पौराणिक बूढ़ी दीपावली की अलग ही रंगत, आंगन लोक संस्कृति से हुए गुलजार
जौनसार के गांवों में पौराणिक बूढ़ी दीपावली की अलग ही रंगत रही। दीपावली पर पौराणिक परंपराओं का पूरा ख्याल रखा गया। ग्रामीणों ने देवदर्शन कर पर्व की शुरूआत की।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 28 Nov 2019 08:44 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। जौनसार के कालसी व चकराता ब्लॉक के करीब 200 गांवों, खेड़ों व मजरों के मंदिरों में देवदर्शन को ग्रामीण श्रद्धालु उमड़े। जिसके बाद ग्रामीणों ने होलियात के साथ पर्व का जश्न तेज कर दिया। होलियात के बाद बाजगियों ने कान पर हरियाड़ी लगाई। हर गांव में स्याणा ने भिरुड़ी में प्रसाद स्वरूप अखरोट फेंके। प्रसाद पाने को ग्रामीणों में होड़ मची रही। विशायल, बाना, शिलगांव, अठगांव खतों समेत जौनसार के 200 गांवों में पंचायती आंगन लोक संस्कृति से गुलजार रहे। पंचायती आंगनों में महिलाओं व पुरुषों ने हारुल, झेंता व रासो नृत्यों की प्रस्तुति देकर अनूठी लोक संस्कृति से सबका परिचय कराया।
चकराता ब्लॉक के गांवों में पौराणिक बूढ़ी दीपावली की अलग ही रंगत रही। दीपावली पर पौराणिक परंपराओं का पूरा ख्याल रखा गया। ग्रामीणों ने देवदर्शन कर पर्व की शुरूआत की। ग्रामीण पंचायती आंगन में सामूहिक रूप से नृत्यों से सबको लुभाते रहे। नृत्य के दौरान सितलू मोडा की हारुल के बाद कैलेऊ मैशेऊ की हारुल गायी गई। सभी गांवों में सुबह चार बजे ग्रामीण हाथों में कैल की मशालें लेकर नाचते गाते हुए होलियात लेकर बाहर निकले। जहां होलियात जलाकर पर्व का जश्न मनाया गया।
देवता के आदेशानुसार भिरुड़ी में प्रसाद रूप में अखरोट फेंके गए। कालसी ब्लॉक के विशायल खत के डिमऊ, कोटा, लेल्टा, सिमोग, डांडा, जडाना, देसोऊ, कोटी, अतलेऊ, दोऊ, रूपौ, मुडवाण, पाटा के अलावा शिलगांव, बाना व अठगांव खतों के गांवों के अलावा कोठा तारली आदि में ग्रामीणों ने जश्न मनाया। हर गांव में ढोल दमाऊ, रणसिंघे के साथ हर गांव के पंचायती आंगनों में लोक संस्कृति का दौर चला। जैसे जैसे रात बढ़ती गई, वैसे वैसे लोगों पर लोक संस्कृति का रंग चढ़ता रहा। पुरुषों ने पारंपरिक वेशभूषा में जूडा नृत्य से सबको लुभाया, वहीं महिलाओं ने लोक नृत्यों से समा बांधा।
लोक गीतों की धूमचकराता में बूढ़ी दीपावली में पंचायती आंगनों में पुरुषों ने राहिणा रातोबियाई, लिखा रे राजाए बागनेदा परवाना, टाटू सोंजो दुनिया के सुने रे कांडे, तभी आए कायेंना मोडाए, कपूर री चोंरिये घुगूती घुंरो ...सुनाकर सबको नचाया। महिलाओं ने तू बोहूए बिसते बियूजी, गोंतो रा छोडा देदी, बाणी खीराले बांकी रामादेईए, डोडू मामा सुते बुणी मैसी गीतों पर खूब ठुमके लगाए। बीच में रात्रि भोज के बाद एक बार फिर से पंचायती आंगन में लोक संस्कृति का दौर चला।
जलती मशालें एक दूसरे पर फेंक कर मनाया जश्नबूढ़ी दीपावली की होलियात में ग्रामीण हाथों में मशालें लेकर होलियात के रूप में नाचते गाते हुए गांव से बाहर गए। जहां जलते मशाल एक दूसरे पर फेंकने लगे। वापस पंचायती आंगन में लौटने के बाद गांव स्याणा ने मकान के छत से भिरुड़ी के रूप में अखरोट को प्रसाद के तौर पर फेंके। जिसे पाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। इसी बीच बाजगी समुदाय के लोगों ने पुरुषों व महिलाओं के कानों पर हरियाड़ी लगाई।
पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर जश्नब्लॉक क्षेत्र के गांवों में बूढ़ी दीपावली धूमधाम से मनाई गई। वाद्य यंत्रों की थाप पर सामूहिक रूप से लोगों ने पारंपरिक नृत्य किया। सुबह से ही हर गांव में हेला यानी एक दूसरे के घर में आना जाना लगा रहा। सुबह देवदर्शन के बाद होलियात निकाली गई, जिसके बाद पंचायती आंगन में महिलाओं व पुरुषों ने ढोल दमाऊ की थाप पर हारूल, तांदी गीत, झेंता व रासो नृत्य कर समा बांधा। बुजुर्गों ने जंगाबाजी लगाकर खूब तालियां बटोरी। पंचायती आंगन में अखरोट की भिरुड़ी डाली गई।
जहां पर अखरोट उठाने में बच्चों से लेकर बुजुर्गों में उत्साह दिखाई दिया। ग्रामीणों के कानों पर हरियाड़ी लगायी गयी, इस दौरान महिलाओं ने हरियाड़ी का गीत सुने कि हरियाडी बांटी देओ रे हरियाडी। कानेसुई रे सबे बांटी देओ रे हरियाड़ी....गाकर पर्व का महत्व उजागर किया।
जौनसार के सभी गांवों में बूढ़ी दीपावली पर देवदर्शन को मंदिरों में तांता लगा। कहीं पर ग्रामीणों ने महासू देवता तो कहीं पर शिलगुर विजट चुड़ेश्वर देवता तो कहीं पर भगवान परशुराम के दर्शन कर घर परिवार की खुशहाली की मन्नतें मांगी। पुरातत्व महत्व के प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल में भी देवदर्शन को लोग उमड़े।यह भी पढ़ें: अनूठी पहल: नश्वर कुछ भी नहीं.. समझा रहा ‘पुनर्जन्म स्मृति वन’
प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल, प्राचीन परशुराम मंदिर डिमऊ, शिलगुर विजट मंदिर सिमोग, महासू मंदिर लखवाड़, थैना, बुल्हाड़ में आस्था का सैलाब उमड़ा। श्रद्धालुओं ने देवदर्शन के बाद होलियात में हिस्सा लिया। जौनसार में पौराणिक परंपरा में पहले देवदर्शन फिर पर्व की शुरूआत की परंपरा वर्षों से चली आ रही है।यह भी पढ़ें: दयारा बुग्याल में मखमली घास बचाने की पहल, जूट के जाल का होगा कवच
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