स्वर्गारोहण के रास्ते में कुंती और पांचाली ने यहां बुझायी थी प्यास
स्वर्गारोहण यात्रा के दौरान पांडव के हरिद्वार पहुंचने पर उन्हें प्यास लग गई थी। भीम ने अपने पैर (गोड़) से प्रहार किया था। कहते हैं कि भीम के प्रहार से पताल लोक से पानी का सोता फूटा था जिससे कुंती और पांचाली ने अपनी प्यास बुझायी थी।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 27 Oct 2020 12:32 AM (IST)
हरिद्वार, अनूप कुमार। पौराणिक और ऐतिहासिक भीमगोड़ा कुंड के जल स्रोत से कुंती और पांचाली ने प्यास बुझाई थी। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव को स्वर्गारोहण यात्रा के दौरान हरिद्वार पहुंचने पर प्यास लग गई थी। आसपास कहीं पानी न होने पर भीम ने धरती मां का पूजन कर और आज्ञा लेकर अपने पैर (गोड़) से प्रहार किया था। कहते हैं कि भीम के प्रहार से पताल लोक से पानी का सोता फूटा था, जिससे कुंती और पांचाली ने अपनी प्यास बुझायी थी। इसके बाद धर्मराज युधिष्ठर की अगुआई में पांडव ने यहीं से अपनी स्वर्गारोहण यात्रा आरंभ की थी।
भीमगोड़ा कुंड की ऐतिहासिक व धार्मिक महत्ता का उल्लेख नारद पुराण में किया गया है। नारद पुराण के उत्तरभाग में लिखे इस श्लोक से अपने आप सिद्ध हो जाती है। 'भीम स्थलं तत: प्राप्य: स्नायात सुकृतीनर, भोगान्मुक्त्वदेहान्ते स्वगर्ति समवाप्नुयात।' अर्थात भीम स्थल (भीमगोड़ा कुंड) में जो लोग स्नान करते हैं। वे इस लोक में सुखों को भोगकर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। पुराणों में वर्णित इस महत्वपूर्ण भीमगोड़ा कुंड मंदिर के सौंदर्यीकरण व कायाकल्प को लेकर दैनिक जागरण ने अपने सामाजिक सरोकार से जुड़े अभियान 'तलाश तालाबों व जलाशयों की' के तहत लगातार अभियान चला रखा था।
महाभारत काल में बने इस भीमगोडा कुंड के पीछे मान्यता यह भी है कि स्वर्ग जाते समय पांडव यहां से होकर गुजरे थे। कुंती को प्यास लगने पर भीम ने अपने पैर से पहाड़ के चट्टान पर प्रहार कर गंगा नदी की धारा निकाल दी। जिससे कुंती के साथ ही पांडवों ने भी अपनी प्यास बुझाई।
बाद में अंग्रेज सरकार ने इसके पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के चलते 1842 से 1854 के बीच भीमगोड़ा कुंड को विस्तार देकर इसमें गंगाजल भरने को छोटी नहर का निर्माण कराया था। भीमगोड़ा कुंड के सौंदर्यीकरण व कायाकल्प की मुहिम दैनिक जागरण ने शुरू की थी। अर्द्धकुंभ के दौरान प्रशासन व नगर निगम ने मिलकर इस कुंड की गंदगी को साफ कराया। तत्कालीन स्थानीय पार्षद लखनलाल चौहान ने मोहल्ले के नागिरकों के साथ मिलकर इसकी सफाई कराई थी।
हजारों साल पुराना है भीमकुंडप्राचीन भीमकुंड मंदिर के पुजारी चेतराम भट्ट ने बताया कि नारद पुराण के उत्तर भाग में इस भीमकुंड का वर्णन तो मिलता ही है। अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख है। बताया कि भीम के पैर के प्रहार से यहां पर गंगा नदी का प्रवाह ऊपर आया था। इस महत्वपूर्ण कुंड में स्नान के बिना धर्मनगरी में गंगा स्नान पूर्ण नहीं माना जाता। बताया कि प्राचीन मंदिर का जीर्णोधार भी होना चाहिए। जिससे लोगों की यादों में यहां की महत्ता सदा के लिए जीवित रहे।
बद्रीनाथ जाने का पुराना रास्ता यहां से निकलता थास्थानीय नागरिकों ने बताया कि इस भीमकुंड का महत्व वर्षों पहले और अधिक था। जब बद्रीनाथ जाने के लिए इसी रास्ते से होकर लोगों को गुजरना पड़ता था, लेकिन हाईवे बनने के बाद इस रास्ते का प्रयोग बंद ही हो गया। दीपक रावत (कुंभ मेलाधिकारी) का कहना है कि ऐतिहासिक भीमगोड़ा कुंड के जीर्णोंद्धार के लिए वचनबद्ध हूं, कुंड के लिए होने वाले कार्यों को इस गुणवत्ता और तकनीकी के साथ पूरा करायेंगे, जिससे आने वाले वर्षों में भी कुंड की स्थिति में कोई बिगाड़ न होने पाए। मेला अधिष्ठान ने इसके लिए शासन को 30 लाख की योजना भेजी है। स्वीकृति मिलते ही काम में तेजी ला दी जाएगी। कुंड का सौंदर्यीकरण करा इसके बेहतरीन रूप में ला दिया जाएगा।
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