जानिए कब और कैसे हुई गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना, इन शब्दों के साथ शुरू होता है इतिहास
पांच मई 1887 को चौथी गोरखा को बटालियन क्षेत्र के कालौडांडा पहुंची इसके बाद तत्कालीन वायसराय लाड लैंसडौन के नाम पर लैंसडौन से जाना जाने लगा। 1891 में 2-3 गोरखा रेजीमेंट की दो कंपनियों से एक गोरखा पलटन 2-3 क्वीन अलेक्टजेन्टास आन खड़ी की गई।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 15 Jan 2022 04:03 PM (IST)
अनुज खंडेलवाल, लैंसडौन। एक कौम जो बलभद्र सिंह नेगी जैसा आदमी पैदा कर सकती है, उनकी अपनी अलग बटालियन होनी चाहिए। अफगान युद्ध में सूबेदार बलभद्र सिंह के अद्वितीय साहस और वीरता को देखकर तत्कालीन कमांडर इन-चीफ मार्शल एफएस राबर्ट्स के इन शब्दों के साथ शुरू होता है गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना का इतिहास...
दरअसल, अफगान युद्ध के दौरान कमांडर इन चीफ सूबेदार बलभ्रद सिंह की वीरता के कायल होग गए, यही वजह रही कि सूबेदार बलभद्र सिंह ने कमांडर इन चीफ को अलग से गढ़वाली रेजीमेंट बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने गढ़वालियों की अलग रेजीमेंट बनाने का प्रस्ताव तत्कालीक वायस राय लाड डफरिन के पास भेजा।
अप्रैल 1887 में दूसरी बटालियन तीसरी गोरखा रेजीमेंट की स्थापना के आदेश दिए गए, जिसमें छह कंपनियां गढ़वालियों की और दो कंपनियां गोरखाओं की थी। पांच मई 1887 को चौथी गोरखा को बटालियन क्षेत्र के कालौडांडा (लैंसडौन का प्राचीन नाम), पहुंची इसके बाद में तत्कालीन वायसराय लाड लैंसडौन के नाम पर जाना गया।
1891 में 2-3 गोरखा रेजीमेंट की दो कंपनियों से एक गोरखा पलटन 2-3 क्वीन अलेक्टजेन्टास आन (बटालियन का नाम) खड़ी की गई और शेष बटालियन को दोबारा नए बंगाल इन्फैंट्री की 39 वी गढ़वाल रेजीमेंट के नाम से जाना गया। बैज से गोरखाओं की खुखरी हटाकर उसका स्थान फोनिक्स बाज को दिया गया। इसने गढ़वाल राइफल्स को अलग रेजीमेंट की पहचान दी। 1891 में फोनिक्स का स्थान माल्टीज क्रास ने लिया। इस पर द गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट अंकित था। बैज के ऊपर पंख फैलाए बाज थे, यह पक्षी शुभ माना जाता था। इससे गढ़वालियों की सेना में अपनी पहचान का शुभारंभ हुआ।
कब, कहां और कैसे गठित हुई बटालियनप्रथम गढ़वाल राइफल्स-05 मई 1887 को अल्मोड़ा में गाठित और 04 नवंबर 1887 को लैंसडौन में आगमनद्वितीय गढ़वाल राइफल्स-01 मार्च 1901 को लैंसडौन में गठित तृतीय गढ़वाल राइफल्स- 20 अगस्त 1916 को लैंसडौन में चौथी गढ़वाल राइफल्स - 28 अगस्त 1918 को लैंसडौन में
पांचवी गढ़वाल राइफल्स - एक फरवरी 1941 को लैंसडौन में छठवीं गढ़वाल राइफल्स 15 सितंबर 1941 को लैंसडौन में सातवीं गढ़वाल राइफल्स- एक जुलाई 1942 को लैंसडौन में आठवीं गढ़वाल राइफल्स- एक जुलाई 1948 को लैंसडौन में नौवी गढ़वाल राइफल्स- एक जनवरी 1965 को कोटद्वार में दसवीं गढ़वाल राइफल्स- 15 अक्टूबर 1965 को कोटद्वार में ग्याहवीं गढ़वाल राइफल्स- एक जनवरी 1967 को बैंगलौर में
बारहवीं गढ़वाल राइफल्स- एक जून 1971 को लैंसडौन में तेरहवीं गढ़वाल राइफल्स- एक जनवरी 1976 को लैंसडौन में चौदहवीं गढ़वाल राइफल्स- एक सितंबर 1980 को कोटद्वार में सोलहवीं गढ़वाल राइफल्स - एक मार्च 1981 को कोटद्वार में सत्रहवी गढ़वाल राइफल्स- एक मई 1982 को कोटद्वार में अठारहवी गढ़वाल राइफल्स- एक फरवरी 1985 को कोटद्वार में उन्नीसवी गढ़वाल राइफल्स- एक मई 1985 को कोटद्वार में
इसके अलावा गढ़वाल स्काउट्स का आठ अप्रैल 1964 को कोटद्वार में 121 इन्फ्रैंट्री बटालियन का एक अप्रैल को कोलकाता, 121 टीए का एक दिसंबर 1982 को लैंसडौन में, चौदह राष्ट्रीय राइफल्स का 14 जून 1994 को कोटद्वार और 36 राष्ट्रीय राइफल्स का एक सितंबर 1994 में, जबकि 48 राष्ट्रीय राइफल्स का पंद्रह सितंबर 2001 को कोटद्वार में गठन हुआ।यह भी पढ़ें- उत्तराखंड में सुदूरवर्ती क्षेत्रों में खुलेंगे सामुदायिक रेडियो स्टेशन, आपदा प्रबंधन में होंगे मददगार साबित
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