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भरल के अंधेपन के उपचार को एक्शन प्लान

गंगोत्री नेशनल पार्क में अज्ञात बीमारी के चलते भरल में अंधेपन की रोकथाम और ऐसी दो भरल की मौत के मामले में एनजीटी के कड़े रुख के बाद अब राज्य सरकार हरकत में आई है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 09 Mar 2018 11:10 AM (IST)
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भरल के अंधेपन के उपचार को एक्शन प्लान
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: गंगोत्री नेशनल पार्क में अज्ञात बीमारी के चलते हिमालयन ब्ल्यू शीप (भरल) में अंधेपन की रोकथाम और ऐसी दो भरल की मौत के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के कड़े रुख के बाद अब राज्य सरकार हरकत में आई है। एनजीटी के निर्देशों के क्रम में भरल को अज्ञात बीमारी से बचाने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के सहयोग से एक्शन प्लान तैयार कर लिया गया है। अपर मुख्य सचिव वन डॉ.रणवीर सिंह की मौजूदगी में बुधवार को सचिवालय में हुई बैठक में यह जानकारी दी गई। बताया गया कि इस बारे में 12 मार्च से पहले एनजीटी को अवगत कराया जाएगा।

एनजीटी ने इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न सिर्फ उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई, बल्कि ये भी कहा था कि वह भरल के अंधेपन की रोकथाम में असफल रही है। साथ ही भरल के उपचार के लिए उत्तराखंड सरकार, नेशनल बायोडायवर्सिटी अथॉरिटी को संयुक्त रूप से एक्शन प्लान तैयार करने के निर्देश दिए। अब उत्तराखंड सरकार इस दिशा में हरकत में आई है और एक्शन प्लान को लेकर कवायद प्रारंभ की गई।सूत्रों के मुताबिक भारतीय वन्यजीव संस्थान और वन विभाग के साथ ही नेशनल बायोडायवर्सिटी अथॉरिटी ने मिलकर एक्शन प्लान तैयार कर लिया है। इसके तहत गंगोत्री नेशनल पार्क के उन क्षेत्रों में सघन अभियान चलेगा, जहां भरल में अंधेपन के लक्षण पाए गए थे। यही नहीं, भरल के उपचार और यह रोग अन्यत्र न फैले इसके लिए कार्ययोजना तैयार की गई है। वहीं, सचिवालय में अपर मुख्य सचिव वन की अध्यक्षता में हुई बैठक में भी एक्शन प्लान पर गहन मंथन हुआ। बैठक में वन विभाग, वन्यजीव संस्थान और शासन के अधिकारी मौजूद थे।

यह है मामला

गंगोत्री नेशनल पार्क में भरल में अंधेपन के लक्षणों का खुलासा तब हुआ था, जब गत वर्ष सितंबर में बीएसएफ के अभियान दल ने देखा कि एक भरल की आंखें बाहर लटक रही हैं और उससे खून भी निकल रहा है। अंधेपन के कारण खाई में गिरने से दो भरल मृत भी पाई गई थी। हालांकि, तब विभाग ने वहां टीमें भेजने के साथ ही भरल को ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। हालांकि, मृत एक भरल के सिर के कुछ नमूने इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट  (आइवीआरआई) बरेली भेजे गए, लेकिन रोग के बारे में स्पष्ट अब तक नहीं हो पाया है। यही नहीं, बाद में विभाग भी इसे लेकर ढुलमुल हो गया।

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