यहां ब्रह्मकपाल में तर्पण करने से मिलता है आठ गुना फल
मान्यता है कि बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान तर्पण के बाद पितृ मोक्ष के भागी होते हैं। यहां के बाद अन्य कहीं भी तर्पण की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Mon, 01 Oct 2018 05:14 PM (IST)
देहरादून, [जेएनएन]: भू-बैकुंठ श्री बदरीनाथ धाम के कपाल तीर्थ में पिंडदान व पितृों के तर्पण के लिए इन दिनों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है। बरसात के दौरान थमी बदरीनाथ यात्रा को श्राद्ध पक्ष में गति मिली है। मान्यता है कि बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान तर्पण के बाद पितृ मोक्ष के भागी होते हैं। यहां के बाद अन्य कहीं भी तर्पण की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
हर वर्ष श्रद्ध पक्ष में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर आश्विन अमावस्या तक लाखों हिंदू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों की पितृ योनि में भटकती हुई आत्मा की मुक्ति, मोक्ष के लिए पिंडदान व तर्पण के लिए ब्रह्मकपाल आते हैं। पिंडदान के लिए पुष्कर, हरिद्वार, प्रयाग, काशी, गया प्रसिद्ध हैं, लेकिन ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान आठ गुना फलदायी माना गया है। माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में ब्रह्मकपाल में पितृ तर्पण करने से वंश वृद्धि होती है। ये भी मान्यता है कि जब ब्रह्मा ने अपनी पुत्री सरस्वती पर गलत दृष्टि डाली तो शिव ने त्रिशूल से ब्रह्मा का एक सिर धड़ से अलग कर दिया। ब्रह्मा का यह सिर शिव के त्रिशूल पर चिपक गया और उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लग गया। महादेव शिव इस पाप के निवारण के लिए संपूर्ण आर्याव्रत भारत भूमि के अनेक तीर्थ स्थानों पर गए, परंतु फिर भी इस जघन्य पाप से मुक्ति नहीं मिली।
जब वे अपने धाम कैलाश पर जा रहे थे तो बद्रीकाश्रम में अलकापुरी कुबेर नगरी से आ रही मां अलकनंदा में स्नान करके भगवान शिव बद्रीनाथ धाम की ओर बढ़ने लगे। यहां से 200 मीटर पूर्व ही एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके हाथ से वहीं नीचे गिर गया। बदरीनाथ धाम के समीप जिस स्थान पर सिर (कपाल) गिरा, वह स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और भगवान देवाधिदेव महादेव को इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। जब महाभारत के युद्ध में पांडवों ने अपने ही बंधु-बांधवों को मार कर विजय प्राप्त की थी तब उन पर गोत्र हत्या का पाप लगा था। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्ग की ओर जा रहे पांडवों ने भी इसी स्थान पर अपने पितृों को तर्पण दिया था। बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि बदरीनाथ धाम में तर्पण के बाद कहीं अन्य तर्पण की आवश्यकता नहीं होती है।
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