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उत्‍तराखंड: इस बार भी लड़खड़ा न जाएं हजारों करोड़ की उम्मीदें, बजट आकार व खर्च में दूरी 20 हजार से बढ़कर हुई 24 हजार करोड़

उत्‍तराखंड में इस बार भी लड़खड़ा न जाएं हजारों करोड़ की उम्मीदें। बीते दो वित्तीय वर्षों में बजट आकार व खर्च में दूरी 20 हजार से बढ़कर 24 हजार करोड़ हुई है। बजट आकार स्वीकृति और खर्च में बढ़ते अंतर ने धामी सरकार के लिए चुनौती बढ़ा दी है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Wed, 08 Jun 2022 11:45 AM (IST)
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बीते दो वित्तीय वर्षों में बजट आकार व खर्च में दूरी 20 हजार से बढ़कर 24 हजार करोड़ हुई है।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून: गांव-गांव, शहरी बस्तियों में खुशहाली व ढांचागत विकास के सुनहरे सपनों को दिखाकर लाया जाने वाला वार्षिक बजट उम्मीदों के मोर्चे पर लड़खड़ा रहा है।

जन आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को लुभावनी घोषणाओं की चाशनी में मिलाकर आकार के लिहाज से भारी-भरकम बजट तैयार करने में दरियादिली दिखाई जा रही है, लेकिन खर्च में हर साल हाथ तंग रह जाना सवाल खड़े कर रहा है।

बजट आकार और खर्च में अंतर की हालत ये है कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में यह 20 हजार करोड़ से होता हुआ 24 हजार करोड़ को पार कर चुका है। इस वजह से चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट आकार को वास्तविकता के समीप रखने का दबाव सरकार पर बढ़ गया है।

उत्तराखंड में बजट आकार और खर्च के बीच बढ़ती दूरी पाटने की चुनौती बढ़ गई है। पूरे वर्षभर में प्रदेश की तस्वीर बदलने का कागजों पर दावा करने वाला बजट धरातल पर कुछ और ही कहानी बयान कर रहा है।

बजट प्रविधान, खर्च के लिए उसकी स्वीकृति और फिर वास्तविक खर्च का अंतर यह बता रहा है कि बजट में आम जन से किए जाने वाले वायदे पूरे नहीं हो रहे हैं। इसका बड़ा कारण बजट के निर्माण और उसके उपयोग में दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी है। ये स्थिति किसी विशेष वर्ष की नहीं, बल्कि राज्य बनने के बाद से लगातार बनी हुई है।

सामाजिक-आर्थिक विषमता बढ़ी

बीते दो वित्तीय वर्षों में कोरोना की मार बजट खर्च पर पड़ी है, लेकिन संक्रमण से हालात सुधरने के बावजूद खर्च को लेकर तेजी दिखाई नहीं दी। पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में बजट आकार और खर्च में 24379.30 करोड़ का अंतर रहा, जबकि इससे पहले वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह अंतर 20,437 करोड़ था।

बीते दोनों ही वर्षों में जिसतरह यह अंतर बढ़ा है, उससे चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए नया बजट तैयार कर रही पुष्कर सिंह धामी सरकार के समक्ष भी जवाबदेही का संकट रहना तय है। इस खामी के कारण राज्य के भीतर विषम भौगोलिक क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिकविषमता बढ़ रही है।

केंद्रपोषित योजनाओं में खर्च नहीं हुए 2000 करोड़

प्रदेश में ढांचागत विकास का बड़ा दारोमदार केंद्रपोषित योजनाओं और बाह्य सहायतित परियोजनाओं पर है। इन दोनों मदों में भी बजट नियोजन में यही खामी बरकरार है। केंद्रपोषित योजना मद में भी पिछले वित्तीय वर्ष में बजट आकार और खर्च में छह हजार करोड़ से ज्यादा का अंतर रहा।

चिंताजनक यह है स्वीकृत बजट में से भी करीब 2000 करोड़ खर्च नहीं किया जा सका। बाह्य सहायतित परियोजनाओं में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से अवस्थापना विकास के लिए मिलने वाले बजट के उपयोग में भी सुस्ती टूटने का नाम नहीं ले रही है।

पिछले वित्तीय वर्षों में कुल वार्षिक बजट और खर्च में अंतर का ब्योरा (राशि: करोड़ रुपये)

वित्तीय वर्ष, कुल बजट, खर्च, अंतर

2021-22, 64485.18, 40105.88, 24379.30

2020-21, 57590.76, 37163.01, 20437

2019-20, 51145.29, 37349.12, 13796.17

2018-19, 47884.28, 29542.05, 18,342.23

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केंद्रपोषित योजना (राशि: करोड़ रुपये)

वित्तीय वर्ष, कुल बजट, बजट स्वीकृति, खर्च

2021-22, 14302.09, 9686.45, 7657.86

2020-21, 10127.76, 7862.21, 6804.71

2019-20, 8788.16, 6113.71, 5374.50

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बाह्य सहायतित योजना (राशि: करोड़ रुपये)

वित्तीय वर्ष, कुल बजट, बजट स्वीकृति, खर्च

2021-22, 1801.67, 1419.63, 988.73

2020-21, 1607.64, 1023.56, 935.44

2019-20, 1600.26, 753.89, 505.05

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