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उत्तराखंड में दुर्घटनाएं लील रहीं बेजुबानों की जान, नौ साल के आंकड़ों पर डालें नजर

नौ साल के आंकड़ों पर ही नजर दौड़ाएं तो इस दौरान जंगल में हुए हादसों के अलावा सड़क और रेल दुर्घटनाओं में 196 गुलदार हाथी और बाघों की जान चली गई।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 19 Sep 2020 05:28 PM (IST)
उत्तराखंड में दुर्घटनाएं लील रहीं बेजुबानों की जान, नौ साल के आंकड़ों पर डालें नजर
देहरादून, केदार दत्त। वन्यजीव विविधता के लिए प्रसिद्ध 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन्यजीवों का फल-फूल रहा कुनबा सुकून देने वाला है, लेकिन जंगलों में लगातार बढ़ती दुर्घटनाएं बेजुबानों की जान ले रही हैं। आंकड़े इसकी तस्दीक रहे हैं। नौ साल के आंकड़ों पर ही नजर दौड़ाएं तो इस दौरान जंगल में हुए हादसों के अलावा सड़क और रेल दुर्घटनाओं में 196 गुलदार, हाथी और बाघों की जान चली गई। इनमें वन क्षेत्रों में गिरकर घायल हुए 154 जानवरों ने दम तोड़ा। इस सबके चलते वन्यजीव महकमे की परेशानी पर भी बल पड़े हैं।

जंगल में होने वाले हादसों के साथ ही वन क्षेत्रों से गुजर रहे सड़क और रेल मार्गों पर हुए हादसों को देखें तो इनमें प्रतिवर्ष औसतन 21 वन्यजीवों (गुलदार, हाथी व बाघ) की मौत हो रही है। हिरन समेत दूसरे वन्यजीवों को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो यह आंकड़ा कहीं अधिक बैठेगा। ऐसे में चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक है। हादसों में वन्यजीवों की निरंतर जान जाने का क्रम जारी रहने से सिस्टम की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लाजमी हैं। यह इस तरफ भी इशारा करता है कि हादसों में घायल वन्यजीवों के उपचार की या तो पुख्ता व्यवस्था नहीं है या फिर जंगल में पहाड़ी या खाई में गिरकर घायल वन्यजीवों की निगरानी को प्रभावी तंत्र विकसित नहीं हो पाया है।

इसके अलावा जंगलों से गुजर रहे हाईवे और रेल मार्गों पर वाहनों और ट्रेनों की तेज रफ्तार भी बेजुबानों की जान लेने पर आमादा है। असल में विकास और जंगल के मध्य बेहतर सामंजस्य का अभाव इस राह में भारी पड़ रहा है। दुर्घटना संभावित स्थलों में वन्यजीवों के गुजरने के लिए अंडर पास समेत दूसरी व्यवस्थाओं का अभाव है। ऐसे में बेजुबानों के सड़क और रेल मार्गों पर आते ही वे वाहनों और ट्रेन की चपेट में आ रहे हैं।

बेजुबानों की असमय मौत चिंताजनक

राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग भी मानते हैं कि दुर्घटनाओं में बेजुबानों की असमय मौत चिंताजनक है। वह बताते हैं कि जंगलों में लंबी दूरी की गश्त बढ़ाने के साथ ही नियमित गश्त में तेजी लाई गई है, जिससे वन्यजीवों पर निरंतर नजर रहे। इससे कहीं भी कोई दुर्घटना में घायल या बीमार वन्यजीव के नजर आने पर उसे तत्काल उपचार मुहैया कराने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सकेंगे। जहां तक रेल से होने वाले हादसों में वन्यजीवों की जान जाने की बात है तो ट्रेनों की रफ्तार पर अंकुश लगाने के लिए रेलवे विभाग से निरंतर संपर्क किया जा रहा है। साथ ही अन्य कदम भी उठाए जा रहे हैं। इसी तरह जंगलों से गुजरने वाले हाईवे पर वाहनों की गति सीमा नियंत्रित करने के लिए संबंधित विभाग से संपर्क साधा गया है।

जंगलों में हुए हादसों में वन्यजीवों की मौत

वर्ष,    गुलदार, बाघ,  हाथी

2012,   17,    03,   00

2013,   09,    00,   03

2014,   08,    03,   08

2015,   09,    00,   05

2016,   11,    02,   06

2017,   25,    02,   09

2018,   10,    00,   05

2019,   10,    00,   04

2020,   04,    01,   01   (31 जुलाई 2020 तक)

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रेल और सड़क हादसों में मरे बेजुबान

वन्यजीव,   संख्या

गुलदार,      26

हाथी,        15

बाघ,         01

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