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उत्तराखंड में बर्फ की मात्रा 30 सालों में 36.75 प्रतिशत घटी, गर्मी के प्रभाव से स्नो लाइन भी सरक रही ऊपर

Snow Decreased in Uttarakhand उत्तराखंड के ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं। बर्फ की मोटी चादर निरंतर पतली हो रही है और उसकी जगह जल्द प्रभावित होने वाली पतली चादर में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिल रही है। जलवायु परिवर्तन और गर्मी के बढ़ते प्रभाव से स्नो लाइन भी ऊपर की तरफ सरक रही है।

By Jagran News Edited By: Nirmala Bohra Updated: Fri, 27 Sep 2024 05:13 PM (IST)
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Snow Decreased in Uttarakhand: मिजोरम विश्वविद्यालय (आइजोल) के ताजा शोध में सामने आई जानकारी। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

सुमन सेमवाल, जागरण देहरादून। Snow Decreased in Uttarakhand: उत्तराखंड या सेंट्रल हिमालय के ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे से जूझ रहे हैं। बर्फ की मोटी चादर निरंतर पतली हो रही है और उसकी जगह जल्द प्रभावित होने वाली पतली चादर में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिल रही है। जलवायु परिवर्तन और गर्मी के बढ़ते प्रभाव से स्नो लाइन भी ऊपर की तरफ सरक रही है। यह चौंकाने वाली जानकारी मिजोरम विश्वविद्यालय (आइजोल) के ताजा शोध में सामने आई है।

यूनाइटेड स्टेट्स जियोलाजिकल सर्वे (यूएसजीएस) के आंकड़ों पर आधारित इस शोध को प्रतिष्ठित अर्थ सिस्टम्स एंड एनवायरमेंट, स्प्रिंगर नेचर, इंपैक्ट फैक्टर में प्रकाशित किया गया है। मिजोरम यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती और रिसर्च स्कालर सुरजीत बनर्जी के अध्ययन के मुताबिक उत्तराखंड के ग्लेशियरों में बर्फ की स्थिति का आकलन वर्ष 1991 से 2021 के आंकड़ों के आधार पर किया गया।

बर्फ की मोटी चादर पतली चादर में परिवर्तित

30 वर्षों की अवधि में पाया गया कि बर्फ की मोटी परत (ग्लेशियर का मुख्य भाग) 10 हजार 768 घन किलोमीटर थी, जो अब घटकर महज 3258.6 घन किलोमीटर रह गई है। बर्फ की मोटी चादर पतली चादर में परिवर्तित हुई तो यह 3798 घन किलोमीटर से बड़कर 6863.56 घन किलोमीटर पहुंच गई। जिसका सीधा मतलब है कि ग्लोबल वार्मिंग के असर के कारण अधिक समय तक टिकी रहने वाली बर्फ की मोटी चादर निरंतर घट रही है।

उच्च हिमालय के क्षेत्रों में बढ़ते मानवीय दखल और निरंतर बढ़ते गर्म दिनों के कारण स्नो लाइन वर्ष 1991 से लेकर वर्ष 2021 के बीच 700 मीटर ऊपर सरक गई है। यानी पूर्व में स्नो कवर आदि के रूप में बर्फ का जो दागरा निचले क्षेत्रों तक सालभर नजर आता था, वह अब समाप्त होता जा रहा है।

4881 घन किलोमीटर घट गई बर्फ की मात्रा

सीनियर प्रोफेसर विश्वभर सती के मुताबिक वर्ष 1991 में उत्तराखंड में बर्फ की मात्रा 13 हजार 281 घन किलोमीटर थी, जो वर्ष 2021 में घटकर 8400 घन किलोमीटर रह गई है। 30 वर्षों में 4881 घन किलोमीटर बर्फ कम होना बेहद चिंता की बात है।

शोध के प्रमुख बिंदु

  • गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान, ऊपरी भागीरथी जल्याही क्षेत्र और टॉस नदी बेसिन में बर्फ की चादर के नुकसान और विखंडन की स्थिति अधिक तीव्र है।
  • इन क्षेत्रों में अल्प समय में बर्फ के बनने और पिघलने की गति तेज है।
  • केदारनाथ के ऊपरी क्षेत्रों में भी बर्फ की मोटी चादर तेजी से कम हो रही है।
  • ग्लेशियरों में आ रहे बदलाव के कारण कृषि के लिए जल उपलब्धता में कमी आ सकती है।
  • अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में तीव्रता आएगी।
  • नैनीताल क्षेत्र में बर्फ की आवृति में कमी पाई गई है।
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