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सरकारी शिक्षा के लिए परेशानी का सबब बना कोरोनाकाल, घटे 17 हजार से ज्यादा छात्र

सरकारी शिक्षा के लिए कोरोना काल नई परेशानी का सबब बन गया है। छात्रसंख्या को लेकर हालत कोढ़ पर खाज सरीखे हैं। पिछले साल प्राइमरी स्कूल तो खुले ही नहीं। 17 हजार से ज्यादा छात्र घट गए। इसकी तस्दीक मिड डे मील के आंकड़ों से हो रही है।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Wed, 19 May 2021 07:05 PM (IST)
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सरकारी शिक्षा के लिए परेशानी का सबब बना कोरोनाकाल।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। सरकारी शिक्षा के लिए कोरोना काल नई परेशानी का सबब बन गया है। छात्रसंख्या को लेकर हालत कोढ़ पर खाज सरीखे हैं। पिछले साल प्राइमरी स्कूल तो खुले ही नहीं। 17 हजार से ज्यादा छात्र घट गए। इसकी तस्दीक मिड डे मील के आंकड़ों से हो रही है। 2020-21 में छात्रसंख्या 6.84 लाख से घटकर 6.67 लाख हो गई। अब 2021-22 प्रारंभ हो चुका है। स्कूल बंदी के बीच ही नया शैक्षिक सत्र चालू हुआ। 30 जून तक छुट्टियां हैं। पिछले साल माइग्रेंट लेबर के उत्तराखंड से बाहर का रुख करने की वजह से कई स्कूलों में नए दाखिल तक नहीं हो सके। ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार जिलों में छात्रसंख्या घटने के सर्वाधिक मामले हैं। पर्वतीय जिलों में भी बुरा असर पड़ा है। पिछले साल एक से पांचवीं कक्षा के बच्चों ने स्कूल का मुंह देखा ही नहीं। इस बार हालात और खराब होने से विभाग भी सहमा है।

जुगाड़ से बंट रहा खाद्यान्न

प्रदेश के सरकारी प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को दिए जाने वाले खाद्यान्न को जुगाड़ से तौला जा रहा है। कोरोना संकट काल में स्कूल बंद हैं। बच्चों को मिड डे मील के तहत खाद्यान्न मुहैया कराया जा रहा है। खाना पकाने पर आने वाली लागत उनके बैंक खातों में ट्रांसफर की जा रही है। जिन बच्चों के बैंक खाते नहीं हैं, उनके अभिभावकों को यह धनराशि मिल जाए, इसका बंदोबस्त किया गया है। स्कूलों में खाद्यान्न सरकारी सस्ता गल्ला विक्रेताओं की ओर से पहुंचाया जा रहा है। इस खाद्यान्न को हर छात्र के परिवार को देने के लिए खाद्यान्न तौलने की व्यवस्था स्कूलों में नहीं है। 2007-08 में स्कूलों को वेईंग मशीनें दी गईं थी। ये मशीनें खराब हो चुकी हैं। अब शिक्षक या भोजनमाताएं भोजन बांटने वाले बर्तनों से अंदाज से खाद्यान्न को तौल रही हैं। स्कूल पहुंचकर बच्चे या उनके स्वजन ऐसे ही खाद्यान्न ले जा रहे हैं।

वीआइपी सेवा को तत्पर स्कूल

प्रदेश में वीआइपी स्कूल बंद नहीं होंगे, भले ही उनमें छात्रसंख्या दो से लेकर 10 से नीचे ही हो। देहरादून के नजदीकी क्षेत्रों के ये स्कूल रसूखदारों की सेवा के लिए हैं। छात्रसंख्या भले ही दो या तीन हो, लेकिन शिक्षकों की संख्या ज्यादा है। दुर्गम में तैनाती से बचने के लिए सुविधाजनक क्षेत्रों के इन स्कूलों में रसूखदारों के चहेते शिक्षक माैज काट रहे हैं। हालांकि सरकार का सख्त फरमान है कि 10 से कम छात्रसंख्या वाले प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्कूलों को बंद किया जाए। दुर्गम क्षेत्रों में इस फरमान पर तत्काल अमल कर दिया गया। सुगम क्षेत्रों के ये स्कूल सरकार के आदेश को दरकिनार करने में कामयाब रहे हैं। ऐसा नहीं कि सरकार को कानोंकान यह खबर नहीं लगी। सवाल सुगम तक पहुंचने का सत्ता सुख है। ऐसे में सत्तापक्ष हो या विपक्ष या शिक्षकों के संगठन, जब थाली एक ही है तो चुप्पी बनती है।

इशारों को गर समझो तो...

सूबे के सबसे बड़े महकमे शिक्षा के मंत्री अरविंद पांडेय के संदेश से इन दिनों खलबली मची हुई है। इसी हफ्ते उनका जन्मदिवस है। कोरोना महामारी की वजह से इन दिनों प्राइमरी से लेकर माध्यमिक तक सभी सरकारी स्कूल बंद हैं। शिक्षा के तीनों निदेशालय भी तकरीबन बंद पड़े हैं। शासन के इस हफ्ते तक सिर्फ बेहद जरूरी सरकारी दफ्तरों को खोलने का फरमान जारी किया है। कोरोना के हालात देखते हुए शिक्षा मंत्री ने अपने समर्थकों को संदेश जारी कर यह साफ कर दिया कि उनके जन्मदिवस पर किसी तरह के कार्यक्रम नहीं होंगे। अलबत्ता, रक्तदान शिविर जरूर लगा सकते हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा, आक्सीजन की अहमियत देखते हुए पौधारोपण कर पर्यावरण संरक्षण व संवर्द्धन को प्रोत्साहित किया जाए। मंत्री जी का संदेश समर्थकों तक पहुंचा या नहीं, लेकिन महकमे में हलचल जरूर तेज हो गई है। कुछ अधिकारी आपस में पूछ रहे हैं, बताओ भई करना क्या है।

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