उत्तराखंड में जंगल को आग से बचाएंगी 5000 महिलाएं, पढ़िए पूरी खबर
विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनों को आग से बचाने के लिए राज्य सरकार पहली बार एक अनूठी पहल करने जा रही है। जंगलों को आग से बचाने से संबंधित कार्यों में पांच हजार महिलाएं सक्रिय भागीदारी निभाएंगी।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 16 Mar 2021 10:05 AM (IST)
राज्य ब्यूरो, देहरादून। विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनों को आग से बचाने के लिए राज्य सरकार पहली बार एक अनूठी पहल करने जा रही है। जंगलों को आग से बचाने से संबंधित कार्यों में पांच हजार महिलाएं सक्रिय भागीदारी निभाएंगी। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सोमवार को सचिवालय में जंगल की आग की रोकथाम के सिलसिले में हुई समीक्षा बैठक में इसकी योजना बनाने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए। बैठक में उत्तराखंड प्रतिकरात्मक वन रोपण निधि प्रबंधन प्राधिकरण (कैंपा) के सहयोग से तैनात किए जाने वाले 10 हजार वन प्रहरियों को शुरुआत में सात हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय देने पर सहमति दी गई। मुख्यमंत्री ने आपदा प्रबंधन विभाग को जंगलों की आग पर नियंत्रण के मद्देनजर हेलीकाप्टर की व्यवस्था रखने के निर्देश भी दिए। यह भी तय हुआ कि आग के विकराल रूप धारण करने की स्थिति में एयर फोर्स की मदद भी ली जाएगी।
मुख्यमंत्री ने जंगल की आग की रोकथाम की समीक्षा करते हुए कहा कि फील्ड स्तर तक पर्याप्त बजट और उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए। उन्होंने कैंपा में स्वीकृत राशि को तत्काल फील्ड स्तर तक उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। साथ ही जंगलों को आग से बचाने के दौरान मृत व घायल कार्मिकों और नागरिकों के स्वजनों को अनुग्रह राशि अविलंब मुहैया कराने को भी कहा। उन्होंने आग की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली फायरलाइनों की ड्रोन से मॉनीटरिंग पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि आग से बचाव के मद्देनजर वन, पुलिस, राजस्व समेत अन्य संबंधित विभागों में बेहतर समन्वय जरूरी है। साथ ही जिलाधिकारी नियमित रूप से जंगल की आग के संबंध में समीक्षा करें। यदि जरूरी मानव संसाधन, उपकरण आदि की उपलब्धता में कोई समस्या हो तो इस बोर में शासन को अवगत कराएं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जंगलों को आग से बचाने में वन पंचायतों और स्थानीय निवासियों की सहभागिता बहुत जरूरी है। उन्होंने फारेस्ट फायर कंजरवेंसी सिस्टम विकसित कर इसके व्यापक प्रचार-प्रसार पर बल दिया। उन्होंने कहा कि स्थानीय निवासियों को जंगलों से मिलने वाले हक-हकूक का समय से वितरण हो, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये जिलाधिकारियों से जंगल की आग की रोकथाम की तैयारियों की जानकारी ली। बैठक में मुख्य सचिव ओमप्रकाश, प्रमुख सचिव वन आनंदबर्द्धन, सचिव अमित नेगी, नितेश झा, पीसीसीएफ राजीव भरतरी आदि मौजूद थे।
ये भी दिए निर्देश
- जंगलों में जानबूझकर आग लगाने वालों को चिह्नित किया जाए
- जंगल की आग से क्षति पर मानकों के अनुसार तत्काल राहत राशि प्रदान की जाए
- पिरुल एकत्रीकरण के समय पर भुगतान को प्रभावी मैकेनिज्म बनाया जाए
36 हजार हेक्टेयर में नियंत्रित दाहनसमीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री को बताया गया कि राज्य में प्रतिवर्ष 36 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में जंगल को आग से बचाने के लिए नियंत्रित दाहन (फुकान) किया जाता है। करीब 2700 किलोमीटर लंबी फायर लाइनों का रखरखाव किया जाता है। प्रतिवर्ष अग्निकाल में करीब सात हजार फायर वाचरों की तैनाती की जाती है। बताया गया कि राज्य में 40 मास्टर कंट्रोल रूम, 1317 कू्र-स्टेशन और 174 वाच टावर स्थापित किए गए हैं। जिला फायर समितियों की बैठक भी कर ली गई है।
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