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उत्तराखंड में विधायकों के तेवरों से बढ़ी भाजपा संगठन की चुनौती

पार्टी विधायकों के अपनी ही सरकार के खिलाफ अपनाए जा रहे तल्ख तेवरों से भाजपा संगठन में चुनौती बढ़ गई है। विधायकों की नाराजगी के एक नहीं अनेक कारण हैं।

By Edited By: Updated: Wed, 18 Jul 2018 05:28 PM (IST)
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उत्तराखंड में विधायकों के तेवरों से बढ़ी भाजपा संगठन की चुनौती
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: प्रचंड बहुमत हासिल करने के बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार भले ही सियासी गुणा-भाग के लिहाज से किसी भी दबाव से मुक्त हो, लेकिन आंतरिक चुनौतियां अब उसके सामने मुखर होने लगी हैं। पार्टी विधायकों के अपनी ही सरकार के खिलाफ अपनाए जा रहे तल्ख तेवरों को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। 

असल में विधायकों की नाराजगी के एक नहीं अनेक कारण हैं। सरकार में सवा साल बाद भी दो मंत्री पद नहीं भरे गए तो निगमों, आयोगों व प्राधिकरणों में दायित्वों का वितरण भी नहीं हुआ। यही नहीं, विधायकों की ओर से नौकरशाही के बात न मानने की पीड़ा कई मर्तबा सुर्खियां बनी है। सूरतेहाल, पार्टी नेतृत्व के सामने इस आक्रोश को थामने और सरकार व संगठन में समन्वय की चुनौती अधिक बढ़ गई है। 

लक्सर विधायक संजय गुप्ता के मुख्यमंत्री और सरकार को निशाने पर लेने संबंधी हालिया बयान के बाद से सरकार और पार्टी संगठन दोनों को ही असहज होना पड़ा है। हालांकि, पार्टी ने इसे अनुशासनहीनता मानते हुए विधायक गुप्ता को नोटिस भेजा है, लेकिन सवाल यह है कि विधायकों में आक्रोश की आखिर वजह है क्या। 

यह पहला मौका नहीं, जब किसी विधायक ने तेवर तल्ख किए हों। इससे पहले विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन व राजकुमार ठुकराल की नाराजगी भी सुर्खियां बनी हैं। जानकारों की मानें तो भाजपा विधायकों में उबाल यूं ही नहीं उपजा है। इसके पीछे एक नहीं कई वजह हैं। खासकर, नौकरशाही के रवैये से तमाम विधायक नाराज हैं। इनमें से कई तो हाल में मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी नाराजगी तक जता चुके हैं। 

आलम ये है कि विधायकों के निर्देशों के बावजूद उनके क्षेत्र से जुड़े मसलों को नौकरशाही तवज्जो नहीं दे रही। जाहिर है कि इससे जनता के बीच उन्हें असहज स्थिति का सामना भी करना पड़ रहा है। सरकार में दो मंत्री पदों को भरने और विभिन्न निगमों, आयोगों व प्राधिकरणों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष पदों का दायित्व वितरण का मसला भी सरकार बनने के बाद से ठंडे बस्ते में है। 

माना जा रहा कि इसे लेकर भी विधायकों में नाराजगी है और सब्र का पैमाना छलकने लगा है। ऐसे में गाहे-बगाहे जुबां पर आ रहा उनका उबाल सरकार व संगठन दोनों को असहज कर रहा है। सूरतेहाल, अनुशासन को सर्वोपरि मानने वाली भाजपा के विधायक ही यदि इस लिहाज से सीमा लांघेंगे तो चुनौती तो पार्टी संगठन के लिए ही बढ़ेगी। वह भी तब जबकि, पार्टी संविधान के मुताबिक विधायकों पर भी वही गाइडलाइन लागू होती है, जो एक कार्यकर्ता पर। 

इसमें साफ है कि कोई पार्टीजन अपने नेताओं व सरकार को लेकर सार्वजनिक रूप से ऐसा कोई बयान नहीं देगा, जिससे सरकार व संगठन की छवि पर असर पड़े। इस गाइडलाइन को फॉलो कराने की जिम्मेदारी तो संगठन के कंधों पर ही है। जाहिर है कि प्रांतीय नेतृत्व की चुनौतियां अब अधिक बढ़ गई हैं। 

अनुशासन तोड़ने की नहीं है किसी को इजाजत 

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजह भट्ट के मुताबिक भाजपा में अनुशासन सर्वोपरि है। इसे तोड़ने की किसी को इजाजत नहीं है, फिर चाहे वह कोई भी क्यों न हो। जहां तक विधायक संजय गुप्ता मामले की बात है तो उन्हें नोटिस दिया गया है, 10 दिन के भीतर जवाब आ जाएगा। यदि जवाब नहीं आता है तो पार्टी संविधान के अनुरूप कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।

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