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कैसे निखरे छात्रों का हुनर, हर साल 10 हजार छात्र फायदों से वंचित

कौशल विकास पर जोर दे रही केंद्र सरकार राज्यों के लिए व्यावसायिक शिक्षा योजना लागू कर चुकी है। बावजूद इसके बड़ी संख्या में उत्तराखंड के छात्र लाभ से वंचित हो रहे हैं।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 20 Feb 2020 09:08 AM (IST)
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कैसे निखरे छात्रों का हुनर, हर साल 10 हजार छात्र फायदों से वंचित
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। हर साल 10 हजार छात्र व्यावसायिक शिक्षा के फायदे से वंचित हो रहे हैं। अटपटा लग सकता है, लेकिन यही सच है। कौशल विकास पर जोर दे रही केंद्र सरकार राज्यों के लिए व्यावसायिक शिक्षा योजना लागू कर चुकी है। बावजूद इसके बड़ी संख्या में छात्र लाभ से वंचित हो रहे हैं। 

उत्तराखंड में इस योजना में 200 सरकारी स्कूलों का चयन कर कक्षा नौ से 12वीं तक छात्रों को विभिन्न व्यावसायिक ट्रेडों का प्रशिक्षण दिया जाना है। इसके तहत ब्यूटी एंड वेलनेस, प्लंबर, रिटेल, हॉस्पीटेलिटी, इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर जैसे ट्रेडों का चयन किया गया है। शिक्षा महकमे का गैर पेशेवर रुख छात्रों के हुनर तराशने की मुहिम को कई सालों से चट किए हुए है।

पिछले चार वर्षों से व्यावसायिक शिक्षा के लिए ट्रेनिंग पार्टनर चुना नहीं जा सका। फाइल शासन के अनुभागों के चक्कर काट रही हैं। ये हाल तब है, जब केंद्रीय योजनाओं खासतौर पर कौशल विकास योजना को लेकर राज्य सरकार भी गंभीर होने का दावा कर रही है। 

शिक्षा को चाहिए खाद पानी

स्कूली शिक्षा को संसाधनों के खाद-पानी की जबर्दस्त दरकार है। गुलाबी योजनाओं और लुभावने वायदों ने आस तो खूब जगाई, लेकिन स्कूलों को जो चाहिए नहीं मिला। प्राथमिक के 615 और माध्यमिक के 92 स्कूलों में पीने का पानी नहीं है। हर घर को नल और पानी के संकल्प से शिक्षा और पेयजल महकमों ने दूरी बना ली है। 

370 प्राथमिक स्कूलों में शौचालय नहीं हैं। ये हाल तब है, जब केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों के एजेंडे में स्कूलों में शौचालय बनाने को ज्यादा तरजीह दी गई है। सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में रुख बेहद सख्त है। खेलों के मैदान और जरूरत के मुताबिक क्लास रूम को लेकर हालात दुरुस्त नहीं हैं। बुनियादी जरूरतों के बगैर सरकारी स्कूल भवन शिक्षा के नाम पर सिर्फ घेर-बाड़ साबित हो रहे हैं। अभिभावक अपने बच्चों को घेर-बाड़ से मुक्त कर निजी स्कूलों का रुख कर रहे हैं। शिक्षा महकमा सन्न है।

तो धन बरसाएंगे कॉलेज भवन

प्रदेश के करीब दो दर्जन सरकारी डिग्री कॉलेजों को अदद भवन मिलने जा रहे हैं। अभी 105 कॉलेजों में से सिर्फ 65 के पास ही भूमि और भवन दोनों हैं। जाहिर है जिन कॉलेजों के पास अपने भवन नहीं होंगे, वहां शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठने लाजिमी हैं। ऐसे कॉलेजों के सामने सबसे बड़ी समस्या यूजीसी से अनुदान नहीं मिलने की है। 

बगैर भवनों वाले कॉलेजों का नैक मूल्यांकन नहीं होता। नतीजतन बड़ी संख्या में कॉलेज नैक मूल्यांकन की दौड़ से बाहर होने को मजबूर हैं। ऐसे में डबल इंजन का दम काम आया। राज्य सरकार की कोशिशें तब रंग लाती दिखीं, जब राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान में केंद्र सरकार ने उदारता से धन थमा दिया। चालू वर्ष में 22 डिग्री कॉलेजों के अपने भवनों का सपना आकार लेने लगा है। आने वाले दिनों में यूजीसी अनुदान का बंद दरवाजा खुलेगा। उच्च शिक्षा के दिन बहुरने की उम्मीद है। 

मरीचिका के भंवर में रोजगार

प्रदेश सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष को रोजगार वर्ष घोषित किया तो रोजगार के इंतजार में बैठे बेरोजगारों के चेहरों पर चमक दौड़ पड़ी। महकमों ने फाइलें खंगालीं। जितने रिक्त पद मिले। बताया गया कि 20 हजार पदों पर भर्ती का सुनहरा योग बन रहा है। रोजगार के इन अरमानों पर तंत्र की चूक भारी पड़ रही है। फॉरेस्ट गार्ड परीक्षा इसकी नई बानगी है। चूक कहां और कैसे हुई, ये जांच के बाद सामने आएगा, लेकिन दो-तीन कोचिंग सेंटर पर अंगुली उठ रही है। परीक्षा पर खतरा उत्पन्न हो चुका है। 

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तकरीबन सालभर पहले ऊर्जा के निगमों में अवर अभियंताओं की भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी हुई थी। जांच के बाद भी न गड़बड़ी सामने आई, न ही रद की गई परीक्षा आज तक हो पाई। सरकारी भर्तियों में एक कदम आगे, फिर दो कदम पीछे, यही खेल बदस्तूर चलता रहा तो रोजगार की उम्मीदों को झटका लगना तय है।

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