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दून में भारतीय वन्यजीव संस्थान में वार्षिक शोध संगोष्ठी का आयोजन, देश में चीतों के भविष्य को लेकर सुझाया उपाय

भारत में चीतों को सुरक्षित रखने के लिए इनकी आनुवांशिकी (जेनेटिक्स) में सुधार करना होगा। यह तभी हो पाएगा जब चीतों की संख्या बढ़ेगी। इसी के मद्देनजर भारत में चीतों की संख्या को बढ़ाकर 60 तक करने का लक्ष्य रखा गया है। वार्षिक शोध संगोष्ठी में वरिष्ठ विज्ञानी डा. कमर कुरैशी ने कहा कि वर्तमान में मध्य प्रदेश के नौरादेही अभ्यारण्य में 14 वयस्क व एक अवयस्क चीता है।

By Jagran NewsEdited By: riya.pandeyUpdated: Fri, 22 Sep 2023 02:19 PM (IST)
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देश में चीतों के भविष्य को लेकर सुझाया उपाय
जागरण संवाददाता, देहरादून : भारत में चीतों को सुरक्षित रखने के लिए इनकी आनुवांशिकी (जेनेटिक्स) में सुधार करना होगा। यह तभी हो पाएगा जब चीतों की संख्या बढ़ेगी। इसी के मद्देनजर भारत में चीतों की संख्या को बढ़ाकर 60 तक करने का लक्ष्य रखा गया है। 

भारतीय वन्यजीव संस्थान में आयोजित वार्षिक शोध संगोष्ठी में वरिष्ठ विज्ञानी डा. कमर कुरैशी ने कहा कि वर्तमान में मध्य प्रदेश के नौरादेही अभ्यारण्य में 14 वयस्क व एक अवयस्क चीता है। इस क्षेत्र में 20 चीते रह सकते हैं। इसी के अनुरूप अभ्यारण में इंतजाम किए जा रहे हैं। 

चीतों की संख्या को बढ़ाकर 60 तक किए जाने का लक्ष्य

इसके अलावा गांधी सागर अभ्यारण्य के 80 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फेंसिंग का कार्य अंतिम चरण में है। कुछ और चीते यहां लाए जाएंगे। कुल मिलाकर चीतों की संख्या को बढ़ाकर 60 तक किया जाना है। जब चीतों की संख्या अधिक होगी तो उनकी आनुवांशिकी में सुधार की उम्मीद उतनी ही बढ़ जाएगी। इससे उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ेगी। 

किसी भी विशेषज्ञ ने नहीं लगाया था मौत का अनुमान

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डा कमर कुरैशी के मुताबिक, जब चीतों को भारत लाया गया तो किसी भी विशेषज्ञ ने यह अनुमान नहीं लगाया था कि इनकी मौत भी हो सकती है। क्योंकि नामीबिया और भारत में तापमान (गर्मी और सर्दी) एक दूसरे से विपरीत समय में होती है। यही कारण है कि उन्हें यहां के वातावरण में ढलने में अधिक चुनौती का सामना करना पड़ा। इसके चलते वह विशेष किस्म की त्वचा संबंधी बीमारी की चपेट में आ गए। जिसके चलते अब तक छह चीतों की मौत हो चुकी है। हालांकि अब वह नए माहौल में ढलने लगे हैं। 

10 किलोमीटर में सिमट गया कार्बेट में बाघों का दायरा

वार्षिक शोध संगोष्ठी के दौरान यह बात भी सामने आई है कि उत्तराखंड के कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों का दायरा आठ से 10 वर्ग किलोमीटर में सिमट कर रह गया है। अब यहां इससे अधिक की गुंजाइश नहीं है। इसके चलते बाघ बाहर आएंगे और मानव-बाघ संघर्ष की स्थिति बढ़ेगी। 

संगोष्ठी के दौरान विशेषज्ञों ने कार्बेट टाइगर रिजर्व और काजीरंगा टाइगर रिजर्व में बाघों के प्राकृतिक वास्थल का घनत्व बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अमूमन यह दायरा 20 से 40 वर्ग किलोमीटर तक होता है। कार्बेट में यह दायरा आठ से 10 वर्ग किलोमीटर तक हो जाने के चलते अपनी सीमा पूरी कर चुका है। अगर इस समय इस दिशा में कुछ नहीं किया गया तो बाघ और मानव संघर्ष की चुनौतियां बढ़ जाएंगी। 

कोरोना के बाद अब हुई शोध संगोष्ठी

भारतीय वन्यजीव संस्थान की वार्षिक शोध संगोष्ठी कोरोना संक्रमण के बाद अब की जा रही है। बीते गुरुवार को शुरू की गई दो दिवसीय शोध संगोष्ठी में देशभर से जुटे शोधार्थियों ने पहले दिन अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। जिसमें मुख्य रूप से बाघ, हाथी, चीते, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, डाल्फिन, डुगोंग, वाइल्ड बोर से संबंधित शोध सामने रखे गए। कई संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण को लेकर भी संस्तुतियां की गईं। 

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इस अवसर पर संस्थान के निदेशक वीरेंद्र तिवारी, शोध समन्वयक डा. बितापी सी सिन्हा, डीन डा एस सत्यकुमार, प्रो. कमर कुरैशी, डा. बिलाल हबीब आदि उपस्थित रहे।

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