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मिट्टी से चित्रकारी कर कला को नई दृष्टि दे रहा देहरादून का आयुष, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून के एक उभरते हुए कलाकार हें आयुष बिष्ट जो रंगों के बजाय मिट्टी से चित्रकारी कर कला को एक नई दृष्टि दे रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 19 Jul 2019 08:56 PM (IST)
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मिट्टी से चित्रकारी कर कला को नई दृष्टि दे रहा देहरादून का आयुष, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, आयुष शर्मा। कलाकार वही है, जिसका नजरिया दुनिया से हट कर हो। ऐसा ही उभरता हुआ कलाकार है दून का आयुष बिष्ट, जो रंगों के बजाय मिट्टी से चित्रकारी कर कला को एक नई दृष्टि दे रहा है। बीते डेढ़ साल से आयुष उत्तराखंड की सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतिबिंबों को मिट्टी से कागज पर उकेर रह है। साथ ही कला को और निखारने के लिए फाइन आटर्स की पढ़ाई भी कर रहा है।

मूलरूप से रुद्रप्रयाग जिले के गौचर निवासी आयुष ने 12वीं तक की पढ़ाई पीस पब्लिक स्कूल गोपेश्वर से पूर्ण की। उसके पिता गोविंद सिंह बिष्ट पेयजल संस्थान गोपेश्वर में कार्यरत हैं, जबकि मां अनिता बिष्ट गृहणी। वर्तमान में वह देहरादून के जोगीवाला स्थित विवेकानंद ग्राम में अपने मामा के साथ रह रहे हैं। आयुष बताता है कि उसे चित्रकारी की प्रेरणा छठी कक्षा में अपने कक्षा शिक्षक कुलदीप सिंह बिष्ट से मिली। उन्होंने ही उसे हाथ पकड़कर कूची चलाना सिखाया, लेकिन परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उसके इस महंगे शौक को पूरा कर सके। इसलिए उसने रंगों की बजाय मिट्टी को अपनी चित्रकारी का माध्यम बनाया। हालांकि, शुरुआत में निराशा ही हाथ लगी, लेकिन उसने हार नहीं मानी और लगातार प्रयास करता रहा। आखिरकार मेहनत रंग लाई और विचार कागज पर आकार लेने लगे।

आयुष के चित्रों में मुख्य रूप से उत्तराखंड की सभ्यता एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं। वह चाहता है कि उसके चित्रों के माध्यम से देश-दुनिया के लोग उत्तराखंड की सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित हों। बकौल आयुष, 'प्रकृति प्रदत्त जो-कुछ भी है, उसे सुंदरता मिट्टी ने ही प्रदान की है। मिट्टी के अनेक रंग हैं, बस उन्हें महसूस किए जाने की जरूरत है। यही वजह है कि मिट्टी की तस्वीरों का अपना अलग ही आकर्षण है।'

फाइन आटर्स में ग्रेज्युएशन कर रहा आयुष

चित्रकारी के प्रति आयुष की दीवानगी उसके व्यवहार में साफ झलकती है। वह चित्रकारी का नियमित रूप से अभ्यास तो करता ही है, सेलाकुई स्थित मिनर्वा इंस्टीट्यूट से फाइन आटर्स में ग्रेज्युएशन भी कर रहा है। बकौल आयुष, रोजाना इंस्टीट्यूट तक आने-जाने में तीन घंटे का समय लग जाता है, मगर नया करने की प्रेरणा इसका अहसास नहीं होने देती।

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