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Balti community: उत्तराखंड में सौ साल से संस्कृति सहेज रहे 750 परिवार, अपनी जमीन तो छोड़ी; पर परंपराएं नहीं

Balti community बाल्टी समुदाय मूलरूप से भारत में लद्दाख और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर प्रांत के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में निवास करता है। देहरादून-चकराता मार्ग पछवादून के हरिपुर कालसी और चकराता में बाल्टी समुदाय के 750 परिवार रहते हैं।

By Sumit kumarEdited By: Nirmala BohraUpdated: Sun, 19 Feb 2023 09:42 AM (IST)
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Balti community: बाल्टी समुदाय के 750 परिवार रहते हैं।
सुमित थपलियाल, देहरादून: Balti community: देहरादून से 50 किमी दूर देहरादून-चकराता मार्ग पर बसी ग्राम पंचायत अंबाड़ी के अलावा पछवादून के हरिपुर, कालसी और चकराता में बाल्टी समुदाय के 750 परिवार रहते हैं।

करीब सौ साल पहले इनके पुरखे लद्दाख से व्यापार के लिए आए और फिर यहीं के होकर गए। हालांकि, जमीन से दूर होने के बावजूद उन्होंने अपनी संस्कृति और मातृभाषा नहीं छोड़ी।

यहां बाल्टी समुदाय के लोग मिल-जुलकर अपने त्योहार मनाते हैं और पारंपरिक पकवान भी बड़े चाव से पकाते हैं। अंबाड़ी स्थित सूफिया नूरबख्शी मदरसे में बाल्टी समुदाय के स्थानीय बच्चों के अलावा लद्दाख के बच्चों को भी शिक्षा दी जा रही है। मदरसे से पढ़ाई करने वाले अब्दुल करीम वर्तमान में भारतीय सेना में, जबकि मोहम्मद अब्बास लेह के इमाम हैं।

बाल्टी परिवार देश के विभिन्न हिस्सों में बस गए

बाल्टी समुदाय मूलरूप से भारत में लद्दाख और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर प्रांत के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में निवास करता है। उसी दौरान कुछ बाल्टी परिवार देश के विभिन्न हिस्सों में बस गए।

समुदाय के लोग व्यापार के लिए देहरादून के पछवादून क्षेत्र में भी आए। इनमें से कुछ यहां की आबोहवा और परिवेश से प्रभावित होकर यहीं निवास करने लगे। बाद में उन्होंने अपने परिवारों को भी यहीं बुला लिया।

ठेकेदारी करने वाले अंबाड़ी निवासी अली बताते हैं कि व्यापार के लिए उनके परदादा वर्ष 1920 में कालसी क्षेत्र में आए थे। यहां मौसम अनूकूल होने के साथ उनका व्यापार भी अच्छा चला। इसके बाद वो वापस नहीं लौटे और यहीं बस गए। बताया कि समुदाय के लोग खेती-बाड़ी के अलावा व्यापार और विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार से जुड़े हैं।

अंबाड़ी गांव स्थित सूफिया नूरबख्शी मदरसा के वाइस सदर जमाल खान बताते हैं कि कालसी और आसपास बाल्टी समुदाय के लगभग 750 परिवार निवास कर रहे हैं, जिनकी आबादी पांच हजार से अधिक है। इनमें सबसे अधिक 250 परिवार अंबाड़ी गांव में रहते हैं।

इसके अलावा चकराता में 200 और हरिपुर व कालसी में 150-150 परिवार निवास कर रहे हैं। बदलते दौर में इन परिवारों के रहन-सहन और कार्य संस्कृति में भी बदलाव आया है। समुदाय में अनाज का व्यापार सीमित हो गया है। नई पीढ़ी में अधिकांश लोग नौकरीपेशा हैं।

बच्चों की पढ़ाई के लिए सूफिया नूरबख्शी मदरसे की स्थापना

बाल्टी बच्चों की पढ़ाई के लिए अंबाड़ी गांव में वर्ष 1994-95 में सूफिया नूरबख्शी मदरसे की स्थापना की गई थी। आज इस मदरसे में स्थानीय बाल्टी समुदाय के साथ लद्दाख में रह रहे परिवारों के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहां से पढ़ाई करने वाले छात्र समुदाय के साथ देश का नाम भी रोशन कर रहे हैं।

मदरसा के वाइस सदर जमाल खान बताते हैं कि जिस जमीन पर मदरसा बना है, उसे वर्ष 1980 में अंबाड़ी की जमींदार जुबैदा ने बच्चों की शिक्षा के लिए दान किया था।

वर्ष 1994-95 में जुबैदा के बेटे मौलाना अली हसन के सहयोग से मदरसा बनकर तैयार हुआ। लद्दाख में छह महीने बर्फ जमी रहने के कारण बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती थी। ऐसे में लद्दाख में रहने वाले बाल्टी समुदाय के बच्चों को भी अंबाड़ी मदरसे में पढ़ने के लिए लाया गया।

शुरुआत में यहां छात्र संख्या 25 थी, जो अब बढ़कर 90 पहुंच चुकी है। सूफिया नूरबख्शी मदरसा लगभग दो बीघा भूमि पर स्थित है। इसे उत्तराखंड मदरसा बोर्ड से दसवीं कक्षा तक की संबद्धता भी प्राप्त है।

प्रबंधन की ओर से 12वीं कक्षा की पढ़ाई और बालिका शिक्षा को लेकर शासन से बात की जा रही है। मदरसे में पढ़ने वाले छात्र सालभर में एक बार रमजान के दौरान लद्दाख स्थित अपने घर जाते हैं।

होली की तरह नागरोस मनाता है बाल्टी समुदाय

मातृभूमि और समुदाय से दूर होने के बावजूद इन परिवारों ने अपनी परंपरा नहीं छोड़ी। समुदाय के लोग आपस में बातचीत के लिए अपनी मातृभाषा बाल्टी का ही उपयोग करते हैं। साथ में अपने त्योहार मनाते हैं।

पारंपरिक व्यंजन पड़कू, जांन, बले आदि भी चाव से पकाए और खाए जाते हैं। समुदाय की ओर से मनाया जाने वाला नागरोस का त्योहार होली से मिलता-जुलता है। यह अप्रैल में मनाया जाता है। इसमें लोग होली की तरह रंग तो नहीं, बल्कि एक-दूसरे पर पानी फेंकते हैं।

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