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उत्‍तराखंड में वन्यजीव बढ़े तो चिंता और चुनौतियों में भी इजाफा

21 साल की तस्वीर देखें तो लगभग सात सौ लोग वन्यजीवों के हमलों में जान गंवा चुके हैं जबकि 2800 से ज्यादा घायल हुए हैं। इनमें भी 75 से 80 फीसद तक गुलदार के हमले हैं। जंगली जानवरों की संख्या बढ़ने के साथ ही चिंता और चुनौतियां दोनों बढ़ी हैं।

By Sumit KumarEdited By: Updated: Sun, 03 Oct 2021 01:22 PM (IST)
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जंगली जानवरों की संख्या बढ़ने के साथ ही चिंता और चुनौतियां दोनों बढ़ी हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड में फल-फूल रहा वन्यजीवों का कुनबा उसे देश-दुनिया में विशिष्टता प्रदान करता है, मगर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। यहां जंगली जानवरों की संख्या बढ़ने के साथ ही चिंता और चुनौतियां दोनों बढ़ी हैं। राज्य में मानव और वन्यजीवों के बीच छिड़ी जंग में दोनों को ही बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। 21 साल की तस्वीर देखें तो लगभग सात सौ लोग वन्यजीवों के हमलों में जान गंवा चुके हैं, जबकि 2800 से ज्यादा घायल हुए हैं।

इनमें भी 75 से 80 फीसद तक गुलदार के हमले हैं।इसके अलावा हाथी, भालू के हमलों ने भी पेशानी पर बल डाले हैं। फसलों को भी वन्यजीव भारी क्षति पहुंचा रहे है। सूरतेहाल, मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही एक से दूसरे जंगल में आवाजाही के लिए परंपरागत रास्तों यानी कारीडोर को खुला रखना भी चुनौती से कम नहीं है।

गंभीरता से कदम उठाने की दरकार

ऐसा नहीं है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्या अचानक उत्पन्न हुई हो। राज्य गठन से पहले से ही यह बनी हुई है, मगर इसके निदान को गंभीरता से पहल नहीं की गई। उत्तराखंड बनने से लेकर अब तक के परिदृश्य को देखें तो मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर चिंता जरूर जताई जाती रही, मगर इसकी रोकथाम को ठोस कदम धरातल पर नजर नहीं आ रहे। वह भी तब, जबकि राज्य का शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा होगा, जहां वन्यजीवों ने दिक्कतें न बढ़ाई हुई हों। अब जबकि पानी सिर से ऊपर बहने लगा है तो समस्या के निदान को ऐसे कदम उठाने की दरकार है, जिससे मनुष्य भी महफूज रहे और वन्यजीव भी।

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वासस्थल विकास पर खास फोकस

राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के मुताबिक मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम के मद्देनजर ही अब गुलदार, हाथी, बाघ, भालू जैसे जानवरों के व्यवहार में दिख रही तब्दीली का अध्ययन कराया जा रहा है। अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर संघर्ष की रोकथाम के उपायों में तेजी लाई जाएगी। इसके साथ ही वन क्षेत्रों में वासस्थल विकास पर खास ध्यान केंद्रित किया गया है, ताकि वन्यजीव जंगल की देहरी पार न करें। साथ ही जगह-जगह कैमरा ट्रैप लगाए जा रहे हैं तो सैटेलाइट मानीटर्ड टैग से निगरानी की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैंं। विभिन्न स्थानों पर ड्रोन से भी निगरानी की जाएगी, ताकि किसी क्षेत्र में वन्यजीव के जंगल से बाहर निकलने की दशा में उसे वापस जंगल की ओर भेजा जा सके।

संघर्ष की इस साल की तस्वीर

  • 27 व्यक्तियों की वन्यजीवों के हमलों में मौत
  • 64 व्यक्ति जंगली जानवरों के हमले में हुए घायल
  • 61 गुलदारों की हो चुकी है मौत
  • 05 बाघों की जा चुकी है जान
  • 10 हाथियों की भी हुई मृत्यु
(नोट: आंकड़े इस साल जनवरी से जुलाई तक के हैं।)

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