Dehradun: बिना कामकाज का कार्यालय, 2013 से लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं, सालाना खर्च दो करोड़
उत्तराखंड का लोकायुक्त कार्यालय संभवतः देश का ऐसा पहला कार्यालय होगा जो बिना कामकाज के चल रहा है। 2013 से यह कार्यालय लोकायुक्त विहीन चल रहा है और इस पर सालाना करीब दो करोड़ रुपये वेतन आदि में खर्च भी किए जा रहे हैं।
By Jagran NewsEdited By: Nirmal PareekUpdated: Thu, 29 Dec 2022 09:29 AM (IST)
सुमन सेमवाल, देहरादून: उत्तराखंड का लोकायुक्त कार्यालय संभवतः देश का ऐसा पहला कार्यालय होगा, जो बिना कामकाज के चल रहा है। न सिर्फ कार्यालय संचालित किया जा रहा है, बल्कि इस पर सालाना करीब दो करोड़ रुपये वेतन आदि में खर्च भी किए जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक बिना काम खर्च का यह सिलसिला भी एक-दो साल से नहीं, बल्कि बीते 10 वर्ष (2013) से चल रहा है।
विनोद जोशी की ओर से दायर RTI से जानकारी आई सामने
बता दें बिना काम खर्च की यह हकीकत सामाजिक कार्यकर्त्ता विनोद जोशी की ओर से दायर किए गए आरटीआइ आवेदन के उत्तर में सामने आई। आरटीआइ से प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद 24 अक्टूबर 2002 को सैयद रजा अब्बास को लोकायुक्त बनाया गया था। वह वर्ष 2008 तक इस पद पर रहे और इसके बाद लोकायुक्त की जिम्मेदारी एमएम घिल्डियाल ने संभाली। वह सितंबर 2013 तक पद पर रहे। तब से यह कार्यालय लोकायुक्त विहीन चल रहा है।
सितंबर 2013 के बाद से काम ठप
आपको बता दें लोकायुक्त की मुख्य जिम्मेदारी भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों को प्राप्त कर उनका निस्तारण करना है, लेकिन वर्ष सितंबर 2013 के बाद से यह काम ठप पड़ा है। वर्ष 2013 तक भो जो 15222 शिकायतें दर्ज की गई थीं, उनमें से 6927 शिकायतों का ही निपटारा किया जा सका था। उत्तराखंड का लोकायुक्त कार्यालय में स्टाफ के वेतन से लेकर अन्य सभी प्रमुख मदों से अच्छा खासा बजट खपाया जा रहा है।डेढ़ करोड़ रुपये सिर्फ वेतन पर खर्च
बिना लोकायुक्त के चल रहे लोकायुक्त कार्यालय में कार्मिकों के वेतन पर ही सलाना करीब डेढ़ करोड़ रुपये का खर्च किया जा रहा है। इसके अलावा वाहनों के संचालन/अनुरक्षण, मजदूरी, फर्नीचर, कंप्यूटर आदि मदों में भी बजट का प्रविधान किया गया है।
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