उत्तराखंड में फिलहाल अनिवार्य नहीं चकबंदी, सरकार चकबंदी से हाथ खींचने के मूड में
उत्तराखंड में अनिवार्य चकबंदी की राह आसान नहीं है। भूमि के समान वितरण में आ रही दिक्कतों को देखते हुए सरकार फिलहाल अनिवार्य चकबंदी से हाथ खींचने के मूड में है।
By Edited By: Updated: Sun, 24 Nov 2019 08:39 PM (IST)
देहरादून, केदार दत्त। पलायन का दंश झेल रहे गांवों की तरक्की का रास्ता भले ही चकबंदी से होकर गुजरता हो, लेकिन उत्तराखंड में अनिवार्य चकबंदी की राह आसान नहीं है। भूमि के समान वितरण में आ रही दिक्कतों को देखते हुए सरकार फिलहाल अनिवार्य चकबंदी से हाथ खींचने के मूड में है। हालांकि, स्वैच्छिक व आंशिक चकबंदी को कानूनी रूप देकर इसके लिए माहौल बनाया जाएगा। साथ ही दो लाख हेक्टेयर में क्लस्टर आधारित सामूहिक खेती के जरिए भी चकबंदी के फायदे समझाए जाएंगे।
विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में खेती की दशा किसी से छिपी नहीं हैं। पर्वतीय इलाकों में पलायन से खेत वीरान हो रहे तो मैदानों में शहरीकरण की भेंट चढ़ रहे। नतीजा प्रदेश में बंजर भूमि का रकबा 3.66 लाख हेक्टेयर पहुंच चुका है। इसमें गुजरे 19 वर्षों में बंजर हुई एक लाख हेक्टेयर भूमि शामिल है। पहाड़ में ये दायरा ज्यादा है।दरअसल पहाड़ में जोत बिखरी होने से लोग खेती छोड़ रहे। बिखरी जोत के प्रबंधन में दिक्कतें आने के साथ श्रम व समय जाया हो रहा है। ऐसे में चकबंदी के जरिये खेतों का समान वितरण ही इसका समाधान है। इस सबके मद्देनजर मौजूदा सरकार ने चकबंदी की दिशा में कदम बढ़ाए। इसके लिए पहले स्वैच्छिक व आंशिक चकबंदी पर जोर दिया गया, ताकि समझ विकसित होने पर इसे अनिवार्य किया जा सके। कुछेक जगह स्वैच्छिक चकबंदी की पहल से अनिवार्य चकबंदी की उम्मीद बंधी, मगर ढाई साल में सार्थक नतीजे नहीं आ पाए।
यह भी पढ़ें: अनुपूरक बजट की तैयारी में सॉफ्टवेयर दिक्कत का पेच, पढ़िए पूरी खबरअब जैसे संकेत मिल रहे, उससे साफ है कि सरकार अनिवार्य चकबंदी के मूड में नहीं है। असल में अनिवार्य चकबंदी पर खेतों के समान वितरण को लोगों को राजी करना बड़ी चुनौती है। इससे विवाद बढ़ने की आशंका है। हालांकि, सरकार ने आस नहीं छोड़ी है। कृषि मंत्री सुबोध उनियाल के मुताबिक स्वैच्छिक चकबंदी से लोगों को चकबंदी के फायदे बताए जाएंगे। जिन गांवों में लोग आंशिक रूप से चकबंदी को आगे आएंगे, उसे भी कानूनीजामा पहनाया जाएगा। इसके अलावा क्लस्टर आधार पर शुरू की गई सामूहिक खेती की मुहिम में भी गांवों के सभी खेत आबाद होंगे। इससे लोग चकबंदी की अवधारणा को समझेंगे और माहौल बनने पर अनिवार्य चकबंदी की ओर आगे बढ़ा जाएगा।
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