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जंगलों की आग से ग्लेशियरों में पहुंच रहा ब्लैक कार्बन, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

केंद्र सरकार को सौंपी गई वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट बताती है कि 3600 से 3800 मीटर या इससे अधिक की ऊंचाई पर भी ब्लैक कार्बन की उपस्थिति पाई गई है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 31 Jan 2020 08:24 PM (IST)
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जंगलों की आग से ग्लेशियरों में पहुंच रहा ब्लैक कार्बन, रिपोर्ट में हुआ खुलासा
देहरादून, सुमन सेमवाल। मानव की गतिविधियां अब ग्लेशियरों की सेहत पर भी असर डालती दिख रही हैं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को हाल में सौंपी गई वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट बताती है कि 3600 से 3800 मीटर या इससे अधिक की ऊंचाई पर भी बेहद हानिकारक ब्लैक कार्बन (एयरोसोल) की उपस्थिति पाई गई है। सामान्यत: ब्लैक कार्बन की मौजूदगी ना के बराबर है, मगर जब जंगलों में आग लगती है या पंजाब व हरियाणा में पराली जलाई जाती है, तब ब्लैक कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है। 

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. डीपी डोभाल व पीएस नेगी के मुताबिक ग्लेशियरों में वायु प्रदूषण की स्थिति को लेकर संसद में प्रश्न लगाया गया था। इसके क्रम में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को यह रिपोर्ट सौंपी गई। जिसमें बताया गया है कि जंगलों में आग लगने के दौरान (अप्रैल से लेकर जून) ब्लैक कार्बन की मात्रा गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में 4.62 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पाई गई है। इसके अलावा अक्टूबर-नवंबर में जब देश में पराली जलाई जाती है, तब ग्लेशियर में ब्लैक कार्बन की स्थिति दो माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक पहुंच रही है। हालांकि, शेष समय समय जब बाहरी क्षेत्र की हवाओं का अधिक रुख ग्लेशियर की तरफ नहीं होता है, तब प्रदूषण की स्थिति बेहद कम 0.01 से लेकर 0.09 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के बीच पाई जा रही है। 

यूरोप व चीन का प्रदूषण भी हिमालयी ग्लेशियरों में पहुंच रहा 

वैश्विक मंच पर जब भी जलवायु परिवर्तन की बात होती है तो बड़ी आसानी में दूसरे देश यह कह देते हैं कि भारत की बड़ी आबादी खाना पकाने के लिए लकडिय़ां जलाती हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और ग्लेशियरों पर खतरा बढ़ रहा है। हालांकि, पहली बार हिमालयी ग्लेशियरों पर ब्लैक कार्बन की स्थिति पता लगाने के लिए गंगोत्री ग्लेशियर में लगाए गए एथलोमीटर से नई कहानी सामने आई है। वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. पीएस नेगी बताते हैं कि सिर्फ भारत से प्रदूषण दूसरे देशों में नहीं जा रहा, बल्कि यूरोप के देशों व चीन आदि से भी ब्लैक कार्बन यहां के ग्लेशियरों में पहुंच रहा है। गर्मियों के दौरान दक्षिण, पश्चिम, मध्य एशिया समेत यूरोप व अफ्रीका से आने वाली हवाओं का रुख उत्तर भारत की तरफ होने से ब्लैक कार्बन की मात्रा 2.7 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक पाई जा रही है। 

ग्लेशियर पर ब्लैक कार्बन की उच्चतम मात्रा की पहल करेगा भारत 

अभी तक विश्वभर में वायु प्रदूषण के जो भी अधिकतम सीमा तय की गई है, वह सांस लेने के हिसाब से है। ग्लेशियर जैसे उच्च क्षेत्रों में पारिस्थितक तंत्र की सुरक्षा के लिए यह सीमा कितनी होनी चाहिए, इस पर विश्वभर में कोई मानक निर्धारित नहीं है। वाडिया के विज्ञानी डॉ. नेगी का कहना है जल्द इस मानक को निर्धारित करने की पहल भारत से की जाएगी। इसको लेकर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को यूरोपीय देशों में ब्लैक कार्बन की रिपोर्ट भी भेजी जा रही है। ताकि ग्लेशियर क्षेत्रों में भी ब्लैक कार्बन की उच्चतम सीमा तय की जा सके। 

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यूरोप के प्रमुख देश/शहरों में ब्लैक कार्बन

(माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर में) 

  • लंदन, 1.30 
  • स्विटजरलैंड, आठ स्थानों पर 0.24 से 1.54 तक 
  • फिनलैंड. 1.52 से 1.69 तक 
  • स्पेन, 3.5 
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