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उत्‍तराखंड: तो अब चुनावी मोड़ में आई कांग्रेस

उत्तराखंड के सियासी संकट के मामले में न्यायिक मोर्चे पर डटी कांग्रेस पार्टी अब तेजी से चुनावी मोड में भी आती दिख रही है।

By sunil negiEdited By: Updated: Sun, 24 Apr 2016 10:08 AM (IST)
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सुभाष भट्ट [देहरादून]: उत्तराखंड के सियासी संकट के मामले में न्यायिक मोर्चे पर डटी कांग्रेस पार्टी अब तेजी से चुनावी मोड में भी आती दिख रही है। दो दिन पूर्व हाई कोर्ट का फैसला आते ही हरीश रावत ने जिस तेजी से सत्ता संभालते हुए 24 घंटे के भीतर कई लोक लुभावन फैसले किए, उससे कांग्रेस की इस रणनीति के भी साफ संकेत मिल रहे हैं।

जानकारों के मुताबिक चार वर्ष की एंटी इनकंबेंसी से बचने और जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए कांग्रेस मौजूदा सियासी हालात को मुफीद मान रही है। यही वजह है कि संकट के इस दौर में भी निवर्तमान मुख्यमंत्री चुनावी एजेंडा आगे बढ़ाने का भी कोई मौका नहीं चूक रहे।
उत्तराखंड की निवर्तमान कांग्रेस सरकार को अपने नौ विधायकों की बगावत के ही कारण राजनीतिक अनिश्चितता के संकट से गुजरना पड़ रहा है। यह दीगर बात है कि करीब एक महीने से हैरान-परेशान कांग्रेस पार्टी बागी विधायकों की बजाय भाजपा व उसके केंद्रीय नेताओं पर ज्यादा हमलावर दिख रही है।

इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह प्रमुख रूप से कांग्रेस पार्टी के निशाने पर हैं। निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत न्यायिक मोर्चे पर तो डटे ही हैं, अब चुनावी एजेंडे को भी तेजी से आगे बढ़ाते दिख रहे हैं।
दिलचस्प पहलू यह है कि उत्तराखंड में सियासी संकट का यह घटनाक्रम ऐसे वक्त पर घटित हो रहा है, जब कुछ महीने बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी संभावित हैं। जानकारों की मानें तो इस घटनाक्रम में बेशक कांग्रेस सरकार पर संकट मंडरा रहा है, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को इसका फायदा भी मिल सकता है। इसी रणनीति के तहत निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत जहां लोकतंत्र बचाओ यात्रा के जरिये खुद को शहीद मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत कर सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं इसका ठीकरा बागी विधायकों की बजाय अपने प्रमुख चुनावी प्रतिद्वंद्वी भाजपा के सिर फोड़ने पर भी आमादा हैं।


सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के रणनीतिकार भी यह मान रहे हैं कि पिछले चार वर्ष से सत्ता में रहने की वजह से आगामी चुनाव में संभावित एंटी इनकंबेंसी इस राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से उसके सिर से उतर चुकी है। साथ ही, मौजूदा हालात में चुनाव आने तक जनता के बीच सहानुभूति की लहर पैदा करने की रणनीति भी पार्टी के लिए मुफीद साबित हो सकती है।

यही वजह है कि कानूनी लड़ाई के साथ हरीश रावत जनपक्षीय मुद्दों पर स्टैंड लेकर अपने चुनावी एजेंडे को भी तेजी से आगे बढ़ाते दिख रहे हैं।
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