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उत्तराखंड में एमबीबीएस की 75 सीटें बढ़ीं, काउंसिलिंग से पहले मचा घमासान

सवर्ण आरक्षण लागू करने के बाद अब इसका फायदा मेडिकल की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को मिलने जा रहा है। प्रदेश के तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 25-25 सीट का इजाफा हो गया है।

By BhanuEdited By: Updated: Sat, 22 Jun 2019 08:24 PM (IST)
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उत्तराखंड में एमबीबीएस की 75 सीटें बढ़ीं, काउंसिलिंग से पहले मचा घमासान
देहरादून, जेएनएन। केंद्र सरकार की ओर से चुनाव से पहले सवर्ण आरक्षण लागू करने के बाद अब इसका फायदा मेडिकल की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को मिलने जा रहा है। प्रदेश के तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 25-25 सीट का इजाफा हो गया है।

राज्य के तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की अभी कुल 350 सीटें हैं। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान श्रीनगर गढ़वाल में 100, राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में 100 और राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में 150 सीट हैं। इस साल से एमबीबीएस में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्र-छात्राओं को भी आरक्षण मिलना है। 

इस संबंध में एमसीआइ के महासचिव डॉ. आरके वत्स ने राज्य सरकार को बीती छह जून को पत्र भेजा था। इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्र-छात्राओं को भी एमबीबीएस में दाखिले में आरक्षण देने के लिए सीट वृद्धि का प्रस्ताव उपलब्ध कराने को कहा था। 

राज्य सरकार ने 25 फीसद अतिरिक्त कोटा यानी अतिरिक्त 87 सीट की मांग एमसीआइ से की थी। उक्त तीनों मेडिकल कॉलेजों में अतिरिक्त क्रमश: 25, 25 और 37 सीट देने का अनुरोध किया गया था। एमसीआइ ने तीनों मेडिकल कॉलेजों में 25-25 सीट बढ़ाई हैं। इसके बाद दून मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की 175 और हल्द्वानी व श्रीनगर में 125-125 सीट हो गई हैं। 

अपर सचिव चिकित्सा शिक्षा युगल किशोर पंत का कहना है कि 75 सीट बढ़ने  से छात्रों को लाभ मिलेगा। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 15 फीसद सीट ऑल इंडिया व 85 फीसद राज्य कोटा की होती हैं। इस लिहाज से आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं के लिए दाखिले के अधिक विकल्प खुल गए हैं। सीट बढ़ोत्तरी से भविष्य में मानव संसाधन की कमी भी काफी हद तक दूर होगी। 

एमबीबीएस-बीडीएस की काउंसिलिंग से पहले घमासान

प्रदेश में एमबीबीएस-बीडीएस की स्टेट काउंसिलिंग से पहले घमासान शुरू हो गया है। इस बार मामला सीट निर्धारण पर अटका है। अब तक निजी कॉलेजों में 50 फीसद दाखिले ऑल इंडिया व 50 फीसद राज्य कोटा के तहत किए जाते हैं। पर इस बार कॉलेजों ने विवि के एक्ट का हवाला देकर इस फॉर्मूले को मानने से साफ इन्कार कर दिया है। इस संदर्भ में चिकित्सा शिक्षा विभाग को पत्र भी भेजा है। यानि फीस का मामला हल हुआ तो अब नई मुसीबत मुंह बाहे खड़ी है। जाहिर है कि छात्रों को इस कारण परेशानी झेलनी होगी। 

बता दें, प्रदेश में शुल्क व सीट निर्धारण के मामले पर सरकार व निजी कॉलेजों के बीच लगातार खींचतान रही है। इस कारण प्रवेश के लिए छात्रों को तमाम मुश्किलों से जूझना पड़ा। शुल्क संबंधी मामला तो हाईकोर्ट तक पहुंचा। इस साल नीट-पीजी की काउंसिलिंग से ठीक पहले यह मामला सुलझा है। पर अब कॉलेज सीट निर्धारण पर अड़ गए हैं। 

दरअसल, इस वक्त प्रदेश में दो प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं। एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज व हिमालयन इंस्टीट्यूट। यह दोनों कॉलेज निजी विश्वविद्यालयों के अधीन संचालित होते हैं। विवि प्रबंधन का कहना है कि एक्ट के तहत शुल्क व सीट निर्धारण का उन्हें अधिकार है। क्योंकि एक्ट विधायिका ने बनाया है, इसका पालन होना चाहिए। 

इस मुताबिक एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज में 30 फीसद सीटें सरकारी व 70 फीसद मैनेजमेंट कोटा की हैं। जबकि हिमालयन इंस्टीट्यूट में 40 फीसद सीट उत्तराखंड के मूल निवासियों व 60 फीसद अन्य राज्यों के छात्रों के लिए हैं। अब अगर कॉलेज अपनी इस बात पर अड़े रहे तो छात्रों को समस्या आ सकती है। बहरहाल इसे लेकर 24 जून को शासन स्तर पर बैठक बुलाई गई है। उसी के बाद स्थिति स्पष्ट होगी। 

सुप्त अवस्था में शासन 

मेडिकल के दाखिले को लेकर सरकार व शासन की बेरुखी भी समझ से परे है। शुल्क संबंधी मामला सरकारी सुस्ती के कारण लंबे वक्त तक उलझा रहा। उस पर काउंसिलिंग को लेकर भी शासन अभी तक सुप्त अवस्था में है। 

यह हाल तब है जब यूपी, मध्य प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में काउंसिलिंग शेड्यूल जारी हो चुका है। एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय 25 जून से काउंसिलिंग कराने की तैयारी में है, पर इस पर अंतिम मुहर शासन स्तर से ही लगनी है। 

एक्ट के तहत हमें है अधिकार 

एसआरएचयू के कुलपति डॉ. विजय धस्माना के अनुसार, विवि एक्ट के तहत हमें शुल्क व सीट निर्धारण का अधिकार है। इसी अनुसार सीट निर्धारित हैं। जिसकी सूचना चिकित्सा शिक्षा विभाग को दे दी गई है। 

नहीं मिला कोई जवाब 

एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी भूपेंद्र रतूड़ी का कहना है कि सीट के संबंध में पत्र चिकित्सा शिक्षा विभाग को भेज दिया है। पर इस विषय में अभी कोई जवाब हमें नहीं मिला है। 

जल्द होगा निर्णय 

एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. विजय जुयाल के अनुसार, नीट की स्टेट काउंसिलिंग 25 जून से प्रस्तावित है। 24 जून को शासन में बैठक होनी है। इसमें तमाम बिंदुओं पर निर्णय लिया जाएगा। 

दून में ट्रॉमा सेंटर के लिए सितंबर डेडलाइन

दून मेडिकल कॉलेज की बर्न यूनिट व ट्रॉमा सेंटर इस साल के अंत तक काम करने लगेंगे। मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने इसकी डेडलाइन सितंबर तय की है। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने हाल में निर्माण कार्यों का जायजा लिया। उन्होंने बताया कि ढांचा खड़ा हो गया है। अब फिनीशिंग का कार्य चल रहा है। 

बता दें, प्रदेश के दून व हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में केंद्र की मदद से बर्न यूनिट व ट्रॉमा सेंटर का निर्माण किया जा रहा है। यह प्रदेश में अब तक के सबसे बड़े बर्न यूनिट व ट्रॉमा सेंटर होंगे। 

दून मेडिकल कॉलेज में जहां गढ़वाल क्षेत्र के मरीजों को उपचार मिलेगा, वहीं हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में इनके बन जाने से कुमाऊं मंडल के लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। उक्त ट्रॉमा लेवल-1 में अपग्रेड किए जाने का भी प्रस्ताव है। इस पर सैद्धांतिक सहमति भी बन चुकी है। 

मेडिकल कॉलेज लेवल-2 का ट्रॉमा सेंटर संचालित होते ही इस बावत प्रस्ताव देंगे। जिस पर उसी अनुरूप कार्रवाई की जाएगी। बहरहाल ट्रॉमा सेंटर बन जाने से न केवल दून बल्कि आसपास के लोगों को भी अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पाएंगी। यह ट्रॉमा सेंटर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र में स्तरीय व्यवस्थाएं नहीं हैं। 

पर्वतीय जिलों में भूस्खलन समेत दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की वजह जान-माल की हानि होती है। बहुत से लोग सिर्फ इलाज न मिलने की वजह से मर जाते हैं। इसके अलावा इन क्षेत्रों में आए दिन वाहन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। अगर ट्रॉमा सेंटर पूरी तरह सुसच्जित रहें तो बहुत से लोगों की जान बच सकती है। इसी तरह बर्न वार्ड के नाम पर राजधानी में बस कोरोनेशन अस्पताल में व्यवस्था है, पर यह वार्ड भी बुरी स्थिति में है।

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