उत्तराखंड में एक और घोटाला, देहरादून नगर निगम की भूमिका भी संदिग्ध
Dehradun Hoarding Scam उत्तराखंड में एक और घोटाला सामने आया है इस बार देहरादून नगर निगम की भूमिका संदिग्ध है। होर्डिंग और यूनिपोल को लेकर अनियमितताएं सामने आई हैं जिससे निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। करीब 10 साल तक निगम मूकदर्शक बना रहा और अब बड़े अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है। इस खबर में हम आपको इस घोटाले की पूरी जानकारी देंगे।
जागरण संवाददाता, देहरादून। Dehradun Hoarding Scam: दून में होर्डिंग और यूनिपोल को लेकर सामने आ रहे घोटाले ने एक बार फिर नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। करीब 10 वर्ष तक होर्डिंग को लेकर अनियमितताएं होती रहीं और निगम मूकदर्शक बना रहा।
करीब दो महापौर के कार्यकाल और कई नगर आयुक्त बदलने के बावजूद निगम यह ढर्रा नहीं बदल सका। अब सवाल यह है कि वर्षों तक होती रही गड़बड़ी में निगम के किन कार्मिकों की मिलीभगत रही?
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बड़े अधिकारियों की भूमिका हमेशा सवालों में
होर्डिंग कारोबार में नगर निगम के बड़े अधिकारियों की भूमिका हमेशा सवालों में रही है। होर्डिंग कंपनी से साठगांठ कर टेंडर आवंटन हो या फिर शहर में अवैध होर्डिंग पर कार्रवाई से हाथ पीछे खींचने का मामला हो। यही वजह है कि वर्षों तक शहर में होर्डिंग के नए टेंडर ही नहीं हुए।
वर्ष 2015 में शहर की 191 साइटों के लिए तत्कालीन महापौर विनोद चमोली के कार्यकाल में दो वर्षों के लिए टेंडर हुए। तब ये टेंडर पहले से ही दून शहर में होर्डिंग का जिम्मा संभाल रही दिल्ली की कंपनी 'टवेंटी फोर इंटू सेवन को दिया गया। इसके तुरंत बाद ही यह टेंडर विवादों में आ गया।
सिंडिकेट बनाकर टेंडर उठाने के आरोप लगे और एक कंपनी हाईकोर्ट चली गई। तब टेंडर निरस्त कर नए टेंडर कराने की बात चल रही थी कि टवेंटी फोर इंटू सेवन भी हाईकोर्ट पहुंच गई और हाईकोर्ट ने वर्ष 2015 में ही शहर में नए टेंडर पर रोक लगा दी थी।
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