Citizenship Amendment Act: सीताराम भट्ट बोले, केंद्र सरकार ने समझी शरणार्थियों की पीड़ा
दून में रह रहे सभी शरणार्थियों को जल्द भारत की नागरिकता दिलाई जाएगी। ये बातें भाजपा महानगर अध्यक्ष सीताराम भट्ट ने शरणार्थी सम्मेलन में कहीं।
By Edited By: Updated: Thu, 16 Jan 2020 03:37 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों को सुरक्षित वातावरण देने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध है, क्योंकि केंद्र सरकार शरणार्थियों की पीड़ा को समझती है। दून में रह रहे सभी शरणार्थियों को जल्द भारत की नागरिकता दिलाई जाएगी। इसके लिए विशेष कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके तहत महानगर में अब तक 108 परिवारों को चिह्नित किया जा चुका है। ये बातें भाजपा महानगर अध्यक्ष सीताराम भट्ट ने शरणार्थी सम्मेलन में कहीं।
महानगर भाजपा की ओर से बुधवार को परेड मैदान स्थित भाजपा महानगर कार्यालय में हुए सम्मेलन में दर्जनों शरणार्थी शामिल हुए। इस दौरान भाजपा महानगर अध्यक्ष ने शरणार्थियों को नागरिकता संशोधन कानून की जानकारी दी। साथ ही उनकी पीड़ा भी जानी। महानगर अध्यक्ष ने आश्वासन दिया कि जल्द ही उन्हें नागरिकता दिलाई जाएगी। उन्हें यहां पूरा सम्मान दिया जाएगा।
कैंट विधायक हरबंस कपूर ने शरणार्थियों के संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि वर्षों से भारत में रह रहे शरणार्थियों के आधार कार्ड और राशन कार्ड अब तक नहीं बन सके हैं। हमारा प्रयास है कि 30 अप्रैल से पहले शरणार्थियों को नागरिकता दिलाई जाए। विनय गोयल, चौधरी अजीत सिंह, विनोद शर्मा, अनुराधा वालिया ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। सम्मेलन में भाजपा के राजीव उनियाल, रतन सिंह चौहान, उत्तर चंद, सुनील मल्होत्रा, कुलदीप सेठी, दर्शना, संजना करीना, जेरा ईशा आदि मौजूद रहे।
शरणार्थी थे अब हिंदुस्तानी कहलाएंगे
सम्मेलन में पाकिस्तान से आए लोगों ने अपने साथ हुए अत्याचार की दास्तां बयां की। साथ ही नागरिकता मिलने पर खुशी जाहिर करते हुए केंद्र सरकार का आभार जताया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शरणार्थियों के हित में ऐतिहासिक फैसला लिया है।
जिस्म ही नहीं रूह ने भी सहे जुल्म
पाकिस्तान से आकर दून में बसे ईश्वर चंद ने वहां हुए अत्याचारों को बयां किया। कहा कि पाकिस्तान में जिस्म ही नहीं रूह पर भी जुल्म किए गए। किसी की मौत होने पर शव को जलाने भी नहीं दिया जाता था। कहीं श्मशान के लिए जमीन नहीं दी गई। अपनी बच्चियों को शिक्षा दिलाना तो दूर घर से बाहर भेजने में भी डर लगता था। 12-13 साल की होते ही बेटियों की शादी करना मजबूरी थी।
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