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coronavirus से थम गई जौनसार की सामाजिक गतिविधियां, नहीं मनाए जाएंगे परंपरागत तीज-त्योहार

जौनसार-बावर के इतिहास में ऐसा पहली बार देखने को मिला है जब सामूहिक रूप से लोगों ने अपने सभी परंपरागत तीज-त्योहार नहीं मनाने का बड़ा फैसला लिया है।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Mon, 13 Apr 2020 04:37 PM (IST)
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coronavirus से थम गई जौनसार की सामाजिक गतिविधियां, नहीं मनाए जाएंगे परंपरागत तीज-त्योहार
चकराता, चंदराम राजगुरु। जौनसार-बावर के इतिहास में ऐसा पहली बार देखने को मिला है, जब सामूहिक रूप से लोगों ने अपने सभी परंपरागत तीज-त्योहार नहीं मनाने का बड़ा फैसला लिया है। कोरोना के खतरे से जनजातीय क्षेत्र की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियां थम सी गई है। इसे लोगों की जागरूकता और सरकार के लॉकडाउन का पालन करने की दोनों वजह से देखा जा रहा है। कोरोना से लोगों को इस बार जनजाति क्षेत्र के मशहूर परंपरागत ठोड़ा-नृत्य की प्रस्तुति देखने को नहीं मिलेगी।

दशकों से चली आ रही लोक संस्कृति की परंपरागत व्यवस्था के तहत जौनसार-बावर में हर बार 12 अप्रैल से लेकर 15 मई के बीच का समय स्थानीय तीज-त्योहार मनाने का होता है। लेकिन इस बार कोरोना ने जनजातीय क्षेत्र की सदियों पुरानी सामाजिक और परंपरागत सांस्कृतिक विरासत को बदल दिया। देश-दुनिया में कोरोना वायरस कोविड-19 महामारी के कहर से हाहाकार मचा है। कोरोना के संक्रमण से पर्वतीय राज्य उत्तराखंड भी अछूता नहीं रहा। 

उत्तराखंड में कोरोना की दस्तक से लोगों की बेचैनी बढ़ने के साथ रात की नींद उड़ गई। सरकार ने समय रहते लॉकडाउन का कदम उठाया, जिससे कोरोना वायरस के संक्रमण की चेन को रोका जा सके। महामारी को हराने के लिए पूरा देश एकजुटता के साथ संगठित हो रहा है, जो अपने आप में बेमिसाल है। इसी कड़ी में राज्य के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र जौनसार-बावर के लोगों ने सामाजिक एकजुटता का संदेश देने के लिए सदियों पुरानी परंपरागत संस्कृति में बदलाव लाकर मिसाल कायम की है। कोरोना के खतरे से समूचे इलाके में लोगों ने अलग-अलग जगह बैठकें कर जौनसार-बावर परगने की सभी 39 खतों से जुड़े करीब चार सौ गांवों में इस बार कोई तीज-त्योहार नहीं मनाने का अहम निर्णय लिया है।

इन त्योहारों पर लगा ग्रहण

लोक परंपरा की बात करें तो जौनसार-बावर में पूरे एक माह तक बिस्सू मेला, जातरा, खुरूडी, गनियात और अन्य तीज-त्योहार चरणबद्ध तरीके से मनाए जाते हैं। इन मेलों में हजारों की संख्या में लोग अपने गांवों से ढोल-बाजे के साथ नाचते-गाते हुए शामिल होते हैं। इस अद्भुत सांस्कृतिक नजारे को देखने के लिए अन्य इलाके से भी लोग काफी संख्या में आते हैं। जौनसार के बिस्सू मेले में ठोड़ा-नृत्य का विशेष महत्व है।

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जनजातीय क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को समेटे ठोड़ा-नृत्य में परंपरागत पोशाक पहने लोग अपनी युद्ध कौशल की कला का प्रदर्शन करते हैं। ठोड़ा-नृत्य के दौरान लोग गाजे-बाजे के साथ एक-दूसरे को युद्ध कला में परास्त करने के लिए तीर-से निशाना भी साधते हैं। परंपरागत पोशाक में ग्रामीण महिलाएं गोल घेरा बनाकर जौनसारी संस्कृति के जैंता, रासौ और तांदी-नृत्य की प्रस्तुति से नई पीढ़ी को विरासतन संस्कृति से जोड़ती हैं। 

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