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स्वास्थ्य की रक्षक और पर्यावरण की मित्र है साइकिल

कानपुर निवासी अविनाश नरोना हर वर्ग के लोग न केवल साइकिल का अधिकाधिक उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, बल्कि उसे पर्यटन से भी जोड़ने में लगे हुए हैं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 28 Sep 2018 02:07 PM (IST)
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स्वास्थ्य की रक्षक और पर्यावरण की मित्र है साइकिल
उत्‍तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: साइकिल को लेकर लोगों ने धारणा बना ली है कि यह गरीब की सवारी है। वहीं, कानपुर के अविनाश नरोना इस मिथक को तोड़ने के अभियान में जुटे हैं। ताकि हर वर्ग के लोग न केवल साइकिल का अधिकाधिक उपयोग करने के लिए प्रेरित हों, बल्कि उसे पर्यटन से भी जोड़ा जा सके। इसके लिए वे देश के अलग-अलग हिस्सों में साइकिलिंग के ट्रैक तलाशने के साथ उनके बारे में जानकारी भी जुटा रहे हैं। इन दिनों अविनाश हिमालयी राज्यों के दर्रों से होकर साइकिलिंग कर रहे हैं और हर छोटे-बड़े पड़ाव की जीपीएस लोकेशन भी दर्ज कर रहे हैं। मंगलवार को अविनाश साइकिल से उत्तरकाशी पहुंचे थे। यहां से वे गढ़वाल व कुमाऊं के विभिन्न हिस्सों से होते हुए पूर्वोत्तर के लिए रवाना होंगे। अरुणाचल प्रदेश उनका अंतिम पड़ाव है।

नरोना चौराह कानपुर निवासी 31-वर्षीय अविनाश नरोना अर्थशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएट हैं। बताते हैं, 'मुझे बचपन से ही बाइकिंग का शौक रहा है। वर्ष 2012 में मैं बाइक से लाहौल-स्पीति गया था। वहां कुछ अंग्रेजों को साइकिलिंग करते हुए देखा तो मैंने भी बाइक छोड़कर साइकिल को अपना साथ बना लिया। इसके बाद मैंने देश के अलग-अलग हिस्सों में साइकिल से यात्रा की। वर्ष 2015 व 2016 में तो मंगोलिया व नेपाल भी साइकिलिंग करने के लिए गया।'

हिमालयी राज्यों के ट्रैक रूट गाइड के रूप में अविनाश ने अकेले ही अपने सफर की शुरुआत बीती आठ जुलाई को दिल्ली से की। यहां से वे शिमला, लाहौल-स्पीति, द्रास, कारगिल, बटालिक, लेह, तुरतुक, पाकिस्तान बॉर्डर, नुब्रा, पांगोंग, हानले, सो-मोरिरी, मनाली, शिमला, रोहड़ू, आराकोट व पुरोला होते हुए मंगलवार को उत्तरकाशी पहुंचे। बताते हैं कि अपनी इस हिमालयी साइकिल यात्रा के दौरान उन्होंने 13 दर्रों को पार किया।

इन दर्रों और आसपास के छोटे पड़ावों की जीपीएस लोकेशन भी ली। एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक कितने समय में पहुंचा जा सकता है और किस पड़ाव पर रुकने की सुविधा मिल सकती है, इसकी भी जानकारी जुटाई गई। इसे साइकिलिंग गाइड की पुस्तक में लिपिबद्ध किया जाएगा। 

अविनाश बताते हैं कि यात्रा के दौरान उन्होंने विभिन्न पड़ावों पर लोगों के उत्सुकता वाले सवालों के जवाब भी दिए। ताकि हिमालयी क्षेत्र में लोगों को साइकिलिंग के लिए प्रेरित कर सकें। कहते हैं, साइकिल ईको फ्रेंडली है, इसलिए हिमालय के लिए इससे सुंदर एवं सुलभ वाहन दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। अविनाश के अनुसार भारत में लोग साइकिल को अलग नजरिए से देखते हैं। जबकि, विदेशों में साइकिल का प्रचलन इतना आम है कि कई देशों के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तक साइकिल से ही अपने दफ्तर जाते-आते हैं। 

इन दर्रों को किया साइकिल से पार

दारमा घाटी (13000 फीट), कुंजम पास (15300 फीट), शिंकुला (16500 फीट), पंजिला (15000 फीट), डोम लिंग ला (15100 फीट), खारदुंगला (18300 फीट), सांगला (15000 फीट), रोहतांग (13500 फीट), नामसंगला (16000 फीट), चांगला (17800 फीट), लाचुंग ला (16300 फीट), नकीला (14500 फीट) और बारालाचा ला (16600 फीट)। 

ईको फ्रेंडली है साइकिल

अविनाश कहते हैं कि शरीर को स्वस्थ और पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए साइकिल सबसे बेहतर माध्यम है। साइकिल के ज्यादा से ज्यादा उपयोग से सड़कों पर वाहनों का दबाव तो कम होगा ही, हम हवा-पानी को प्रदूषित होने से भी बचा सकेंगे। बकौल अविनाश, 'साइकिल ईको फ्रेंडली है, इसलिए हिमालय के लिए इससे सुंदर एवं सुलभ वाहन दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।'

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