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Bhagat Singh Koshyari: पुष्कर सिंह धामी कोश्यारी के राजनीतिक शिष्य, उत्‍तराखंड बनी रहेगी राजनीतिक प्रासंगिकता

Bhagat Singh Koshyari भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड भाजपा के धुरंधर नेताओं में से एक रहे हैं।हालांकि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सभी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त करने का आग्रह किया है।

By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraUpdated: Tue, 24 Jan 2023 09:47 AM (IST)
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Bhagat Singh Koshyari: भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड भाजपा के धुरंधर नेताओं में से एक हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: Bhagat Singh Koshyari: महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सभी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त करने का आग्रह किया है, लेकिन इसके बावजूद उत्तराखंड की राजनीति में उनकी प्रासंगिकता बनी रहेगी।

कोश्यारी, उन्हें जानने वाले प्यार से भगतदा पुकारते हैं, का ठेठ पहाड़ी मिजाज और उत्तराखंड के जातीय समीकरणों के अलावा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का उनका राजनीतिक शिष्य होना इसके मुख्य कारण हैं।

भाजपा के धुरंधर नेताओं में से एक भगत सिंह कोश्यारी

भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड भाजपा के धुरंधर नेताओं में से एक हैं। कुशल प्रशासक की छवि तो कोश्यारी की रही ही है, साथ ही वह सांगठनिक कार्यों में भी निपुण माने जाते हैं।

अविभाजित उत्तर प्रदेश में इस क्षेत्र में पार्टी संगठन का दायित्व संभालने के बाद कोश्यारी उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। नित्यानंद स्वामी राज्य की पहली अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री बने तो कोश्यारी की हैसियत उनकी टीम में नंबर दो की रही। ऊर्जा और सिंचाई जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय का जिम्मा उनके पास रहा।

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पार्टी के अंदरूनी असंतोष के कारण स्वामी की मुख्यमंत्री पद से विदाई एक साल का कार्यकाल पूर्ण करने से पहले ही हो गई। तब 30 अक्टूबर 2001 को कोश्यारी ने अंतरिम सरकार के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में पद संभाला। यद्यपि उनका कार्यकाल काफी संक्षिप्त, एक मार्च 2002 तक ही रहा, महज चार महीने।

वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया। इसके बाद राज्य की राजनीति में सक्रिय कोश्यारी वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव के समय भाजपा के मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार थे, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने केंद्र की वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी (सेनि) को सरकार की कमान सौंप दी।

भाजपा ने इसके बाद कोश्यारी को केंद्र की राजनीति में अवसर दिया। पहले उन्हें वर्ष 2008 में राज्यसभा भेजा गया और फिर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह नैनीताल सीट से जीत कर संसद पहुंचे। कोश्यारी ने वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन इसके बाद उन्हें गोवा का राज्यपाल बना दिया गया।

पढऩे-लिखने और अन्य गतिविधियों में समय बिताने की इच्छा

कुछ समय बाद महाराष्ट्र जैसे बड़े और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल बनाकर भेजा गया। राज्यपाल के रूप में कोश्यारी का कार्यकाल लगभग तीन साल का रहा। अब उन्होंने सभी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होकर पढऩे-लिखने और अन्य गतिविधियों में समय बिताने की इच्छा व्यक्त की है।

जिस तरह का व्यक्तित्व कोश्यारी का है, उस परिप्रेक्ष्य में लगता नहीं कि वह राजनीति से स्वयं को पूरी तरह विलग कर पाएंगे। उनकी सादगी और हर किसी से आसानी घुलने-मिलने की शैली राजनेताओं ही नहीं, आम जन को भी आकर्षित करती रही है।

फिर उनके पास लंबा राजनीतिक अनुभव है, जिसे वह निश्चित रूप से अन्य में बांटना चाहेंगे। विशुद्ध पहाड़ी छवि के कोश्यारी के स्वभाव में ही राजनीति है, इसलिए लगता नहीं कि वह पूरी तरह राजनीतिक गतिविधियों से दूर रह सकेंगे। इतना जरूर है कि उम्र के इस पड़ाव पर वह सक्रिय राजनीति में नहीं रहेंगे।

साथ ही वह पिछले कई दशकों से उत्तराखंड में एक बड़े राजपूत नेता के रूप में स्थापित रहे हैं और जातीय समीकरणों के दृष्टिकोण से उनकी उपस्थिति मात्र भाजपा को बड़ा संबल प्रदान करेगी। इसके अलावा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनके राजनीतिक शिष्य हैं, तो स्वाभाविक रूप से कोश्यारी का मार्गदर्शन उन्हें मिलता रहेगा।

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