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उत्तराखंड के सेब को पहचान दिलाने की चुनौती, 21 साल बाद भी हिमाचल एप्पल के नाम से बाजार में बिक रहा उत्तराखंड का सेब

राज्य गठन के 21 साल बाद भी यहां का सेब हिमाचल एप्पल के नाम से बाजार में बिक रहा है। इससे समझा जा सकता है कि आर्थिकी संवारने के मद्देनजर इस नकदी फसल को लेकर राज्य कितना गंभीर है।

By Sumit KumarEdited By: Updated: Wed, 27 Jul 2022 04:37 PM (IST)
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उत्तराखंड के सेब को पहचान दिलाने की चुनौती।

केदार दत्त, देहरादून: हिमाचल प्रदेश ने सेब उत्पादन को बढ़ावा देकर तरक्की की कहानी लिख डाली, लेकिन हिमाचल के समान परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के सेब के सामने पहचान का संकट आज भी बना हुआ है। राज्य गठन के 21 साल बाद भी यहां का सेब हिमाचल एप्पल के नाम से बाजार में बिक रहा है। इससे समझा जा सकता है कि आर्थिकी संवारने के मद्देनजर इस नकदी फसल को लेकर राज्य कितना गंभीर है।

सरकारी सुस्ती जिम्मेदार

इस दिशा में सरकारी सुस्ती तो जिम्मेदार है ही, सेब उत्पादकों के मध्य से इसे लेकर कोई तस्वीर बदलने वाले नवोन्मेष की कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। यद्यपि, अब सरकार ने इस चुनौती से पार पाने को ठोस कदम उठाने की ठानी है।

सेब उत्पादन में हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड बहुत पीछे

तुलनात्मक रूप से देखें तो सेब उत्पादन में हिमाचल प्रदेश के मुकाबले उत्तराखंड बहुत पीछे है। हिमाचल में सेब का क्षेत्रफल 1.10 लाख हेक्टेयर है, जबकि उत्पादन होता है 7.77 लाख मीट्रिक टन। उत्तराखंड में 25980.55 हेक्टेयर में 64878 मीट्रिक टन पैदावार ही हो रही है।

सेब के सामने बना पहचान का संकट आज तक नहीं हुआ दूर

यह अलग बात है कि सेब उत्पादन में जम्मू-कश्मीर व हिमाचल के बाद उत्तराखंड तीसरे स्थान पर आता है, लेकिन यहां के सेब के सामने बना पहचान का संकट आज तक दूर नहीं हो पाया। वह भी तब जबकि, उत्तराखंड का सेब दोनों प्रमुख सेब उत्पादक राज्यों से किसी भी मामले में कम नहीं है।

ब्रांडिंग को लेकर हर स्तर पर सुस्ती इस राह में पड़ रही भारी

आर्थिकी का महत्वपूर्ण जरिया बनाने के मद्देनजर सेब उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ ही इसकी ब्रांडिंग को लेकर हर स्तर पर सुस्ती इस राह में भारी पड़ रही है। यद्यपि, पिछले कुछ वर्षों से राज्य के सेब उत्पादकों को उत्तराखंड एप्पल के नाम वाली खाली पेटियां उपलब्ध कराई जा रही हैं, लेकिन इनके समय पर किसानों तक न पहुंचने की बात अक्सर सामने आती रही है। ऐसे में यहां के सेब उत्पादकों को हिमाचल एप्पल की खाली पेटियां खरीदने को विवश होना पड़ता है।

खलता है सुविधाओं का अभाव

शीतोष्ण फलों की मुख्य फसल होने के बावजूद सेब के मामले में सुविधाओं का अभाव भी अखरने वाला है। तुड़ाई के बाद सेब को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके, इसके लिए वातानुकूलित भंडार गृह (सीए स्टोर) जैसी सुविधाएं पर्वतीय क्षेत्र में ना के बराबर हैं।

उत्तरकाशी जिले में ही सरकारी सीए स्टोर

इस दृष्टि से हिमाचल को देखें तो वहां चार सरकारी और निजी क्षेत्र के 28 सीए स्टोर हैं। इनमें भंडारण कर वहां के किसान बेहतर दाम मिलने पर सेब निकालते हैं।उत्तराखंड में मात्र उत्तरकाशी जिले में ही सरकारी सीए स्टोर है, जबकि ऊधमसिंहनगर व हरिद्वार में निजी क्षेत्र के। इसके साथ ही सेब उत्पादक क्षेत्रों में रोपवे का भी भारी अभाव है।

राज्य में सेब उत्पादन

जिला, क्षेत्रफल, उत्पादन

  • उत्तरकाशी, 9288.46, 29017.88
  • देहरादून, 4939.84, 7807
  • टिहरी, 3872.87, 1966.15
  • पिथौरागढ़, 1622.10, 3044.12
  • अल्मोड़ा, 1578, 11835
  • चमोली, 1390.44, 2892.16
  • नैनीताल, 1248.76, 4734.95
  • पौड़ी, 1174.11, 2987.67
  • रुद्रप्रयाग, 434, 217
  • चम्पावत, 332, 343
  • बागेश्वर, 99.57, 14.23

(नोट: क्षेत्रफल हेक्टेयर और उत्पादन मीट्रक टन में

'इस बार सेब की ब्रांडिंग पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है। इसके तहत सभी सेब उत्पादक क्षेत्रों में खाली पेटियां उपलब्ध करानी शुरू कर दी गई हैं। इस बार बेहतर क्वालिटी की 20 व 10 किग्रा की 3.5 लाख पेटियां देने का लक्ष्य है। यही नहीं, सीए स्टोर, प्रसंस्करण इकाइयां जैसी अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है।'

- गणेश जोशी, कृषि एवं उद्यान मंत्री

'सेब के लिए उत्तराखंड की परिस्थितियां अनुकूल हैं। इसका क्षेत्रफल बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाने पर भी जोर रहेगा। इसके लिए राज्य सेक्टर, एप्पल मिशन, केंद्र पोषित एमआइडीएच योजना, जायका जैसी योजनाओं में कदम उठाए जाएंगे।'

- डा. एचएस बवेजा, निदेशक, उद्यान

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