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फर्जी एंटीवायरस बेचने के नाम पर ठगी करने वाले दो गिरफ्तार, गूगल की सिक्योरिटी को भी कर लेते थे बाईपास

आनलाइन फर्जी एंटीवायरस बेचने के नाम पर विदेशी नागरिकों से ठगी करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह का स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने पर्दाफाश किया है। ठगों के पास से ऐसे साफ्टवेयर टूल्स मिले हैं जिनकी मदद से वह गूगल की सिक्योरिटी को भी बाईपास कर लेते थे।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 24 Jul 2021 10:19 PM (IST)
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अंतरराष्ट्रीय साइबर फ्रॉड गिरोह का एसटीएफ ने किया पर्दाफाश।
जागरण संवाददाता, देहरादून। आनलाइन फर्जी एंटीवायरस बेचने के नाम पर विदेशी नागरिकों से ठगी करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह का स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने पर्दाफाश किया है। ठगों के पास से ऐसे साफ्टवेयर टूल्स मिले हैं, जिनकी मदद से वह गूगल की सिक्योरिटी को भी बाईपास कर लेते थे। आरोपितों के पास से चार लग्जरी कारें, खातों में लाखों रुपये व अन्य सामान बरामद किया गया है।

एसएसपी एसटीएफ अजय सिंह ने बताया कि सूचना मिली थी कि पटेलनगर कोतवाली क्षेत्र में एक फर्जी काल सेंटर चलाया जा रहा है। शुक्रवार रात एसटीएफ ने शिमला बाईपास स्थित प्रीति एन्क्लेव में आइएचएम बिल्डिंग के प्रथम तल पर संचालित इस काल सेंटर पर छापा मारा। यहां दो शातिर देसी-विदेशी नागरिकों से मेल व अन्य साफ्टवेयर के माध्यम से एप्पल के आइ ट्यून, एंटीवायरस की सर्विस देने के नाम पर फर्जी टोल फ्री नंबर देकर धोखाधड़ी करते पाए गए। टीम ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। आरोपितों की पहचान काल सेंटर के संचालक थानरिपाउ रांगमेयी उर्फ विक्टर उर्फ जान मिलर निवासी लाखीच्यूका जीरीघाट लाखीपुर कोचर, असम व प्रदीप नेहवाल निवासी गणेशपुर गांव शिमला बाईपास, देहरादून के रूप में हुई। आरोपितों के पास से आठ लैपटाप, चार चार्जर, दो वाईफाई राउटर, एक हेड फोन, डायरी व एक मोबाइल फोन बरामद किया गया।

पूछताछ में आरोपित थानरिपाउ रांगमेयी ने बताया कि वह 2015 में देहरादून आया था। सबसे पहले उसने दून बिजनेस पार्क के एक काल सेंटर में काम किया। 2018 में काल सेंटर बंद हो गया तो उसने जाखन में अपना काम शुरू कर दिया। काम सही नहीं चलने के कारण उसने डार्क वेब से विभिन्न साफ्टवेयर की जानकारी लेनी शुरू कर दी और खुद एक वेंडर बन गया। आरोपित ने गूगल व साफ्टवेयर की मदद से देसी-विदेशी नागरिकों की ईमेल आइडी प्राप्त कर उन्हें एप्पल, आइ ट्यून, एंटीवायरस, नोरटन, मै कैफे व अलग-अलग नाम से सर्विस देने के मेल भेजने शुरू कर दिए।

ठग ने बताया कि जब एक मैक आइडी या एक मेल आइडी से काफी संख्या में मेल होती है तो गूगल उस आइडी को ब्लैकलिस्ट में डाल देता है और निगरानी रखता है। इसके लिए थानरिपाउ रांगमेयी ने एक अन्य साफ्टवेयर खरीदा, जोकि कंप्यूटर की मैक आइडी को बदल देता है। इससे शातिर अपने कंप्यूटर की मैक आइडी हर घंटे में चेंज कर देता था। इसके अलावा शातिर ऐसे साफ्टवेयर का भी इस्तेमाल करता था, जिससे उसकी आइपी चेंज हो जाती है। इस साफ्टवेयर के माध्यम से शातिर भारत से ही अन्य देशों की आइपी का प्रयोग करता था। प्रदीप नेहवाल को थानरिपाउ ने अपना असिस्टेंट रखा हुआ था।

200 से 400 डालर लेता था आरोपित

एसएसपी ने बताया कि ठग विदेशी नागरिकों से बात करने के लिए टोल फ्री नंबर का प्रयोग करता था, जिसे वह हर महीने बदल लेता था। आरोपित विदेशी नागरिकों से फर्जी एंटीवायरस बेचने के बदले 200 से 400 डालर गूगल गिफ्ट कार्ड के माध्यम से लेता था। थानरिपाउ रांगमेयी के तीन खातों में 78 लाख रुपये पाए गए। धोखाधड़ी करने के लिए वह अपने असली नाम का प्रयोग ना कर अपना नाम विक्टर व जान मिलर बताता था।

छह महीनों में पांच काल सेंटरों के खिलाफ की कार्रवाई

एसटीएफ पिछले छह महीनों के दौरान पांच काल सेंटरों का पर्दाफाश कर चुकी है। ये सभी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त थे। इन मामलों में 16 आरोपितों की गिरफ्तारी, 51 लैपटाप व अन्य इलेक्ट्रानिक गैजेट्स के साथ करोड़ों रुपये फ्रीज किए गए।

थानों को नहीं लग पा रही है भनक

फर्जी काल सेंटरों में एसटीएफ की ओर से की जा रही कार्रवाई से यह भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर थानों की पुलिस इन पर कार्रवाई क्यों नहीं कर पाती। फर्जी काल सेंटर के दो मामले पटेलनगर कोतवाली, दो मामले रायपुर थाना व एक मामला वसंत विहार थाना क्षेत्र में पाया गया, लेकिन पुलिस को इनकी जानकारी नहीं मिली।

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