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अनाड़ियों के हाथों में मासूमों की जान, बिना लाइसेंस और फिटनेस दौड़ रहे वाहन

सुबह स्कूली बच्चों को ले जा रही मैक्स के हादसे को लेकर बच्चों की परिवहन सुविधा और सुरक्षा पर फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Wed, 07 Aug 2019 08:07 PM (IST)
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अनाड़ियों के हाथों में मासूमों की जान, बिना लाइसेंस और फिटनेस दौड़ रहे वाहन
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। टिहरी में मंगलवार सुबह स्कूली बच्चों को ले जा रही मैक्स के हादसे को लेकर बच्चों की परिवहन सुविधा और सुरक्षा पर फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में तो सार्वजनिक वाहन सुविधा की तरफ राज्य सरकार की नजरें दशकों से फिरी हुई हैं, लेकिन मैदानी क्षेत्रों में भी हालत बेहद सुधरे हुए नहीं हैं। बात अगर राजधानी दून की करें तो यहां भी स्कूली वाहन अनाड़ियों के हाथों में दौड़ रहे। न तो चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस होते, न ही वाहन फिटनेस टेस्ट प्रमाण-पत्र हासिल किए होते। पब्लिक स्कूलों की बसें तो फिटनेस और टैक्स बगैर ही दौड़ती मिलती हैं। वैन और ऑटो में तो बच्चे भेड़-बकरियों की तरह ठूंसे जा रहे हैं और ई-रिक्शा में तमाम सुरक्षा को दरकिनार कर बच्चों का परिवहन किया जा रहा। यह परवाह जिम्मेदार सरकार, जिला प्रशासन के और परिवहन विभाग को है न मोटी फीस वसूल रहे स्कूल प्रबंधनों को। 

हाईकोर्ट ने पिछले साल जुलाई में स्कूली वाहनों के लिए नियमों की सूची जारी की तो सरकार और प्रशासन कुछ दिन हरकत में नजर आए। इस सख्ती के विरुद्ध ट्रांसपोर्टर हड़ताल पर चले गए और सरकार बैकफुट पर आ गई। नतीजा ये हुआ कि बच्चों को ले जाने वाले वाहनों में धींगामुश्ती का खेल फिर शुरू हो गया। तीन महीने पहले मई में दून के प्रेमनगर इलाके में एक स्कूल बस में चालक-परिचालक की लापरवाही से महज साढ़े तीन साल का मासूम अंश गिरकर बुरी तरह जख्मी हो गया था। इस हादसे के बाद कुछ दिन परिवहन विभाग ने स्कूली वाहनों की चेकिंग कर कार्रवाई की, पर इसके बाद हालात फिर वही हो गए। 

अगर बात स्कूली बच्चों की परिवहन सुविधा की करें तो शहर में महज 10 फीसद स्कूल या कालेज ऐसे हैं, जिनकी अपनी बसें चलती हैं जबकि 40 फीसद स्कूल ऐसे हैं जो कांट्रेक्ट पर प्राइवेट बसों की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। बाकी 50 फीसद स्कूल भगवान भरोसे हैं। निजी बस सुविधाओं वाले 40 फीसद स्कूलों को मिलाकर 90 फीसद स्कूल प्रबंधन और इनसे जुड़े अभिभावकों के लिए हाईकोर्ट ने बीते वर्ष एक अगस्त से यह व्यवस्था लागू की थी कि बच्चे केवल नियमों का पालन कर रहे वाहनों में ही जाएंगे। लेकिन, अब फिर वही सबकुछ चल रहा जो पहले से चलता आ रहा। न वाहनों में सुरक्षा के कोई उपाए हैं न ही चालक-परिचालकों के सत्यापन की व्यवस्था। 

मंगलवार को टिहरी में हुआ हादसा और गत मई में प्रेमनगर में सामने आया मामला प्रत्यक्ष उदाहरण हैं कि प्रदेश में बच्चों की सुरक्षा से किस तरह खिलवाड़ चल रहा है। प्रेमनगर में इससे पहले अक्टूबर-2018 में भी स्कूल वैन संचालक की हरकत से तंग आकर एक छात्रा ने जान दे दी थी। 

अभिवभावकों के लिए विकल्प नहीं 

निजी स्कूल बसों के साथ ही ऑटो और वैन चालक क्षमता से कहीं ज्यादा बच्चे ढोते हैं। इन्हें न नियम का ख्याल है और न सुरक्षा के इंतजाम। अभिभावक इन हालात से अंजान नहीं हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि स्कूलों ने विकल्पहीनता की स्थिति में खड़ा किया हुआ है। निजी स्कूल यह जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। उन्हें न बच्चों की परवाह है, न अभिभावकों की। बच्चे कैसे आ रहे या कैसे जा रहे हैं, स्कूल प्रबंधन को इससे कोई मतलब नहीं। अभिभावक इस विकल्पहीनता की वजह से निजी बसों या ऑटो-विक्रम को बुक कर बच्चों को भेज रहे हैं। 

स्कूली वाहनों में सिटिंग मानक 

एआरटीओ अरविंद पांडे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन के अनुसार स्कूली वाहन में पांच से 12 साल तक के बच्चों को एक यात्री पर आधी सवारी माना जाता है। स्कूल वैन में आठ सीट होती हैं। एक सीट चालक की और सात बच्चों की। सात बच्चों का आधा यानी साढ़े तीन बच्चे (यानी चार)। कुल मिलाकर वैन में पांच से 12 साल तक के 11 बच्चे ले जाए सकते हैं। इसी तरह बस अगर 34 सीट की है तो उसमें पांच से 12 साल के 50 बच्चे ले जाए सकते हैं। 

पांच साल तक के बच्चे हैं मुफ्त 

सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन में स्कूली वाहनों में पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त ले जाने का प्रावधान है। तय नियम में स्पष्ट है कि ये बच्चे सीट की गिनती में नहीं आते। इसी नियम का फायदा उठाकर वाहन संचालक ओवरलोडिंग करते हैं और चेकिंग में पकड़े जाने पर आधे बच्चों की उम्र पांच साल से कम बताते हैं। यही नहीं कहीं पर भी पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त ले जाने के नियम का अनुपालन नहीं किया जाता।   

ऑटो-विक्रम में दरवाजे जरूरी 

एआरटीओ के मुताबिक ऑटो और विक्रम भी स्कूली बच्चों को ले जा सकते हैं मगर इनमें दरवाजे लगाना जरूरी है। खिड़की पर रॉड या जाली लगानी होगी। साथ ही सीट की तय संख्या का पालन करना होगा। जैसे आटो में तीन सवारी के बदले पांच से 12 साल के सिर्फ पांच बच्चे सफर कर सकते हैं। विक्रम में छह सवारी के बदले उपरोक्त उम्र के नौ बच्चे ले जाए जा सकते हैं। इस दौरान शर्त यह भी है कि चालक के बगल में अगली सीट पर कोई नहीं बैठेगा। अगर इन मानकों को आटो-विक्रम पूरा नहीं कर रहे तो बच्चों के परिवहन में अभिभावकों का साथ होना जरूरी है। 

स्कूली वाहनों के मानक 

-स्कूल वाहन का रंग सुनहरा पीला हो, उस पर दोनों ओर और बीच में चार इंटर मोटी नीले रंग की पट्टी हो। 

-स्कूल बस में आगे-पीछे दरवाजों के अतिरिक्त दो आपातकालीन दरवाजे हों। 

-सीटों के नीचे बैग रखने की व्यवस्था हो। 

-बसों व अन्य वाहनों में स्पीड गवर्नर लगा हो। 

-एलपीजी समेत सभी वाहनों में अग्निशमन संयंत्र मौजूद हो। 

-पांच साल के अनुभव वाले चालकों से ही स्कूल वाहन संचालित कराया जाए। 

-स्कूल वाहन में फस्र्ट एड बॉक्स की व्यवस्था हो। 

-बसों की खिड़कियों के बाहर जाली या लोहे की डबल रॉड लगाना अनिवार्य। 

-छात्राओं की बस में महिला परिचारक का होना अनिवार्य। 

-वाहन चालक और परिचालक का पुलिस सत्यापन होना जरूरी। 

आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई ने बताया कि स्कूली वाहनों को लेकर हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि सिर्फ निर्धारित मानक वाले ही वाहन संचालित हों। अवैध तरीके से संचालित सभी वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। स्कूलों को भी अपनी बसें लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जहां तक चालक व परिचालक के अनुभव और लापरवाही की बात है तो परिवहन विभाग इसकी जांच भी कर रहा है। 

बिना लाइसेंस स्कूल बसें दौड़ाते पकड़े गए चालक 

टिहरी में अनाड़ी चालक की गलती से हुए हादसे में नौ बच्चों की मौत के बावजूद दून में स्कूल प्रबंधन या प्राइवेट वाहन संचालकों ने सीख नहीं ली। हादसे के बाद सरकार के एक्शन मोड को देख दून शहर में परिवहन महकमे ने चेकिंग अभियान चलाया तो निजी स्कूलों की बसों के चालक बिना ड्राइविंग लाइसेंस के बसें दौड़ाते मिले। यही नहीं, मानकों को ताक पर रखकर बसों, वैन, ऑटो में बच्चों को क्षमता से अधिक भरा हुआ था। सुरक्षा मानकों को तोड़ रहे 15 वाहन सीज जबकि 75 का चालान किया गया। 

हादसे के बाद दून आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई ने एआरटीओ प्रशासन अरविंद पांडे के निर्देशन में तत्काल चार प्रवर्तन टीमों का गठन कर शहर में दो दिवसीय चेकिंग करने के आदेश दिए। इनमें विकासनगर के कर अधिकारी रत्नाकर सिंह, ऋषिकेश के कर अधिकारी पंकज श्रीवास्तव, देहरादून शहर के कर अधिकारी महिपाल दत्त पपनोई एवं जितेंद्र बिष्ट शामिल रहे। शहर में टीमों की ओर से अलग-अलग सड़कों पर स्कूल की छुट्टी के समय चेकिंग की गई। इस दौरान प्रतिष्ठित स्कूलों की बसें ओवरलोड मिलीं और चालकों के पास लाइसेंस तक नहीं पाए गए। इसके अलावा वैन में अगर क्षमता 12 बच्चों की है तो उसमें 16-17 बच्चे बैठाए मिले। 

पांच वैन का पंजीकरण निरस्त 

मानकों के विपरीत और अवैध तरीके से स्कूली बच्चों का परिवहन कर रही प्राइवेट वैन पर विभाग ने सख्त कार्रवाई की तैयारी कर ली है। मंगलवार को चेकिंग में पकड़ में आई पांच प्राइवेट वैन को न सिर्फ सीज किया गया बल्कि इनका पंजीकरण निरस्त करने की संस्तुति एआरटीओ ने की है। यही नहीं इनके चालक का ड्राइविंग लाइसेंस भी निरस्त किया जा रहा है। 

डेढ़ साल में 84 सीज, 490 चालान 

परिवहन विभाग की ओर से बीते साल जनवरी से इस साल जुलाई तक डेढ़ साल में स्कूली वाहनों पर कार्रवाई करते हुए 84 वाहनों को सीज और 490 के चालान किए गए। जानकारी देते हुए एआरटीओ अरविंद पांडे ने बताया कि बिना परमिट दौड़ने वाले 98, फिटनेस के बिना दौड़ रहे 83 व बिना लाइसेंस 105 जबकि ओवरलोडिंग में 64 वाहनों पर कार्रवाई की गई। 

दून में जरूरी होने पर ही बजाए जाएं हॉर्न 

राजधानी देहरादून में वाहनों की रेलमपेल के बीच बढ़ते ध्वनि प्रदूषण को सरकार ने गंभीरता से लिया है। पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने माना कि दून में कई स्थानों पर शोर मानक से कहीं अधिक है। इसे देखते हुए परिवहन विभाग को निर्देश दिए जा रहे हैं कि वह ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित कराए कि दून की सड़कों पर सिर्फ जरूरी होने पर ही वाहन हॉर्न का प्रयोग करें। इनका शोर भी तय मानकों से अधिक नहीं होना चाहिए। 

'दैनिक जागरण' ने मंगलवार के अंक में दून में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण और इससे उत्पन्न दिक्कतों को प्रमुखता से प्रकाशित किया। राज्य सरकार ने भी इसका संज्ञान लिया है। मंगलवार को सचिवालय में पत्रकारों से बातचीत में पर्यावरण मंत्री डॉ. रावत ने कहा कि दून में सीएमआई, घंटाघर के नजदीक समेत अन्य स्थानों पर ध्वनि प्रदूषण मानकों से कहीं अधिक है। यह चिंता का विषय है। 

डॉ. रावत ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण पर अंकुश लगाने के मद्देनजर ही सरकार ने पूर्व में निर्णय लिया था कि केवल एंबुलेंस, पुलिस व फायर ब्रिगेड के वाहनों में सायरन का इस्तेमाल होगा। उन्होंने बताया कि अब परिवहन विभाग को निर्देश दिए जा रहे हैं कि वाहनों के हॉर्न के कारण बढ़ते ध्वनि प्रदूषण को थामने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं। उन्होंने कहा कि परमिट जारी करते वक्त यह सुनिश्चित कराया जाना चाहिए कि संबंधित वाहन स्वामी और चालक दून की सड़कों पर जरूरी होने पर ही हॉर्न का उपयोग करेंगे। हॉर्न की ध्वनि भी मॉनकों के अनुरूप होनी चाहिए। 

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