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उत्तराखंड में 11 फीसद वन क्षेत्र आग के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील

विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में इस मर्तबा सर्दियों से ही जंगल लगातार धधक रहे हैं। अब जैसे-जैसे पारा उछाल भर रहा है उससे चिंता अधिक गहराने लगी है। वैसे तो जंगलों की आग के लिहाज से समूचा राज्य ही संवेदनशील है।

By Sumit KumarEdited By: Updated: Mon, 22 Mar 2021 06:10 AM (IST)
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विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में इस मर्तबा सर्दियों से ही जंगल लगातार धधक रहे हैं।
केदार दत्त, देहरादून: विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में इस मर्तबा सर्दियों से ही जंगल लगातार धधक रहे हैं। अब जैसे-जैसे पारा उछाल भर रहा है, उससे चिंता अधिक गहराने लगी है। वैसे तो जंगलों की आग के लिहाज से समूचा राज्य ही संवेदनशील है, मगर इसमें 11 फीसद वन क्षेत्र ज्यादा संवेदनशील है। इसे देखते हुए वन महकमे द्वारा वन क्षेत्रों की संवेदनशीलता के हिसाब से ही वहां मानव संसाधन और उपकरणों की व्यवस्था की जा रही है। साथ ही फायर वाचरों की संख्या बढ़ाने की तैयारी है तो वन प्रहरियों, वन पंचायतों, महिलाओं और स्वयं सहायता समूहों का सक्रिय सहयोग भी जंगलों में आग पर नियंत्रण में लिया जाएगा।

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 पर ही गौर करें तो आग के लिहाज से राज्य में अति, उच्च व अधिक संवेदनशील वन क्षेत्र 11.09 फीसद क्षेत्र में फैला है। सर्वेक्षण में भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि 21.66 फीसद वन क्षेत्र मध्यम संवेदनशील है, जबकि 67.25 फीसद कम संवेदनशील। इससे साफ है कि समूचा उत्तराखंड ही वनों की आग के दृष्टिकोण से संवेदनशील है। वर्तमान की तस्वीर देखें तो पिछले साल अक्टूबर से जंगल लगातार धधक रहे हैं और इनमें भी पर्वतीय जिलों के जंगल ज्यादा शामिल हैं। विभागीय आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर से अब आग की 668 घटनाओं में 832.96 हेक्टेयर जंगल झुलस चुका है। 8950 पेड़ आग से तबाह हुए हैं तो 39.2 हेक्टेयर में हुआ प्लांटेशन नष्ट हो गया है। चार व्यक्तियों को आग बुझाने के प्रयासों में जान गंवानी पड़ी है, जबकि दो घायल हुए हैं। ऐसे में आग की भयावहता को समझा जा सकता है। अब तापमान के उछाल भरने के साथ ही चिंता गहराने लगी है कि अभी से जंगलों के धधकने का ये हाल है तो आने वाले दिनों में क्या होगा। यही चिंता, वन विभाग के साथ ही प्रबुद्धजनों को सताने लगी है।

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उत्तराखंड के  नोडल अधिकारी (वनाग्नि)  मान सिंह का कहना है कि निश्चित रूप से आने वाला समय अधिक चुनौतियों भरा है, मगर विभाग ने आग से निबटने के लिए सभी इंतजाम किए हैं। वन क्षेत्रों की संवेदनशीलता के हिसाब से वहां वनकर्मियों, फायर वाचर आदि की तैनाती के साथ ही आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराए जा रहे हैं। अपै्रल में गर्मी बढऩे पर फायर वाचरों की संख्या बढ़ाई जाएगी। ग्रामीणों, वन पंचायतों का सक्रिय सहयोग भी जंगलों की आग को नियंत्रित करने में लिया जाएगा। यही नहीं, फायर लाइनों की सफाई का काम तेजी से चल रहा है। 

जंगल की आग (अक्टूबर 2020 से अब तक)

क्षेत्र----------घटनाएं--------- प्रभावित वन क्षेत्र---------झुलसे पेड़--------- प्लांटेशन क्षति---------- मृतक, झुलसे

गढ़वाल---------- 404---------- 462.2---------- 6350---------- 27.7---------- 02---------- 00

कुमाऊं---------- 247---------- 349.86---------- 2600---------- 8.3---------- 02---------- 02

वाइल्डलाइफ---------- 17---------- 20.9---------- 00---------- 3.0---------- 00---------- 00

(नोट: प्रभावित क्षेत्र व प्लांटेशन हेक्टेयर में और शेष संख्या में)

1560 ग्रामीण कर रहे सहयोग

जंगलों में आग पर काबू पाने में फिलवक्त विभिन्न क्षेत्रों में 1560 ग्रामीण सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा वन विभाग के 2723, राजस्व के सात, पुलिस व एनडीआरएफ के 26-26, एसडीआरएफ के 29 और पीआरडी के 08 कार्मिक आग बुझाने में लगे हैं। आग बुझाने में जुटी टीमें 266 वाहनों का प्रयोग कर रही हैं, जबकि तीन टैंकरों की मदद भी ली जा रही है।

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