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नगर निगम का चुनाव तो जीते, लेकिन भूल गए सुविधाओं का खाका

नगर निगम चुनाव में भाजपा की चुनावी नैय्या तो पार लग गई और निगमों में भाजपा ने अच्छा वर्चस्व भी कायम किया। अब जीत के बाद इन क्षेत्रों में बुनियादी विकास से मुंह फेर लिया गया।

By BhanuEdited By: Updated: Tue, 25 Dec 2018 09:40 AM (IST)
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नगर निगम का चुनाव तो जीते, लेकिन भूल गए सुविधाओं का खाका
देहरादन, अंकुर अग्रवाल। शहरी क्षेत्र से सटे ग्रामीण इलाकों को शहर में शामिल कर भाजपा सरकार को निकाय चुनाव का रास्ता आसान नजर आ रहा था। ग्रामीण जनप्रतिनिधि और कांग्रेस लगातार सरकार के इस कदम का विरोध करते रहे। अदालती लड़ाई तक लड़ी गई व तमाम विरोध और प्रदर्शनों के बावजूद निर्णय सरकार की मंशा के अनुरूप आया। 

इसी वैतरणी में भाजपा की चुनावी नैय्या तो पार लग गई और निगमों में भाजपा ने अच्छा वर्चस्व भी कायम किया। अब जीत के बाद इन क्षेत्रों में बुनियादी विकास से मुंह फेर लिया गया। शहर में शामिल किए गए ग्रामीण क्षेत्र अभी भी स्ट्रीट लाइटों से वंचित हैं और कूड़ा उठान की सेवा अभी तक वहां नहीं पहुंची। 

ग्रामीण क्षेत्रों में ये बड़ी चुनौतियां

सफाई व्यवस्था: नगर निगम अधिनियम के अनुसार क्षेत्र में एक हजार की आबादी पर दो सफाई कर्मचारी रखने का प्रावधान है। मौजूदा समय में निगम के पास पहले के 60 वार्डों में ही सफाई कर्मचारी कम हैं। ऐसे में नए 40 वार्डों में सफाई कार्य कैसे सुचारू होगा, यह बड़ी चुनौती और समस्या बना हुआ है। 

स्ट्रीट लाइट: शहर में स्ट्रीट लाइटों की दयनीय हालात किसी से छुपी नहीं है और तमाम वार्डों में लाइटें बंद पड़ी हैं। निगम ने डेढ़ साल पूर्व शहर के 60 वार्डो में 42 हजार नई एलईडी स्ट्रीट लाइटें लगाने का टेंडर किया था लेकिन अभी तक महज 22 हजार लाइटें ही लग सकीं। इनमें से आधी कुछ ही दिन बाद खराब हो गईं। अभी तो आधा शहर अंधेरे में है। ऐसे में निगम नए क्षेत्रों को कब जगमग कर पाएगा, यह भी बड़ा सवाल है। 

जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र: समूचे शहरीक्षेत्र के जन्म-मत्यु प्रमाण-पत्र नगर निगम के कार्यालय में बनते हैं। यहां पूरा दिन पहले ही मारा-मारी मची रहती है और लोगों को कईं-कईं हफ्ते चक्कर कटाए जाते हैं। ऐसे में 40 नए वार्डों का बोझ निगम पर भारी पड़ सकता है। ग्रामीणों के लिए भी निगम तक आना कम मुश्किल भरा नहीं होगा। पंद्रह से बीस किमी दूर रोज-रोज आकर चक्कर काटने से उनके समय व पैसे की बर्बादी भी होगी। ऐसे में निगम को कम से कम छह जोनल दफ्तर ग्रामीण क्षेत्रों में खोलने पड़ेंगे। वर्तमान में निगम में सिर्फ दो जोनल दफ्तर हैं लेकिन उनमें भी जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र देने की सुविधा नहीं है।  

अतिक्रमण: मौजूदा वक्त में नगर निगम की ज्यादातर जमीनें अवैध कब्जों की जद में हैं। कहीं भूमाफिया ने कब्जा किया है तो कहीं बिल्डर या व्यापारी ने। इतना ही नहीं बड़ी संख्या में शहर, नदी, नालों की जमीन पर बस्तियां बनी हुई हैं। निगम इन जमीनों को खाली कराने में ही लाचार है। ऐसे में 72 ग्राम सभा की सरकारी जमीनों को अतिक्रमणमुक्त कराना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं होगा। 

वेंडिंग जोन: नगर निगम ने पुराने साठ वार्डों में साढ़े 17 लाख रुपये खर्च कर दस वेंडिंग जोन बनाए हैं जबकि 30 जोन पर फैसला दो साल से अटका हुआ है। शहर में ही फड़-ठेली पर निगम का काबू नहीं है। नए क्षेत्र कैसे व्यवस्थित होंगे, ये भी कम चुनौती नहीं होगा। 

अवैध होर्डिंग: होर्डिंग नगर निगम की कमाई का अहम हिस्सा है। दो साल के टेंडर का यह कारोबार करीब छह करोड़ रुपये का होता है। अब ग्रामीण क्षेत्र नगर निगम में आने से यह कारोबार तीन गुना बढऩे का अनुमान है। हां, अवैध होर्डिंग निगम की बड़ी समस्या है। शहर ऐसे ही अवैध होर्डिंग से पटा हुआ है और निगम पर होर्डिंग माफिया को संरक्षण के आरोप लगते रहते हैं। गांव ऐसे अवैध होर्डिंग से कैसे मुक्त होंगे, यह बड़ा सवाल है। 

आवारा पशु: यूं तो आवारा पशुओं की धरपकड़ के लिए निगम के पास पर्याप्त संसाधन हैं। पूरी टीम है और जानवरों के रहने के लिए बाड़े से लेकर अस्पताल तक है, लेकिन निगम इस दिशा में कोई सफल काम नहीं कर सका। शहर में आवारा पशु व कुत्तों का आतंक है। ग्रामीण इलाकों में इनकी संख्या और अधिक होने का अंदेशा है।

 

कर्मचारियों की मौजूदा स्थिति

कर्मचारी-----------------------उपलब्ध------रिक्त 

स्थायी कर्मचारी---------------754---------350

मोहल्ला स्वच्छता समिति---610--------350

नाला गैंग कर्मचारी-----------120--------250

दैनिक वेतन सफाईकर्मी-------05----------50

डोर-टू-डोर कूड़ा उठान--------284-------600 

कार्ययोजना के अनुरूप हो रहा काम 

महापौर सुनिल उनियाल गामा के मुताबिक नगर निगम की मौजूदा व्यवस्थाओं व संसाधनों को देखते हुए नए ग्रामीण क्षेत्रों में जनसुविधाएं पहुंचाने का कार्य योजना के अनुसार किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में सुनियोजित और व्यवस्थित विकास हो यह मेरा ध्येय है। सफाई और लाइटों की व्यवस्था मेरी प्राथमिकता है और इस पर काम चल रहा है। 

गांव को शहर में मिलाने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण 

रायपुर के पूर्व बीडीसी सदस्य अनिल क्षेत्री के अनुसार गांव को शहर में मिलाने का फैसला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुआ। गांवों में विकास फिलहाल शून्य है। सफाई कार्य तो शुरू ही नहीं हुआ, स्ट्रीट लाइटें भी बेहाल हैं। निगम ने हमें दस पुरानी स्ट्रीट लाइटें ठीक कराकर दी थी, जो खंभे पर लगाने के एक हफ्ते बाद फिर खराब हो गई। ऐसे में खुद समझ लिजिए कि नगर निगम गांव के विकास के लिए कितना गंभीर है। 

पहले ही किया था विरोध 

पित्थूवाला के पार्षद हरीप्रसाद भट्ट के अनुसार हमने तो शुरू से ही सरकार के फैसले का विरोध किया था और हाईकोर्ट तक गए भी, लेकिन सरकार ने अपनी जिद पर गांव को शहर में मिला दिया। स्थिति यह है कि सफाई की कोई व्यवस्था नहीं और लाइटों के लिए निगम ने हाथ खड़े कर दिए। मैने खुद निगम जाकर लाइटें मांगी मगर निगम अधिकारियों ने कर्मचारी सीमित होने की वजह से इन्कार कर दिया। निगम पहले 60 वार्डों में ही सुविधाएं नहीं दे पा रहा था, अब 100 वार्ड में कैसे देगा। 

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