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Merry Christmas: क्रिसमस का त्‍योहार जहां भी गया वहीं के रंग में रंगा, पढ़िए पूरी खबर

क्रिसमस ऐसा त्योहार है जिसकी शुरुआत तो रोम से हुई लेकिन कालांतर में क्रिश्चियनिटी के प्रसार के साथ यह पूरी दुनिया में फैल गया। क्रिसमस जहां भी गया वहीं के रंग में रंग गया।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 21 Dec 2019 08:32 PM (IST)
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Merry Christmas: क्रिसमस का त्‍योहार जहां भी गया वहीं के रंग में रंगा, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, सोबन सिंह गुसाईं। क्रिसमस डे पर सेलिब्रेशन 25 दिसंबर को होगा, लेकिन इसकी तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। शहर के चर्च की साज सज्जा, बाजारों में सांता क्लॉज की ड्रेसें बाजार में आ चुकी हैं, जबकि स्कूलों में कार्यक्रम हो रहे हैं। ईसाई धर्म से जुड़े लोग घर-घर जाकर कैरल के गीत ईश्वर इंसान बन गया, एक नया इतिहास बन गया, आज हुआ एक मिलन जग में नया स्वर्ग से सारी दुनिया का...आदि गीत गाकर प्रभु को याद कर रहे हैं। रोम से शुरू हुई इस परंपरा ने आज पूरी दुनिया के उत्सव का स्वरूप ले लिया है। लेकिन, हर जगह इसका स्वरूप स्थानीयता का पुट लिए हुए है। यही वजह है कि हर जगह क्रिसमस के दौरान होने वाले करोल, कैरल के आयोजन में लोकधुनों की गूंज सुनाई पड़ती है।

क्रिसमस ऐसा त्योहार है, जिसकी शुरुआत तो रोम से हुई, लेकिन कालांतर में क्रिश्चियनिटी के प्रसार के साथ यह पूरी दुनिया में फैल गया। खास बात यह रही कि क्रिसमस जहां भी गया, वहीं के रंग में रंग गया।

 

सैंट फ्रांसिस चर्च

कॉन्वेंट रोड पर स्थित सेंट फांसिस चर्च का निर्माण 1856 में आर्च बिशप कार्लि आगरा के विकेरिएट अपोसतोलिक ने शुरू किया था। चार अप्रैल 1905 को आए भूकंप ने चर्च को भारी नुकसान पहुंचाया। इसके बाद 1910 तक यहां एक बड़े कमरे का प्रयोग चर्च के रूप में होता रहा। 1910 में चर्च का नया भवन बनकर तैयार हुआए, जिसका उद्घाटन आगरा के आर्च बिशप और इलाहबाद व लाहौर के बिशप ने किया था। पल्ली पुरोहित फादर लूकस ओएफएम कपुचिन के अनुरोध पर इटली के चित्रकार निनोला सिमीटाटा ने चर्च की दीवारों पर सेंट फ्रांसिस आसिसी के उद्देश्य एवं जीवन की घटनाओं को चित्रित किया। 

160 साल पुराना है सेंट थॉमस चर्च

दिलाराम बाजार स्थित सेंट थॉमस चर्च करीब 160 साल पुराना है। इस चर्च के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। यह चर्च लंबे समय तक बंद रहा था। 2012 में यहां फिर से प्रार्थनाएं शुरू हुईं। व्यस्त क्षेत्र में चर्च में केवल प्रार्थना के दौरान ही लोग आते हैं। इस चर्च की खासियत यह है कि इसका इतिहास सेना से जुड़ा है। यह वही चर्च है जहां ब्रिटिश संगीतकार, कलाकार एवं अभिनेता सर क्लिफ का बपतिस्मा हुआ था। 

मॉरीसन मेमोरियल चर्च

सीएनआइ द्वारा संचालित राजपुर रोड स्थित मॉरीसन मेमोरियल चर्च 25 अगस्त 1884 को बनकर तैयार हुआ था। अंग्रेजों का बनाया यह दून का सबसे बड़ा एवं खूबसूरत चर्च है। यह उत्तर भारत के सबसे पुराने चर्चों में से एक है। इस चर्च का मूल नाम देहरा प्रेस्बायटेरियन था, जिसे वर्ष 1890 में एपी मिशन हिंदुस्तानी चर्च कर दिया गया। इसके बाद यहां के प्रमुख पास्टर रेवरेन जॉन मॉरीसन और उनकी पत्नी के नाम पर इस चर्च को मॉरीसन नाम दिया गया।

चर्चों में 24 से शुरू होगी पूजा

सेंट फ्रांसेस चर्च के पल्ली पुरोहित फाउस्टी पिंटो ने बताया कि चर्च की सजावट का काम शुरू कर दिया गया है। 24 दिसंबर तक चर्च को पूरी तरह से सजाया जाएगा इसके बाद चनी बनाई जाएगी। ङ्क्षहदी और अंग्रेजी में बाइबल से पाठ कराया जाएगा। 24 दिसंबर को सुबह साढ़े 8 बजे पूजा विधि शुरू होगी। इसके बाद प्रभु यीशु के दर्शन होंगे जोकि रात साढ़े 9 बजे तक चलेंगे। उन्होंने बताया कि इस दौरान लोग मन्नतें मांगने आते हैं और अपनी मन्नत को बक्से में डाल जाते हैं। चर्च में आने वाले कई लोगों की मन्नतें पूरी हो चुकी हैं। चर्च के साथ करीब 700 परिवार जुड़े हुए हैं।

 

मसूरी में एतिहासिक क्राइस्ट चर्च

अंग्रेजों द्वारा बसाई गयी मसूरी नगरी में कुल 10 चर्च हैं, जिनमें सबसे पुराना चर्च लाइब्रेरी बाजार क्षेत्र का क्राइस्ट चर्च है, जिसको पूरे हिमालय रीजन का सबसे पुराना चर्च माना जाता है। ब्रिटिश शासनकाल में इस क्षेत्र में ब्रिटिशर्स की बढ़ती आबादी को देखते हुए वर्ष 1836 में इसका निर्माण शुरू हुआ था जिसके आर्किटेक्ट बंगाल इंजीनियर्स के कैप्टन थॉमस रेनी टेलर थे। इस चर्च की विशेषता इसके निर्माण में लगाए गए कांच के रंगीन शीशे हैं जिसमें जीजस क्राइस्ट के जीवन को प्रभावशाली तरीके से दर्शाया गया है। चर्च निर्माण में गोथिक स्टाइल आर्किटेक्चर और कोलोनियल अहसास स्पष्ट झलकता है। चर्च दर्शन को आने वाले लोग अपने आप को चर्च के अंदर की भवन शैली में विंटेज युग में महसूस करते हैं। क्राइस्ट चर्च के पहले पादरी रेवरन हेनरी स्मिथ रहे हैं।

 

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के अनुसार क्राइस्ट चर्च में सिर्फ ब्रिटिशर्स और वह भी वहां के राज परिवार तथा राजपरिवार से संबंधित लोग प्रवेश सकते थे, जिनको स्थानीय भाषा में लाट साहब कहा जाता था। गोपाल भारद्वाज के अनुसार एक बार मोतीलाल नेहरू मसूरी आकर बीमार हो गए तो क्राइस्ट चर्च के तत्कालीन पादरी द्वारा मोतीलाल नेहरू के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए चर्च में विशेष प्रार्थना की गई। इसका पता जब अंग्रेजों को चला तो  बहुत नाराज हो गए। इस पर पादरी ने कहा कि था कि उनके लिए सभी इंसान एक समान हैं इसलिए उन्होंने प्रार्थना की। बाद में पादरी का यहां से ट्रांसफर कर दिया गया। क्राइस्ट चर्च की वर्तमान पादरी रेवरन अनिता टेंपलटन ने बताया कि इन दिनों क्रिसमस की तैयारियां जोरों पर चल रही है जिसके लिए चर्च की विशेष सफाई की जा रही है।

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आओ प्रभु फिर एक बार, हमको बचाने आओ...

क्रिसमस के दौरान होने वाले करोल कैरल के आयोजन में लोकधुनों की गूंज सुनाई पड़ती है। उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं अंचल में कैरल के अधिकांश गीत गढ़वाली, कुमाऊंनी में ही गाए जाते हैं। इन दिनों घर घर आज के दिन हुआ पैदा मसीह, मरियम की गोद में है लेटा मसीह, परम पिता का बेटा मसीह, बोलो जय-जय-जय मसीह..., आओ प्रभु फिर एक बार, हमको बचाने आओ, हम दर्द और दुख में पड़े हैं, आदि से तुझ से मांगते चैन..., आया क्रिसमस प्यारा, ये सबसे है न्यारा, ये उत्सव उमंगों तरंगों भरा, है सबकी खुशियों का, यह मौसम प्यारा सा...गाया जा रहा है।

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