उत्तराखंड में नहीं रुक रहा परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा, अपनाया जाएगा सख्त रवैया
उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 22 Feb 2020 07:52 PM (IST)
देहरादून, आयुष शर्मा। सरकारी भर्ती परीक्षाएं हमेशा ही सवाल के घेरे में रही हैं। प्रदेश में पूर्व में कनिष्ठ सहायक परीक्षा, ऊर्जा के तीनों निगमों के लिए हुई टेक्नीशियन ग्रेड-टू परीक्षा फर्जीवाड़े की भेंट चढ़ी थी। ताजा मामला रविवार को हुई फॉरेस्ट गार्ड परीक्षा का है। परीक्षा में पूर्व नियोजित ढंग से कुछ केंद्रों पर छात्रों को हाईटेक तरीके से नकल कराई गई।
परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों ने परीक्षा कक्ष से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के माध्यम से बाहर प्रश्न भेजे, जिसके उन्हें उत्तर बताए गए। हालांकि इस फर्जीवाड़े की जांच पुलिस ने शुरू कर दी है। दोषियों को सजा मिलेगी या वो इसी तरह युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे। यह तो भविष्य में सामने आएगा। लेकिन, इससे इतर सवाल यह उठता है कि आखिर कब सरकारी भर्ती परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा रुकेगा। काफी समय से इन परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे युवाओं को लचर व्यवस्था का खामियाजा क्या इसी तरह झेलना पड़ेगा?
लापरवाही पर सख्त रवैया अपनाए आयोग
भर्ती परीक्षाओं में एक के बाद एक सामने आ रहे फर्जीवाड़ों ने उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर दून के एक परीक्षा केंद्र से मोबाइल से प्रश्नपत्र और ओएमआर शीट की तस्वीरेें वायरल कर दी गईं। दूसरी ओर रुड़की में आधुनिक उपकरणों की मदद से नकल कराई गई। परीक्षा कक्ष में मोबाइल या कोई दूसरा डिजिटल उपकरण ले जाना प्रतिबंधित था तो यह उपकरण कैसे परीक्षा कक्ष तक पहुंच गए, इसकी जांच होनी चाहिए। इसमें शामिल दोषियों को सख्त सजा भी मिलनी चाहिए।
मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में सख्ती के कारण अब ऐसे मामले सामने नहीं आ रहे हैं। लेकिन, नियुक्ति परीक्षा में इस तरह की लापरवाही समझ से परे है। अगर चयन आयोग ने इन परीक्षाओं को कराने में पुख्ता व्यवस्था नहीं की तो भविष्य में भी ऐसे मामले सामने आ सकते हैं। अब आयोग को सख्त कदम उठाने ही पड़ेंगे।
आरक्षण को लेकर सियासत है जारी आरक्षण के मुद्दे पर सियासत जारी है। प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण पर बहस शांत होने का नाम ही नहीं ले रही। आरक्षण के मुद्दे को लेकर कर्मचारी धड़े आपस में बंट गए हैं। आरक्षण के समर्थन और विपक्ष में दोनों पक्षों के कर्मचारी लामबंद होकर प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले हफ्ते लगभग सवा लाख कर्मचारियों ने पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ कार्य बहिष्कार कर अपनी एकजुटता का परिचय दिया था। कर्मचारियों के परिजन भी इस मुद्दे पर उनके साथ महारैली में शामिल हुए।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही पदोन्नति में आरक्षण को मूल अधिकार नहीं मानने का फैसला दे चुका है। इसके बाद भी आरक्षण के मुद्दे पर राज्य सरकार कुछ बोलने से बच रही है। लेकिन, कर्मचारियों के आंदोलन को देखते हुए सरकार को जल्द इस पर अपना पक्ष रख इस मुद्दे पर पूर्ण विराम लगाना होगा। लेकिन, यह भी देखना दिलचस्प होगा कि सरकार का निर्णय क्या होगा।यह भी पढ़ें: फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा में ओएमआर वायरल करने वाले पर तीन साल का बैन
महंगाई में संघर्ष कर रहे आमजन महंगाई डायन खाये जात है...एक दौर में सबकी जुबान पर चढ़ा यह गाना आज हकीकत बन गया है। अर्थव्यवस्था की सुस्ती से उद्योग जगत संकट के दौर से गुजर रहा है। जिससे बेरोजगारी का आंकड़ा निरंतर बढ़ रहा है। ऊपर से महंगाई की मार ने तो आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। देश के साथ दून के लोग भी इससे प्रभावित हैं। दालें, तेल और दूध पहले ही महंगे हो चुके हैं। अब रसोई गैस के दामों में हुई वृद्धि से रसोई पर संकट और गहरा गया है। आमजन जहां महंगाई की समस्या से जूझ रहा है। वहीं, राजनीतिक पार्टियां देश के अन्य मुद्दों पर अपनी राजनीति चमकाने में लगी हैं, जबकि पार्टियों का मुख्य मुद्दा आम आदमी की समस्या से जुड़ा होना चाहिए था। दूसरी ओर सरकार को भी महंगाई पर लगाम कसने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। जिससे जनता का राहत मिल सके।
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