आयुर्वेद विवि में रोका गया चार प्रोफेसरों का वेतन, जानिए वजह
आयुर्वेद विवि के कुलसचिव रामजी शरण ने वेटिंग लिस्ट पर की गई चार प्रोफेसरों की नियुक्ति को अवैध बताते हुए उनका वेतन रोक दिया है।
By Edited By: Updated: Sat, 18 May 2019 04:40 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों में है। विवि के कुलसचिव रामजी शरण ने वेटिंग लिस्ट पर की गई चार प्रोफेसरों की नियुक्ति को अवैध बताते हुए उनका वेतन रोक दिया है।
बता दें, विवि में विभिन्न विषयों में चयन प्रक्रिया के तहत एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। छह से सात महीने काम करने के बाद अन्यत्र चयन होने से उन्होंने नौकरी छोड़ दी। नियमानुसार यदि रिक्त पद पर नियुक्ति के बाद कोई नौकरी छोड़ता है तो नियमत: वह पद रिक्त ही माना जाता है और उस पद पर दोबारा विज्ञप्ति जारी होती है। यहां विवाद यह है कि इन छोड़े हुए पदों पर सीधे वेटिंग से नियुक्ति कर ली गई। इसमें एक पद पर तो वेटिंग में प्रथम व्यक्ति का इंतजार तक नहीं किया गया।
इसके बजाए वेंटिंग में दूसरे स्थान पर रहे व्यक्ति को बुला लिया गया। सूत्रों की माने तो तत्कालीन प्रभारी कुलसचिव अदाना ने वीसी से अनुमोदन लेकर यह नियुक्तिया कीं। पर वर्तमान कुलसचिव ने इसे नियमों का उल्लंघन बताया है। जिसके चलते वेतन रोक दिया गया है। अधिकारियों के बीच छिडा संग्राम आयुर्वेद विवि में अधिकारियों के बीच फिर संग्राम छिड़ गया है। इस बार टकराव वर्तमान और पूर्व प्रभारी कुलसचिव के बीच है। कुलसचिव रामजी शरण ने पूर्व प्रभारी कुलसचिव एवं डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. राजेश अदाना के कार्यकाल की तमाम नियुक्तियों, टेंडर और खरीद समेत 17 बिंदुओं पर जाच बैठा दी है।
दरअसल, आयुर्वेद विवि के एक्ट के मुताबिक कोई भी नियुक्ति शासन से अनुमोदन लिए बिना नहीं की जा सकती। पर कई नियुक्तियों में शासन के किसी अधिकारी को भरोसे में नहीं लिया गया। कई गैर सृजित पदों तक पर नियुक्तिया की गई। जबकि कुछ उपनल कर्मियों को भी मनमाने ढंग से उच्चीकृत कर दिया गया। कुलसचिव ने डॉ. अदाना द्वारा गैर वाजिब ढंग से रखे गए पीएसओ, क्लर्क समेत पांच कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
नियुक्तियां ही नहीं टेंडर प्रक्रिया पर भी सवाल विवि में इंजीनियर, मेडिकल इंजीनियरिंग टेक्नीशियन सहित कई पद सृजित कर मनमाने ढंग से नियुक्ति की गई। इनके लिए शासन से अनुमति तक नहीं ली गई। इसके अलावा टेंडर प्रक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं। बताया गया है कि विवि में कैंटीन का ठेका एक बड़े नेता के भाई को दे दिया गया है। यहा भी टेंडर प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। वहीं, विवि में जो सिक्योरिटी एजेंसी काम कर रही थी, उसने समय पूरा होने के बाद काम छोड़ दिया। विवि ने इसकी टेंडर प्रक्रिया कराने के बजाए सीधे किसी अन्य एजेंसी को ठेका दे दिया।
आयुर्वेद विवि के पूर्व प्रभारी कुलसचिव और डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. राजेश कुमार अदाना ने बताया कि मेरे प्रभारी कुलसचिव रहते हुए जो भी कार्य हुए हैं वह सब नियमानुसार हैं। ई-टेंडर प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद सभी खरीद की गई। प्राध्यापकों की नियुक्तियां वीसी और कार्य परिषद के अनुमोदन के बाद एक साल के अंदर नियमानुसार पूर्ण प्रक्रिया अपनाते हुए की गई हैं।
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