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80 फीसद व्यापारिक प्रतिष्ठानों की कंपाउंडिंग संभव नहीं, होगा ध्वस्तीकरण Dehradun News

अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत एमडीडीए ने जिन एक हजार के करीब व्यापारिक प्रतिष्ठानों को नोटिस जारी किए हैं उनमें से 80 फीसद की कंपाउंडिंग भी संभव नहीं।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 10 Oct 2019 08:30 PM (IST)
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80 फीसद व्यापारिक प्रतिष्ठानों की कंपाउंडिंग संभव नहीं, होगा ध्वस्तीकरण Dehradun News
देहरादून, जेएनएन। हाईकोर्ट के आदेश पर चलाए जा रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत एमडीडीए ने जिन एक हजार के करीब व्यापारिक प्रतिष्ठानों को नोटिस जारी किए हैं, उनमें से 80 फीसद की कंपाउंडिंग भी संभव नहीं। लिहाजा, देर सबेर इन पर सीलिंग या ध्वस्तीकरण की कार्रवाई ही एकमात्र रास्ता नजर आता है।

ऐसे व्यापारिक प्रतिष्ठानों की राह में सबसे बड़ा पेच है सरकारी भूमि। राजपुर रोड की ही बात करें तो यहां सड़क की चौड़ाई 33 मीटर तक है, जबकि मौजूदा समय में सड़क का 24 मीटर तक का भाग ही खुला है। यानी कि करीब नौ मीटर भाग कब्जे की जद में है। ऐसे में सरकारी भूमि पर कंपाउंडिंग का सवाल ही खड़ा नहीं होता। 

बड़ी संख्या में एमडीडीए ने ऐसे भवनों की चाहरदीवारी से लेकर परिसर तक का भाग ध्वस्त कर दिया है। इससे इनका फ्रंट सेटबैक कंपाउंडिंग के दायरे से भी बाहर जाकर प्रभावित हो गया है। लिहाजा, अब इस तरह के भवनों में बड़े स्तर तक की तोड़फोड़ करके ही कंपाउंडिंग कराई जा सकती है। 

या तो एमडीडीए स्वयं भवनों में तोड़फोड़ कर दे या फिर कारोबारी स्वयं इसकी जिम्मेदारी उठा लें। इसके बिना कोई भी राह मौजूदा नियमों के अनुरूप नहीं दिख रही। इसके अलावा ऐसे भवनों की संख्या भी काफी अधिक है, जिनके नक्शे तो आवासीय श्रेणी में पास हैं, मगर इनमें व्यापारिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। 

जून 2018 में जारी हाईकोर्ट के आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि इस तरह के भवनों पर हर हाल में कार्रवाई की जाए। फिर चाहे इसके लिए शहर में धारा-144 ही क्यों न लागू करनी पड़ जाए।

इसलिए मुश्किल है कंपाउंडिंग

-भवनों की जद में सरकारी भूमि का आना।

-आवासीय नक्शे पर निर्माण और संचालन कमर्शियल में।

-बेसमेंट पार्किंग के मानकों का उल्लंघन।

-मानक से कम चौड़ाई पर व्यापारिक प्रतिष्ठान का संचालन।

-अतिक्रमण ध्वस्त करने के बाद फ्रंट सेटबैक प्रभावित हो जाना।

सीमा से बाहर कंपाउंडिंग शहर के हित में नहीं

हाईकोर्ट ने अतिक्रमण व नियमों के विपरीत चल रहे व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर कार्रवाई के आदेश सिर्फ इसलिए दिए कि दिनों-दिन शहर का दम घुटता जा रहा है। व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए सड़क की चौड़ाई, पार्किंग आदि के नियम स्पष्ट हैं। यदि इनमें ढील दी जाती है तो इससे शहर की पूरी व्यवस्था प्रभावित होगी। ऐसा करने से कुछ हजार कारोबारियों को तो राहत मिल जाएगी, मगर करीब नौ लाख की आबादी का बोझ ढो रहे शहर की स्थिति बद्तर हो जाएगी।

इतना सबकुछ जानते हुए भी हमारे सफेदपोश सरकार पर दबाव बनाने में लगे हैं कि एमडीडीए की कार्रवाई की जद में आ रहे प्रतिष्ठानों को नियमों में ढील दी जाए। एमडीडीए के बिल्डिंग बायलॉज (भवन उपविधि) में स्पष्ट किया गया है कि भवनों को किस हद तक कंपाउंड किया जा सकता है। 

अतिक्रमण अभियान पहले पहले चरण में जब बड़ी संख्या चिकित्सा प्रतिष्ठान व अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठान सील हो गए तो सरकार न सिर्फ वन टाइम सेटेलमेंट स्कीम लाई, बल्कि नियमों को भी शिथिल किया गया। इसके बाद भी बड़ी संख्या में व्यापारिक प्रतिष्ठानों को वैध नहीं बनाया जा सका है। 

इसकी वजह सिर्फ यह रही कि निर्माण में मानकों का खुला उल्लंघन किया गया था। अब सरकार के काङ्क्षरदे फिर से सफेदपोशों के माध्यम से नियमों को और शिथिल बनाने का जतन कर रहे हैं। यह न सिर्फ शहर की बेहतरी की राह को बाधित करेगा, बल्कि हाईकोर्ट के आदेश की मंशा के भी विपरीत साबित होगा।

सिंचाई भूमि पर साधी चुप्पी

अतिक्रमण अभियान के पहले चरण में राजपुर रोड से लेकर सर्वे चौक के आसपास के भाग तक सिंचाई विभाग की नहर व उससे संबंधित भूमि व्यापारिक प्रतिष्ठानों की जद में पाई गई। कई बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों का कब्जा भी नहर पर पाया गया। जब इन पर कार्रवाई की बात आई तो उच्च स्तर पर गोपनीय बैठक की गई। 

रास्ता निकाला गया कि पहले छोटे-मोटे प्रतिष्ठानों पर कार्रवाई कर ली जाए और सिंचाई भूमि पर बाद में निर्णय लिया जाएगा। इसके पीछे की मंशा यह भी थी कि हाईकोर्ट को अब तक की कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपकर मामले को ठंडे बस्ते में भी डाला जा सकता है। 

हालांकि, कई के फिर से जवाब तलब करने के बाद अधिकारी राजपुर रोड की तरफ तो दोबारा बढ़ गए, मगर अब भी सिंचाई विभाग की संपत्ति पर कब्जों को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया जा रहा। इसी तरह जिन प्रतिष्ठानों का कब्जा एमडीडीए के प्रबंधन वाली नजूल भूमि पर है, उसको भी नहीं छेड़ा जा रहा।

छोटे कारोबारियों का क्या दोष

अतिक्रमण अभियना के नाम पर जिन छोटे कारोबारियों के अतिक्रमण को अधिकारियों ने एक झटके में साफ कर दिया, वह अब सवाल पूछने लगे हैं कि आखिर क्या दोष है। क्योंकि अभी भी बड़े प्रतिष्ठानों के अतिक्रमण पर शासन व प्रशासन के कदम ठिठके हैं। छोटे कारोबारियों का सवाल जायज भी है और हाईकोर्ट का आदेश भी स्पष्ट है। इसके बाद भी अधिकारी कोर्ट के आदेश में भी भेद करने से गुरेज नहीं कर रहे।     

जाखन क्षेत्र के कारोबारियों ने तीन घंटे बंद रखी दुकानें 

एमडीडीए की कार्रवाई के विरोध में जाखन समेत मालसी व कुठालगेट क्षेत्र के कारोबारियों ने अपने-अपने प्रतिष्ठान तीन घंटे तक बंद रखे। इस दौरान पूरे क्षेत्र में छोटी से छोटी दुकान भी तीन घंटे के लिए बंद रही। वहीं, कारोबारियों ने बैठक कर चेताया कि यदि अतिक्रमण हटाने के नाम पर व्यापारियों का उत्पीडऩ किया गया तो वह व्यापक स्तर पर आंदोलन छेड़ने को बाध्य होंगे।

कारोबारियों ने व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद करने के बाद जाखन स्थित शिव मंदिर के बाहर बैठक का आयोजन किया। व्यापारियों ने कहा कि बड़ी संख्या में व्यापारिक प्रतिष्ठान दशकों से चल रहे हैं। अब अधिकारी यह कहकर उन्हें उजाडऩे पर तुले हैं कि सड़क 33 मीटर चौड़ी है, लिहाजा उन्होंने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया है। 

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कारोबारियों ने मांग उठाई कि सड़क की चौड़ाई को 24 मीटर पर सीमित किया जाए। यदि इससे इतर जाकर 33 मीटर के अनुरूप सड़क की चौड़ाई मानते हुए कार्रवाई की जाती है तो सभी व्यापारी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। बैठक में जगदीश चौहान, सोहन लाल बजाज, इंद्रपाल सिंह, अनूप सक्सेना, राजीव अरोड़ा, चेतन ओबराय आदि उपस्थित रहे।

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