औषधीय गुणों और पौष्टिकता से लबरेज हैं 'बारहनाजा', जानिए इनके बारे में
उत्तराखंड में बारहनाजा को सिर्फ बारह अनाज ही नहीं मानते बल्कि ये तरह-तरह के रंग-रूप स्वाद और पौष्टिकता से परिपूर्ण है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Wed, 04 Sep 2019 08:43 AM (IST)
देहरादून, जेएनएन। बारहनाजा का शाब्दिक अर्थ है 'बारह अनाज'। उत्तराखंड में बारहनाजा को सिर्फ बारह अनाज ही नहीं मानते, बल्कि ये तरह-तरह के रंग-रूप, स्वाद और पौष्टिकता से परिपूर्ण दलहन, तिलहन, शाक के साथ ही भाजी, मसाले और रेशा मिलाकर 20-22 प्रकार के अनाज आते हैं। यह केवल फसलें नहीं हैं, बल्कि पहाड़ की पूरी कृषि संस्कृति है। यह सब देखते हुए खाने की थाली में बदलाव व विविधता लाना समय की मांग है। इसी लिहाज से उत्तराखंड की बारहनाजा फसलें बदलाव का प्रतिबिंब हैं, जो पौष्टिकता समेत औषधीय गुणों से भी लबरेज हैं।
स्वस्थ जीवन जीने के लिए मनुष्य को अलग-अलग पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जो इस पद्धति में मौजूद हैं। उत्तराखंड में करीब 13 प्रतिशत सिंचित और 87 प्रतिशत असिंचित भूमि है। सिंचित में विविधता नहीं है जबकि असिंचित खेती विविधता से भरी हुई है। यह खेती जैविक होने के साथ पूरी तरह बारिश पर निर्भर है। इसकेतहत पहाड़ में किसान ऐसा फसल चक्र अपनाते हैं, जो संपूर्ण जीव-जगत के पालन का विचार भी समेटे हुए है। न सिर्फ मनुष्य के भोजन की जरूरतें पूरी होती हैं, बल्कि इसमें मवेशियों के लिए भी चारे की कमी नहीं रहती। इसमें दलहन, तिलहन, अनाज, मसाले, रेशा, हरी सब्जियां, विभिन्न तरह के फल-फूल आदि शामिल हैं।
यह है बारहनाजा पद्धति
उत्तराखंड की जलवायु और भौगोलिक स्थितियों को देख पहाड़ी क्षेत्र के लोगों ने सदियों पहले गेहूं एवं धान की मुख्य फसल के संग ही विविधताभरी 'बारहनाजा' पद्धति को महत्व दिया। मंडुवा-झंगोरा बारहनाजा परिवार के मुख्य सदस्य हैं। च्वार, चौलाई, भट्ट, तिल, राजमा, उड़़द, गहथ, नौरंगी, कुट्टू, लोबिया, तोर आदि इसकी सहयोगी फसलें हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो बारहनाजा मिश्रित खेती का श्रेष्ठ उदाहरण है और यह फसलें पूरी तरह से जैविक भी हैं। इसमें एक साथ बारह फसलें उगाकर पौष्टिक भोजन की जरूरत पूरी करने के साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने की क्षमता भी है।
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बारहनाजा में परंपरा का विज्ञान
बारहनाजा प्रणाली पर वैज्ञानिक दृष्टि डालें तो इसके कई वैज्ञानिक पहलू उजागर होते हैं। जैसे दलहनी फसल में राजमा, लोबिया, भट, गहत, नौरंगी, उड़द और मूंग के प्रवर्धन के लिए मक्का बोई जाती है। जो बीन्स के आधार की जरूरत पूरा करती है। मक्का के साथ ही सेम में जटिल कॉर्बोहाइड्रेट और जरूरी फैटी समेत सभी आठ आवश्यक अमीनो अम्ल लोगों की आहार संबंधी जरूरतें पूरी करने में सहायक सिद्ध होते हैं।
बारहनाजा उगाओ-जीवन बचाओ
बारहनाजा पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए 'नवदान्या' संस्था ने 'बारहनाजा' उगाओ और जीवन बचाओ मुहिम छेड़ी है। संस्था का मानना है कि बारहनाजा सदियों से किसानों द्वारा जांचा-परखा है। यह प्राकृतिक संतुलन के साथ ही गरीब के घर में संतुलित आहार का आधार भी है। कम जगह में ज्यादा एवं विविधतापूर्ण पैदावार लेने के लिए ये पद्धति सक्षम है। बारहनाजा की फसलों में सूखा और कीट-व्याधि से लड़ने की भी जबर्दस्त क्षमता है, जो आज के बिगड़े मौसम चक्र को देखते हुए एक मजबूत विकल्प भी पेश करती है।
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