उत्तराखंड : किला अजेय बनाने को बरकरार रखनी होगी जीत की लय
उत्तराखंड में भाजपा वर्ष 2014 से निरंतर विजय रथ पर सवार है। अब आने वाले समय में भाजपा की नगर निकाय पंचायत व सहकारिता चुनाव में परीक्षा होगी। ऐसे में किला अजेय बनाने को जीत की लय बरकरार रखनी होगी।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 24 Mar 2022 08:20 AM (IST)
केदार दत्त, देहरादून। उत्तराखंड में हर पांच साल में सत्ताधारी दल बदलने का मिथक इस बार तोड़ चुकी भाजपा के सामने अब आगे भी ऐसा ही प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। कारण ये कि अगले दो वर्ष तक उसे लगातार जनता की अदालत में स्वयं को साबित करना है। विधानसभा चुनाव में परचम फहराने के बाद अब अगले साल होने वाले नगर निकाय, पंचायत और सहकारिता के चुनावों में पार्टी की परीक्षा होनी है। सरकार और संगठन के मध्य बेहतर समन्वय भी बड़ी चुनौती है।
यानी, डेढ़-दो साल के कालखंड में भाजपा को ऐसा कुछ कर दिखाना होगा, जो वर्ष 2024 में राज्य की पांचों लोकसभा सीट पर उसकी जीत की आधारशिला बने। स्पष्ट है कि अपने किले बनाए रखने के लिए प्रांत से लेकर बूथ स्तर तक पार्टी को खासी मशक्कत और मेहनत करनी होगी। इसे देखते हुए विधानसभा चुनाव के दौरान के खट्टे-मीठे अनुभवों के आधार पर पार्टी रणनीति बनाने में जुट गई है, जिस पर आने वाले दिनों में सभी की नजर रहेगी।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से उत्तराखंड में भाजपा विजय रथ पर सवार है। तब से लेकर अब तक के हर छोटे-बड़े चुनाव में पार्टी ने विपक्ष को नेपथ्य में धकेलकर अपनी श्रेष्ठता कायम रखी है। वर्ष 2014 में पार्टी ने राज्य में लोकसभा की पांचों सीटों पर जीत दर्ज की तो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उसने 70 में से 57 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया। इसके बाद राज्य में नगर निकाय, पंचायत, सहकारिता के चुनाव में उसने परचम फहराया।
वर्ष 2019 में भाजपा ने एक बार फिर लोकसभा की पांचों सीटों को अपने पास बनाए रखा तो इस वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में भी उसने दो-तिहाई बहुमत हासिल किया। पार्टी को निरंतर मिल रही जीत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम व काम तथा भाजपा के मजबूत सांगठनिक ढांचे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब भाजपा के सामने अपने इस प्रदर्शन को बदस्तूर जारी रखने की चुनौती है।बड़े नेताओं को समायोजित करने की चुनौती
यह किसी से छिपा नहीं है कि भाजपा की जीत में उसका बूथ स्तर तक संगठन का मजबूत ढांचा और कार्यकत्र्ताओं की मेहनत सबसे महत्वपूर्ण है। ऐसे में पार्टीजनों की भी अपेक्षा रहेगी कि राज्य में सत्ता बरकरार रहने पर उन्हें भी पुरस्कार मिले। इस परिदृश्य में वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्त्ताओं को सरकार और संगठन में समायोजित करने की चुनौती पार्टी के सामने होगी तो नए व मेहनती कार्यकर्त्ताओं को आगे बढ़ाने की भी। यही नहीं, चुनाव के दौरान पार्टी ने 11 विधायकों के टिकट काट दिए थे। कुछ जगह कार्यकर्त्ताओं की नाराजगी के सुरों से भी उसे दो-चा होना पड़ा। इन्हें समायोजित करना भी चुनौती है। अब देखना होगा कि पार्टी इन चुनौतियों से निबटने को क्या रणनीति अपनाती है।
अब अगले साल होगी पहली परीक्षाराज्य में नगर निकायों के चुनाव होने हैं, जिनकी संख्या 102 है। वर्ष 2018 के नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया था और दो-तिहाई से अधिक निकायों में उसके बोर्ड बने। यद्यपि, तब निकायों की संख्या 91 थी। अब विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भाजपा संगठन की पहली परीक्षा नगर निकायों के चुनाव में होनी है। अगले वर्ष के आखिर में ही प्रदेश में सहकारिता के चुनाव होने हैं। वर्तमान में सहकारी संस्थाओं व समितियों के लगभग 95 प्रतिशत बोर्ड भाजपा के हैं। पार्टी का प्रयास रहेगा कि नगर निकायों, सहकारी संस्थाओं में भी वह अजेय बनी रहे। इससे वह बढ़े मनोबल के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरेगी।
सरकार और संगठन में समन्वयसरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचाने में संगठन की भूमिका को कमतर करके नहीं आंका जा सकता। ऐसे में राज्य में लगातार दूसरी बार सत्तासीन भाजपा सरकार और पार्टी संगठन के मध्य समन्वय पर भी सबकी नजर बनी रहेगी। पिछले अनुभवों से सबक लेते हुए सरकार के साथ तालमेल बनाकर चलने की चुनौती भाजपा के सामने रहेगी।
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