International Women's Day 2019: वीर नारियां देती हैं सरहद पर डटे रहने का जज्बा, पढ़िए पूरी खबर
International Womens Day 2019 उत्तराखंड की एक वीर नारी ने पति के सर्वोच्च बलिदान के बाद सेना की वर्दी पहनी और आज वह सैन्य अफसर बनकर देश की सुरक्षा की राह पर मजबूती से खड़ी हैं।
By Edited By: Updated: Fri, 08 Mar 2019 08:13 PM (IST)
देहरादून, सुकांत ममगाईं। International Women's Day 2019 - देश के एक मोर्चे पर हमारे जांबाज डटे होते हैं तो दूसरे मोर्चे कहीं उनकी मां, बहन और पत्नी। यह उनका साहस ही है, जिसके बूते हमारे जांबाज बिना किसी चिंता देश पर कुर्बान होने के लिए हर समय तत्पर रहते हैं...और सलाम कीजिए उन महिलाओं को, जब उनका कोई वीर तिरंगे पर लिपटकर घर आता है तो वह अपने दर्द को पीछे छोड़कर साहस की एक नई इबारत लिखने लगती हैं।
ऐसी ही एक वीर नारी ने पति के सर्वोच्च बलिदान के बाद न सिर्फ खुद सेना की वर्दी पहनी, बल्कि आज वह सैन्य अफसर बनकर देश की सुरक्षा की राह पर मजबूती से खड़ी हैं। मांओं का जज्बा देखिए कि पति को खोकर भी वह बेटे को देश पर न्यौछावर करना चाहती हैं। जब देश के बच्चे-बच्चे की आंखों में आतंक के खिलाफ शोले दहल रहे हैं। ऐसे समय में इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ऐसी ही वीर महिलाओं को सलाम जरूर किया जाना चाहिए।उफनती लहरों पर लिखी हौसले की दास्तां
पति की शहादत के बाद समाज की बेड़ियां और परंपरागत सोच को दरकिनार कर सेना की राह चुनने वाली कैप्टन प्रिया सेमवाल महिला सशक्तीकरण की एक जीती जागती मिसाल है। वह हाल में पश्चिम बंगाल के हल्दिया से पोरबंदर, गुजरात के बीच आर्मी सेलिंग एक्सपीडिशन का हिस्सा बनी हैं। इस दल ने 45 दिन के अभियान में 3500 नॉटिकल मील का सफर तय किया। बता दें, धोरण गांव निवासी प्रिया के पति नायक अमित शर्मा 20 जून 2012 को अरुणाचल प्रदेश में सेना के ऑपरेशन ऑर्किड के दौरान शहीद हो गए थे। पति की मौत के बाद भी प्रिया ने हौसला नहीं खोया। उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए सेना में जाने का फैसला लिया। 15 मार्च 2014 को प्रिया ऑफिसर्स ट्रेनिंग ऐकेडमी (ओटीए) चेन्नई से बतौर लेफ्टिनेंट पासआउट हुईं। उन्हें तीलू रौतेली पुरस्कार समेत कई स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका है। बकौल प्रिया, खुद को साबित करने के अलावा वे महिलाओं के प्रति समाज की परंपरागत सोच को बदलना चाहती थीं। इसी संकल्प के साथ उन्होंने हर चुनौती का सामना किया।
शहीद सिपाही की पत्नी बनी सेना में अफसर
दून के शिशिर मल्ल देश की रक्षा में शहीद हो गए तो उनकी पत्नी संगीता ने हौसला नहीं खोया, बल्कि खुद को बतौर सैन्य अफसर देश की सेवा में समर्पित किया। संगीता आगामी नौ मार्च को ओटीए चेन्नई से पास आउट होंगी। वह बतौर लेफ्टिनेंट फौज में अपनी सेवा देंगी। एक सैनिक की बेटी संगीता ने प्रेम विवाह किया और पति शिशिर भी फौजी परिवार से थे। संगीता और शिशिर दोनों एक ही साथ पढ़े थे और उनकी बॉन्डिंग भी अच्छी थी। पर दो सितंबर 2015 को एक ऐसी खबर आई जिसने संगीता को भीतर तक झकझोर दिया। बारामूला सेक्टर में ऑपरेशन रक्षक के दौरान उनके पति राइफलमैन शिशिर शहीद हो गए। छह माह पहले ही शिशिर के पिता का भी देहांत हुआ था। ऐसे में पूरा परिवार टूट गया था। बकौल संगीता, परिवार के समर्थन और उनकी हौसला अफजाई के बाद उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला। पिता ने उन्हें सेना में जाने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसका सास ने भी समर्थन किया। इसी दौरान संगीता को रानीखेत में सेना के एक प्रोग्राम में शामिल होने का अवसर मिला। जहां शिशिर के कुछ दोस्तों ने भी संगीता को सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। जिस पर संगीता ने दिल्ली स्थित सेना के वीर नारी सेल से संपर्क किया। वहां सभी ने उनका उत्साह बढ़ाया और आवेदन करने में मदद की गई। शिक्षिका के तौर पर काम कर चुकी संगीता ने बैंक और सेना, दोनों के लिए परीक्षा दी और दोनों ही जगह पर उनका चयन हो गया। पर उन्होंने सेना से जुडऩे का फैसला किया।
पति को खोया पर नहीं खोया हौसला उत्तराखंड की सैन्य परम्परा की मातृ शक्ति एक अहम कड़ी है। यह हमारी मांओं व बहनों का हौसला ही है कि प्रदेश के वीर सपूत बिना समर्पित भाव से देश की हिफाजत कर रहे हैं। वह वहां सीमा पर मोर्चा संभाल रहे हैं और पत्नी यहां घर पर। ऐसी भी कई वीरांगनाएं हैं, जिन्होंने पति को रण में खोया, पर इस सदमे से उबरकर बेटे को भी फौज में भेज दिया। ऐसा ही एक परिवार है दून के बालावाला निवासी शहीद हीरा सिंह का है। लांसनायक हीरा सिंह की पत्नी गंगी देवी ने बताया कि उनके पति नागा रेजीमेंट में तैनात थे। वे 30 मई 1999 को कारगिल में शहीद हो गए। तब लगा कि जैसे सब खत्म हो गया है, लेकिन कदम रुके नहीं। चमोली जनपद के देवाल गांव का यह परिवार वर्ष 2000 में बालावाला में आकर बस गया। बड़ा बेटा वीरेंद्र नया गांव पेलियो में गैस एजेंसी चला रहा है। मझला बेटा सुरेंद्र भी उनका हाथ बंटाता है। जबकि छोटे बेटे धीरेंद्र ने पिता की ही तरह फौज में अपना कॅरियर चुना। यह नौजवान अब कुमाऊं रेजीमेंट का हिस्सा है और फौजी वर्दी पहने वक्फा गुजर चुका है।
बच्चों को भी सेना में भेजने की तमन्ना
किसी सैनिक की शहादत पर उसके अंतिम दर्शनों के लिए हजारों की भीड़ जुटती है, पर आगे यह दर्द परिवार को अकेले ही झेलना पड़ता है। कुछ पल की संवेदनाओं से निकलकर अकेले ही संघर्षों का सामना करना पड़ता है। ऐसे ही कुछ संघर्षों से जम्मू-कश्मीर में शहीद दीपक नैनवाल की पत्नी ज्योति भी गुजर रही हैं। पर वह जानती हैं कि बोझिल होती दुनिया से आगे भी एक दुनिया है। वह अपनी बेटी और बेटे को पति की ही तरह फौजी वर्दी में देखना चाहती हैं। ज्योति एमए अर्थशास्त्र, बीएड व टीईटी उत्तीर्ण हैं। इससे पहले शिक्षिका रही हैं। राज्य सरकार की तरफ से योग्यतानुसार सरकारी नौकरी का आश्वासन दिया गया है, पर अभी कुछ वक्त वे बच्चों पर ध्यान केंद्रित रखना चाहती हैं। शहीद का चार साल का बेटा रेयांश कहता है कि वह पिता की ही तरह फौजी बनना चाहता है। जबकि साढ़े पांच वर्षीय बेटी लावण्या सेना में डॉक्टर बनना चाहती हैं। ज्योति कहती हैं कि उन्हें फख्र है कि दोनों बच्चे अपने पिता के ही नक्शे कदम पर चलना चाहते हैं। उन्हें फौजी वर्दी पहने देखना उनकी भी सबसे बड़ी ख्वाहिश है। यह भी पढ़ें: ये छात्र बंद आंखों से शतरंज का घोड़ा दौड़ाकर मनवा रहे अपना लोहा
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