देहरादून के मालदेवता क्षेत्र की बांदल घाटी के छह से आठ गावों में बीते दिन आपदा में मिले घाव से हर किसी की जुबां पर कुछ यही बात थी, तो आंखों में शुक्रवार की रात हुई तबाही का दृश्य भी साफ झलक रहा था।
जगह-जगह टूटे घर, मलबे से अटे खेत-खलिहान और क्षतिग्रस्त रास्ते तबाही का दृश्य बता रहे हैं।
पूरे क्षेत्र में बदहवासी का माहौल है। कोई मलबे के ढेर में अपनों की खोजबीन में जुटा है तो कोई तिनकों को समेटने की कोशिशों में। यद्यपि, जल प्रलय के बाद जिंदगी को पटरी पर लाने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन आपदा ने जो गहरे घाव दिए हैं उन्हें भरने में लंबा वक्त लगना तय है।देहरादून शहर से लगभग 30 किलोमीटर के फासले पर है टिहरी जिले से लगी बांदल घाटी। शुक्रवार की रात कुदरत ने यहां के छह से आठ गांवों में ऐसा कहर बरपाया कि हर कोई सिहर उठा।
आपदा के 36 घंटे बाद भी घाटी में जनजीवन अस्त-व्यस्त है। अब भी लापता व्यक्तियों की तलाश जारी है तो पानी, बिजली की आपूर्ति बहाल करने के प्रयास किए जा रहे हैं। रविवार को दैनिक जागरण की टीम ने बांदल घाटी के गांवों में तबाही के निशां को करीब से देखा।
मूसलीनाला गांव: अपनों को तलाशती आंखें
ब्लाक मुख्यालय रायपुर से करीब 15 किलोमीटर आगे मालदेवता स्थित लालपुल से आठ किमी दूर है आपदा प्रभावित मुसलीनाला गांव। यहां तक पहुंचने के लिए बांदल नदी के किनारे से गुजर रही सड़क जगह-जगह ध्वस्त हो चुकी है। ऐसे में जोखिम उठाकर ही गांव पहुंचा जा सकता है। गांव में आठ परिवारों में से दो के घर जमींदोज हो गए।
ध्वस्त हुए एक घर में परिवार के 11 लोग थे, जिनमें से छह ने भागकर जान बचाई, जबकि पांच लापता हैं। प्रभावित परिवार के लोग रविवार को घर के मलबे में अपनों की तलाश करते रहे।शायद इस आस में कि मलबे में जिंदगी सांस ले रही हो। गांव के प्रभावित परिवार के ग्रामीण 60 वर्षीय चमना देवी ने कहा कि काल बनकर बरसी वर्षा ने गांव में सबकुछ तबाह कर दिया है।
सरखेत: दो घरों में घुसा मलबा
इस गांव में आठ परिवार रहते हैं। गांव में बांदल नदी से तबाही नहीं आई, बल्कि गांव के ठीक ऊपर के नाले ने शुक्रवार को रौद्र रूप लिया और भारी मलबा, पेड़ और पत्थर गांव में टूट पड़े।इस दौरान गांव की महिला 49 वर्षीय शांता देवी ने बताया कि गांव के तीन परिवारों के दो घरों में मलबा घुस गया है। पांच मवेशी गोशाला में ही दफन हो गए हैं। करीब 50 बीघा भूमि पर धान की फसल तबाह हो गई है।
सरखेत पीपीसीएल: बांदल बहा ले गई 25 घर
इस गांव में बांदल नदी ने सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया। मालदेवता-टिहरी संपर्क मार्ग से सटे सरखेत पीपीसीएल गांव में 25 मकानों में शुक्रवार रात को बांदल नदी का पानी घुस गया। इस दौरान ऊपर पहाड़ी भी दरक गई।
पहाड़ी के मलबे ने कुछ देर बांदल नदी के बहाव को रोका, जिससे बांदल नदी के भारी मलबे व पानी ने सभी घरों को अपनी चपेट में ले लिया।
गनीमत रही कि मकानों के बहने से आधे घंटे पहले ही यहां रहने वाले सभी ग्रामीण अपने बच्चों को घर से निकालकर जंगल की ओर भागने में सफल रहे। इसलिए गांव में कोई हताहत नहीं हुआ।
सेरकी गांव में घर-खेतों को नुकसान
गांव में पांच परिवारों के घरों में समीप के नाले का भारी मलबा घुस गया। जिससे यहां के ग्रामीणों ने भागकर जान बचाई।गांव के युवक संजय कुमार ने बताया कि गांव में दो मवेशी बह गए हैं और 20 बीघा से अधिक खेतों में नकदी फसल और सब्जी की क्यारियां बह गई हैं। गांव में नदी ने कटान शुरू कर दिया है जिससे गांव को खतरा पैदा हो गया है।
पिता के सामने उफान में बह गया बेटा
पीपीसीएल-सरखेत से करीब दो किलोमीटर आगे घंतू का सेरा गांव में एक भवन पूरी तरह मलबे में दबा हुआ है। यहां एक ही परिवार के पांच लोग लापता हैं।इनमें रमेश सिंह का 18 वर्षीय पुत्र विशाल भी है। जिसका अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। रमेश ने सिसकते हुए दैनिक जागरण की टीम से कहा, मुझे क्या मालूम था कि समूचे क्षेत्र में हो रही भारी वर्षा उनके बेटे को लील लेगी।
पता होता कि बेटा घर के अंदर ही मलबे की चपेट में आएगा तो मैं उसे पहले ही बाहर निकाल लेता। लेकिन, कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। मेरी आंखों के सामने बेटा भारी मलबे व उफनती बांदल नदी में लापता हो गया। रमेश ने बताया कि यह सबकुछ पलभर में हुआ।
भारी वर्षा और बादल फटने से पूरा परिवार बदहवास था। घर में चीख पुकार मची हुई थी। मैंने परिवार के अन्य सदस्यों व महिलाओं को तुरंत सुरक्षित समीप के जंगल में भेजा इसी बीच बेटा कहीं लापता हो गया। इतना कहते हुए रमेश फफक-फफक कर रोने लगे।
चार बच्चों संग गर्भवती सपना ने जंगल में बिताई रात
घंतू का सेरा गांव में रमेश के चचेरे भाई जगमोहन (31) भी बांदल नदी के उफान में लापता हैं। जगमोहन की शादी तीन साल पहले भाववाला निवासी सपना (28) के साथ हुई थी। उनका एक साल का बेटा सोनू है।सपना अभी छह महीने की गर्भवती भी है। रुंधे गले से सपना ने आपदा की आपबीती बताई। कहा कि उनके परिवार के नौ सदस्य दो घरों में रहते हैं। शुक्रवार रात भारी वर्षा के बीच एकाएक पहले बिजली कड़की और जोर का धमाका हुआ।
ऐसा प्रतीत हुआ कि धमाका हमारे घर के अंदर ही हुआ। हमारा परिवार कुछ समझ पाता पलभर में ही घर के चारों और ऊपर से नाले का पानी व बड़े-बड़े पत्थर आने लगे। मैं अपने एक साल के बेटे और जेठानी के तीन बच्चों को वहां से उठाकर ऊपर जंगल की ओर भागी।बिलखते हुए सपना ने कहा कि मेरे पति घर के अंदर ही फंसे थे। दो घंटे बाद भी जब वह घर के ऊपर जंगल में नहीं आए तो मुझे घबराहट होने लगी। लेकिन, मैं बेबस थी मेरे साथ में बच्चे थे।
हम सभी सुबह चार बजे तक जंगल में भीगते रहे। करीब पांच बजे प्रशासन की टीम ने उन्हें वहां से निकाला। मेरे पति समेत परिवार के पांच लोगों का अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। यह कहते हुए सपना फूट-फूटकर रोने लगी।