवा अन्य किसी जंगली जानवर को मारने की अनुमति नहीं है। विशेष परिस्थितियों में ही किसी अन्य जानवर को मारा जा सकता है, लेकिन उसके लिए वन विभाग की अनुमति जरूरी है। सूअरों के मारने के लिए वर्ष 2020 से वन विभाग को नई गाइडलाइन जारी नहीं हुई है, जिस कारण विभाग इसकी अनुमति नहीं दे पा रहा है। बंदरों को मारने की भी अनुमति नहीं है। साथ में बंदरों के साथ लोगों की धार्मिक भावनाएं भी जुड़ी हैं, ऐसे में उन्हें पकड़कर दूर जंगलों में छोड़ना या फिर बधियाकरण करना एक मात्र उपाय है।मैदानी क्षेत्र में हाथियों और नीलगाय के आतंक को रोकने के लिए हाथी खाई खोदना और सोलर फेंसिंग लगाना कारगर उपाय है। यहां कई गांवों में ऐसा हुआ भी है, जिसका असर भी देखने में आ रहा है।वन विभाग एसडीओ नेहा चौधरी के अनुसार, पहाड़ों में जंगली सूअर, बंदर और लंगूरों का आतंक सार्वाधिक है। जंगल के आसपास लगे गांवों में ये जानवर ज्यादा नुकसान कर रहे हैं। अब नगरों में भी बंदरों की तादात बढ़ने लगी है। वन विभाग के साथ नगर पालिका, कृषि एवं उद्यान विभागों का सामूहिक प्रयास जंगली जानवरों के आतंक को कम करने में सहायक हो सकता है।
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