उत्तराखंड गठन के बाद घटा मंडुवा और झंगोरा का क्षेत्रफल, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में खरीफ की मुख्य फसलों में शुमार मंडुवा व सांवा का रकबा घट रहा है। ऐसे में सरकार की पेशानी पर भी बल पड़े हैं।
By Edited By: Updated: Tue, 09 Jul 2019 08:50 PM (IST)
देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में खरीफ की मुख्य फसलों में शुमार मंडुवा व सांवा (झंगोरा-मादिरा) का रकबा घट रहा है। राज्य गठन से लेकर अब तक की तस्वीर इसकी तस्दीक कर रही है। वर्ष 2001-02 में 1.31 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मंडुवा की खेती होती थी, वह 2018-19 में घटकर करीब 92 हजार हेक्टेयर पर आ गई। इसी तरह झंगोरा के क्षेत्रफल भी 18 हजार हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है। ऐसे में सरकार की पेशानी पर भी बल पड़े हैं। वजह ये कि देश-दुनिया में पौष्टिकता से लबरेज मंडुवा-झंगोरा की मांग लगातार बढ़ रही है। इसे देखते हुए अब इन फसलों के लिए क्लस्टर आधारित कृषि को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार को उम्मीद है कि केंद्र की परंपरागत कृषि विकास योजना का संबल मिलने पर इस वर्ष वह मंडुवा-झंगोराका क्षेत्रफल बढ़ाने में सफल रहेगी।
मंडुवा और झंगोरा राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों की महत्वपूर्ण परंपरागत फसलों में शामिल हैं। खरीफ में मंडुवा दूसरी व झंगोरा तीसरी मुख्य फसल है। असिंचित भूमि में उगाई जाने वाली वर्षा आधारित यह फसलें मृदा संरक्षण के साथ ही सूखे की स्थिति को सहन करने की क्षमता रखती हैं। पौष्टिकता से लबरेज होने के कारण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इनकी मांग में भारी इजाफा हुआ है।
इसे देखते हुए राज्य गठन के बाद यहां की सरकारों ने मंडुवा-झंगोरा को बढ़ावा देने की बात तो कही, मगर इसके लिए गंभीरता से धरातल पर प्रयास नहीं हो पाए। नतीजा, शुरुआती 10 वर्षों में दोनों फसलों के निरंतर घटते क्षेत्र व घटते उत्पादन के रूप में सामने आया। यही कारण भी रहा कि पूर्व में राज्य में जैविक ढंग से उत्पादित मंडुवा की जापान तक से मांग आई, लेकिन उत्पादन कम होने के कारण इसे पूरा नहीं किया जा सका था।
अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2001-02 में 131779 हेक्टेयर क्षेत्र में हो रही मंडुवा की खेती वर्ष 2010-11 में घटकर 119207 हेक्टेयर पर आ गई। इसके बाद मंडुवा की उत्पादकता पर तो ध्यान केंद्रित किया गया, मगर क्षेत्रफल में इजाफा नहीं हो पाया। वर्ष 2018-19 में मंडुवा का क्षेत्रफल घटकर 91937 हेक्टेयर पर आ गया। ऐसी ही स्थिति झंगोरा के मामले में भी रही। 2001-02 में 66907 हेक्टेयर में झंगोरा पैदा हो रहा था, मगर 2018-19 में यह 48747 हेक्टेयर पर आ गया। ऐसे में दोनों फसलों की उत्पादकता में उतार-चढ़ाव आता रहा।
हालांकि, वर्ष 2014 में केंद्र में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद मोदी सरकार ने कृषि को तवज्जो देते हुए किसानों की आय दोगुना करने की मुहिम छेड़ी। बावजूद इसके राज्य में मंडुवा-झंगोरा के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी नहीं हो पाई। केंद्र सरकार द्वारा अब परंपरागत कृषि विकास योजना में इन परंपरागत फसलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। राज्य की मौजूदा सरकार ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। इसके लिए मंडुवा व झंगोरा की खेती क्लस्टर आधार पर किए जाने को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इनमें में है ये पोषक तत्व
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- पोषक तत्व------मंडुवा--------झंगोरा
- जल---------------13.1-------11.9
- प्रोटीन-------------7.3--------6.2
- वसा---------------1.3--------2.2
- खनिज------------2.7---------4.4
- रेशा---------------3.6----------9.8
- कार्बोहाइड्रेट------72.0--------65.5
- कैल्शियम--------344---------20,
- फॉस्फोरस--------283---------280,
- लोहा---------------6.4---------2.9,
- (नोट: कैल्शियम, फॉस्फोरस व लोहा मिग्रा में, शेष ग्राम में। स्रोत : नवदान्या संस्था)