बाहर से दवा लिखी तो विभागाध्यक्ष होंगे जिम्मेदार, जन औषधि केंद्रों पर ब्रांडेड दवाएं
दून अस्पताल में अब अगर किसी भी चिकित्सक ने बाहर की दवा लिखी तो विभागाध्यक्ष तक कार्रवाई होगी। चिकित्सकों को हर सप्ताह अस्पताल में उपलब्ध दवा की सूची उपलब्ध कराई जाएगी।
By BhanuEdited By: Updated: Thu, 17 Jan 2019 09:28 AM (IST)
देहरादून, जेएनएन। दून अस्पताल में अब अगर किसी भी चिकित्सक ने बाहर की दवा लिखी तो विभागाध्यक्ष तक कार्रवाई होगी। चिकित्सकों को हर सप्ताह अस्पताल में उपलब्ध दवा की सूची उपलब्ध कराई जाएगी। इसी के साथ हर विभाग के विभागाध्यक्ष के अधिकार भी बढ़ेंगे।
दून अस्पताल में इस समय 90 फीसद तक दवा उपलब्ध है। राज्य और केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत आने वाली सभी दवाएं भी स्टोर में मौजूद हैं। वहीं, कुछ डॉक्टर अपने निजी फायदे के लिए बाहर से दवा लिख रहे हैं। इससे गरीब मरीजों के कई हजार रुपये सिर्फ दवा पर खर्च हो जाते हैं। दवा अस्पताल में निश्शुल्क उपलब्ध है। इसकी लगातार शिकायतें आ रही हैं। इसके बाद चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने मामले की जांच कराई। बुधवार को प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना और चिकित्सा अधीक्षक डॉ. टम्टा ने विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष के साथ बैठक की। यह तय हुआ कि अगर फिर से किसी चिकित्सक की शिकायत आई कि मरीज से बाहर से दवा मंगाई गई है, तो जिम्मेदारी विभागाध्यक्ष की होगी।
इसके साथ ही ओपीडी में चिकित्सक की सुविधा के लिए सूची लगेगी, जिससे अस्पताल में उपलब्ध दवाओं की जानकारी होगी। वहीं, विभागाध्यक्ष ही अब सीनियर रेजिडेंट और जूनियर रेजिडेंट की तमाम जिम्मेदारियां तय करेंगे। चिकित्सा अधीक्षक ने बताया कि बाहर से दवा लिखने पर सख्ती की जा रही है। हर चिकित्सक को निर्देशित किया गया है। निर्देशों का पालन न होने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। डॉ. पंत को इमरजेंसी का जिम्मा
अस्पताल की इमरजेंसी के साथ ही एड्स कंट्रोल सेंटर का नोडल अधिकारी वरिष्ठ फिजिशयन डॉ. केसी पंत को बनाया गया है। प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने इसके आदेश कर दिए हैं। लिपिक अब होंगे इधर-उधर
अस्पताल में तय सीमा से ज्यादा 15 क्लर्क नियुक्त है। जिनमें से कुछ के पास अत्याधिक कार्य है, तो कई के पास काम नहीं है। पर अब इन्हें रोस्टर से काम करना होगा। कुछ समय अस्पताल में और कुछ समय मेडिकल कॉलेज में काम लिया जाएगा। जन औषधि केंद्रों पर भी बिक रहीं ब्रांडेड दवाएं
मरीजों को सस्ते दाम पर जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए खोले गए जन औषधि केंद्रों पर ब्रांडेड दवाएं बिक रही हैं। ताज्जुब देखिए कि मरीजों की शिकायत पर भी अधिकारी कार्रवाई से बच रहे हैं। बता दें, मोदी सरकार ने अलग-अलग स्थानों पर जन औषधि केंद्र खोलकर मरीजों को कम मूल्य पर दवा उपलब्ध कराने का दावा किया था। तब माना जा रहा था कि सरकार की इस पहल से न सिर्फ मरीजों को कम मूल्य पर जेनेरिक दवाईयां मिलेंगी, बल्कि चिकित्सकों व मेडिकल स्टोर के बीच की सांठगांठ भी खत्म होगी।
इन जन औषधि केंद्रों पर ब्रांडेड दवाईयों के मुकाबले 600 प्रकार की जेनेरिक दवाईयां पचास प्रतिशत से कम की दरों पर दवा उपलब्ध होने और 154 से ज्यादा सर्जिकल आइटम होने का दावा किया गया था। ये सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
देहरादून में संचालित अधिकांश जन औषधि केंद्रों का हाल कमोबेश ऐसा ही है। अब कोरोनेशन अस्पताल का ही उदाहरण लीजिए। यहां पर ओपीडी में रोजाना एक हजार से अधिक मरीज पहुंचते हैं। मरीजों को कम मूल्य में दवा उपलब्ध कराने के लिए यहां भी जन औषधि केंद्र खोला गया था, लेकिन मरीजों को यहां मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। चिकित्सक द्वारा लिखी गई दवा ना ही अस्पताल के स्टोर में मिलती है और ना जन औषधि केंद्र में। इतना जरूर है कि कई मर्तबा जन औषधि केंद्र में मरीज को जेनेरिक दवा की जगह ब्रांडेड दवा पकड़ा दी जाती है।
अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे मरीज सूरज मणि ने इसकी पोल खोली। जब वह दवा खरीद कर वापस चिकित्सक को दिखाने पहुंचे तो वह भी भौंचक रह गए, क्योंकि दवा ब्रांडेड थी। इसके बाद यह मामला अस्पताल के सीएमएस डॉ. बीसी रमोला के पास पहुंचा। इस पर सीएमएस ने जन औषधि केंद्र में तैनात फार्मेसिस्ट को तलब किया। हालांकि फार्मासिस्ट इस बावत सही जबाव नहीं दे सकी। उन्होंने चेतावनी दी कि दोबारा इस तरह की शिकायत मिलने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। सिर्फ कोरोनेशन अस्पताल ही नहीं, बल्कि नेहरूग्राम व अन्य जगह संचालित होने वाले जन औषधि केंद्रों में भी इस तरह की शिकायतें सामने आ चुकी हैं।
दून अस्पताल का जन औषधि केंद्र बना शोपीसदून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में भी जन औषधि केंद्र संचालित किया जा रहा है। लेकिन इस केंद्र में मरीजों को पूरी दवाईयां ही नहीं मिल पाती हैं। दून अस्पताल में रोजाना डेढ़ से दो हजार मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं। जन औषधि केंद्र इसलिए खोला गया है कि जो दवाएं अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं, वह यहां सस्ते दाम पर मिल जाएं। पर अधिकांश दवाईयां नहीं मिलती। लिहाजा मरीजों को बाहर निजी मेडिकल स्टोर से महंगे दाम पर दवा खरीदनी पड़ती है।यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में नहीं थम रहा स्वाइन फ्लू का कहर, एक और महिला की मौतयह भी पढ़ें: उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू से तीन और मौत, बचाव के लिए ऐसे रखें ध्यानयह भी पढ़ें: स्वाइन फ्लू से उत्तराखंड में एक और मौत, मरने वालों की संख्या पहुंची तीन
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