Dehradun Car Accident: रफ्तार की जंग में कब तक हारती रहेगी युवाओं की जिंदगी, कब थमेगा रात के सन्नाटे में रफ्तार का शोर
Dehradun Car Accident देहरादून में एक भीषण कार दुर्घटना ने युवाओं की जिंदगी की कीमत पर रफ्तार की जंग को उजागर किया है। जिन युवा आंखों में भविष्य के अनगिनत ख्वाब झिलमिलाते रहते हैं वह जाने-अनजाने रफ्तार की ऐसी जंग में शरीक हो रही हैं जहां हरदम जीवन दांव पर लगा रहता है। शहर की सड़कों पर रात के सन्नाटे में रफ्तार का शोर कब थमेगा?
सुकूनभरा था देहरादून का मिजाज
सवाल यह उठता है कि रफ्तार की इस जंग में युवा जिंदगी कब तक हारती रहेगी। आखिर ऐसा क्या होता है कि दिनभर जाम से बोझिल रहने वाली दून की सड़कों पर रात के सन्नाटे के बीच कारों और दोपहिया की अंधी दौड़ शुरू हो जाती है। सुकून की शाम में होश गंवाने जैसी जिद और हुड़दंग की हद तक जाने वाला शोर भी घुलने लगता है।जश्न की शाम सजाने वालों की क्या कोई जवाबदेही नहीं?
जो बार, रेस्तरां, पब और क्लब जश्न की शाम सजाकर युवाओं के जुनून को बेकाबू बनाने हैं, रफ्तार के इस भयानक खेल में उनकी जवाबदेही भी तय करने की जरूरत है। सिर्फ कमाई के चक्कर में यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके यहां आने वाले युवा सही हालत में हैं या नहीं। यह भी देखा जाना चाहिए कि जश्न का नशा कहीं युवाओं के सिर चढ़कर तो नहीं बोल रहा है। यह भी पढ़ें- उत्तराखंड में खुदाई के दौरान मिला रहस्यमयी शिवलिंग, पहले यहां निकले थे नागराज अब भोलेनाथ; हर कोई हैरानइलेक्ट्रानिक और स्पाट इंफोर्समेंट सख्त हो
देहरादून में रात के समय युवाओं में तेज रफ्तार की प्रवृत्ति बढ़ रही है। गलत दिशा में वाहन चलाने को लेकर जागरुकता नहीं है। ऐसी स्थिति पर लगाम कसने के लिए इलेक्ट्रानिक इंफोर्समेंट (सीसीटीवी कैमरों से निगरानी) और स्पाट इंफोर्समेंट सख्त करने की जरूरत है। ड्राइविंग लाइसेंस के मानक भी कड़े किए जाने चाहिए। युवाओं को रफ्तार के खतरों से अवगत कराने के लिए स्कूल/कालेज में निरंतर जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाने की जरूरत है। - केके कपिला, अध्यक्ष (इंटरनेशनल रोड फेडरेशन)
हुड़दंग पर पुलिस का डर होना जरूरी
दून शहर में तमाम युवा शाम ढलते ही सड़कों पर चौपहिया और दोपहिया वाहनों को बेलगाम रफ्तार में दौड़ाने लगते हैं। यह स्थिति सड़क पर चल रहे दूसरे व्यक्तियों के लिए भी खतरनाक है। रात के समय शहर के तमाम नाकों पर पुलिस को सख्ती के साथ कार्रवाई करनी चाहिए। पुलिस का यही डर रफ्तार पर ब्रेक लगा सकता है। इस मामले में दून पुलिस को चंडीगढ़ और मुंबई पुलिस से सीख लेनी चाहिए। - अनूप नौटियाल, संस्थापक अध्यक्ष (एसडीसी फाउंडेशन)